गरुड़ पुराण के अनुसार यमलोक में ‘चित्रगुप्त’ नामक देवता हरेक जीव के भले-बुरे, शुभ-अशुभ, पाप-पुण्य आदि कर्मों का लेखा-जोखा हर पल, हर क्षण रखते रहते हैं और फिर उसी लेखे-जोखे व विवरण के आधार पर जीवों को शुभ कर्मों के लिए स्वर्ग और दुष्कर्मों के लिए नरक प्रदान किए जाते हैं।
गरुड़ पुराण में वर्णित इस आलंकारिक चित्रण की बहुत ही सहज, सरल व सटीक व्याख्या करते हुए युगऋषि कहते हैं कि यहाँ चित्रगुप्त का आशय चित्त से है, जो हर व्यक्ति में मौजूद है।
हमारा चित्त ही चित्रगुप्त है जो हर पल, हर क्षण हमारे द्वारा किए गए सभी कर्मों का साक्षी है। यह चित्तरूपी चित्रगुप्त हर प्राणी के हर कार्य को हर समय बिना विश्राम किए अंकित करते रहता है। हर प्राणी का चित्त, चित्रगुप्त का कार्य कर रहा है। हम दूसरों से अपने कई कर्म छिपाए रख सकते हैं, पर अपने चित्त से नहीं, अपने मन से नहीं; क्योंकि हमारा चित्त हर पल हमारे साथ है!
हम भले या बुरे जो भी कर्म करते हैं, उनका सूक्ष्म चित्रण, अंकन स्वाभाविक रूप से हमारे चित्त में होता रहता है, हमारी अंतश्चेतना में होता रहता है।
यह कुछ वैसा ही है, जैसे किसी किसान के द्वारा बोया गया बीज आज उसके खेत में गेहूँ, मटर, चना, मक्का आदि फसल के रूप में तैयार खड़ा है। उसके खेत में आज वही फसल तैयार है, जिसके बीज उसने पूर्व में बोये थे।
कुछ बीज तो शीघ्र ही फसल बनकर तैयार हो जाते हैं, पर कुछ पौधों के बीज कुछ अधिक समय लेकर बीज से वृक्ष के रूप में तैयार हो पाते हैं। जैसे आम की गुठली भूमि में डाली गई। कुछ समय बाद उस गुठली से एक अंकुरण घटित हुआ और वर्षों बाद वह आम के वृक्ष के रूप में तैयार हो जाता है। उसी प्रकार हमारे कुछ कर्मों के फल हमें तुरंत प्राप्त हो जाते हैं, पर कुछ कर्मों के फल वर्षों बाद प्राप्त होते हैं। जिन कर्मों का पूरा फल हम वर्तमान जीवन में नहीं भोग पाते तो उसके पूर्ण भोग के लिए हमारी आत्मा एक नवीन शरीर धारण कर लेती है, जिसे हम पुनर्जन्म कहते हैं।
आत्मा तब तक नूतन शरीर धारण करती रहती है, जब तक चित्त में, आत्मा में अंकित हमारे कर्म संस्कार पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाते, मिट नहीं जाते। तब तक मुक्ति संभव नहीं अस्तु कर्मों का फल मिलना तो अवश्य है! कर्मफल का सिद्धांत अकाट्य है, अटल है।
फरवरी, 2021
अखंड ज्योति
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