गायत्री का तीसरा अक्षर ‘स’ शक्ति की प्राप्ति और उसके सदुपयोग की शिक्षा देता है
सत्तावन्तस्ताथा शूराः क्षत्रिया लोकरक्षकाः । अन्याया शक्ति संभूतान ध्वंसयेयुहि व्यापदा ॥ अर्थात सत्ताधारी, शूरवीर तथा संसार के रक्षक क्षत्रिय अन्याय और अशक्ति से उत्पन्न होने वाली आपत्तियों को नष्ट करें।
क्षत्रियत्व एक गुण है। वह किसी वंश विशेष में न्यूनाधिक भले ही मिलता हो, पर किसी एक वंश या जाति तक ही सीमित नहीं हो सकता। क्षत्रियत्व के प्रधान लक्षण हैं। शूरता अर्थात- धैर्य, साहस, निर्भयता, पुरुषार्थ, दृढ़ता, पराक्रम आदि। ये गुण जिसमें जितने न्यूनाधिक हैं, वह उतने ही अंश में ये क्षत्रिय है।
शारीरिक प्रतिभा, तेज, सामर्थ्य, शौर्य, पुरुषार्थ और सत्ता का क्षात्रबल जिनके पास है, उनका पवित्र कर्त्तव्य है कि वे अपनी इस शक्ति के द्वारा निर्बलों की रक्षा करें, ऊपर उठाएँ तथा अन्याय, अत्याचार करने वाले दुष्ट प्रकृति के लोगों से संघर्ष करने में अपने प्राणों का भी मोह न करें।
शक्ति और सत्ता ईश्वर की कृपा से प्राप्त होने वाली एक पवित्र धरोहर है, जो मनुष्य को इसलिए दी जाती है कि वह उसके द्वारा निर्बलों की रक्षा करे। जो उसके द्वारा दुर्बलों को सहायता पहुँचाने के बजाय उलटा उनका शोषण, दमन, त्रास, उत्पीड़न करता है, वह क्षत्रिय नहीं असुर है। सामर्थ्य का आसुरी उपयोग करना उस महाशक्ति का प्रत्यक्ष अपमान है और इस अपमान का फल वैसा ही भयंकर होता है जैसा महाकाली से लड़ने वाले महिषासुर आदि का हुआ था। भूतकाल में शक्ति का दुरुपयोग बहुत बढ़ गया था, जिसके फल से पिछले कुछ वर्षों में अनेक सत्ताधारियों का पतन हो चुका है।
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या
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