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अर्जुन ने एक बार बाँसुरी से पूछा- “सुभगे! तुम्हें कृष्ण स्वयं हर समय ओठों से लगाए रहते हैं। देखो हम सब उनकी कृपा पाने के लिए बहुत प्रयत्न करते हैं परंतु सफल नहीं होते जबकि तुम बिना प्रयत्न किए ही उनके ओठों पर रहती हो।” “बिना प्रयत्न किए नहीं अर्जुन” मुरली बोली-“मैंने भी प्रयत्न किया है। जानते हो
मुझे मुरली बनने के लिए अपना असली रूप ही खो देना पड़ा है।” अर्जुन को बात तब समझ में आई। बाँसुरी अपने में खाली थी। उसमें स्वयं कोई स्वर नहीं गूंजता था। बजाने वाले के ही स्वर बोलते थे। बाँसुरी को देखकर कोई यह नहीं कह सकता था कि यह कभी बाँस रह चुकी है। क्योंकि न तो उसमें कोई गाँठ थी और न कोई अवरोध। अर्जुन को भगवान का प्यार पाने का अनूठा सूत्र मिल गया।
अमृत कण ( सचित्र बाल वार्ता )
युग निर्माण योजना , मथुरा