जीवनमूल्यों का निर्माण मनुष्य की जीवनशैली एवं उद्देश्य के समन्वय से होता है। जीवन के लिए श्रेष्ठ एवं सार्थक मूल्य वही माना जाता है, जिससे पूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके, लेकिन आज मनुष्य केवल आँखों से दृश्य और तार्किक बुद्धि सोमाओं सीमित तथ्यों को ही सत्य मानता है। इसके पार- परे उसकी चिंतन चेतना का विस्तार नहीं है। वर्तमान की इस स्थिति ने आज मानवीय तन, मन और जीवन को विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त कर दिया है।
व्यक्ति में बढ़ते अवसाद, तनाव, चिंता जैसे मानसिक रोग हो या हृदयगति, उच्च रक्तचाप, अस्थमा, मधुमेह, मोटापा जैसे शारीरिक रोग हों, ये सभी विकृत जीवनशैलो एवं जीवनमूल्यों के अभाव का ही परिणाम हैं। मनोवैज्ञानिकों नं इन तन और मन के रोगों को ‘जीवनशैली विकृति’ की संज्ञा दी है। आधुनिक जीवनशैली की पहचान बन रहे इंटरनेट, मोबाइल फोन, टी०वी० ने लोगों को मनोरंजन, संचार एवं ज्ञान- साथ रोग विकास के साथ-साथ दिए हैं। वर्तमान समय भी को विकृत जीवनशैली पारिवारिक विघटन जहाँ बालकों के कोमल मन को विखंडित-सा कर दिया है, वहीं वृद्धों को एकाकी बना दिया है।
वर्तमान जीवन में यदि कोई सबसे बड़ा संकट है तो वह नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन का है। जहाँ भारत मानव विकास क्रम में १७७ देशों में १२६ वे स्थान पर था, वहीं उसकी गिनती भ्रष्टाचारी देशों रही है। नैतिक अवमूल्यन का ही नतीजा है कि आज लोग संवेदनाशून्य होकर की मनुष्य में बड़ी आवश्यकता “भोजन और जीवनदात्री ‘औषध’ में मिलावट कर रहे हैं। साथ ही स्वच्छंदता की बढ़ती वृत्तियों से व्यक्ति में अवांछनीय तत्वों के ग्रहण से अनेक निम्नगामी परिवर्तन हुए हैं। इनमें फैशनपरस्ती, सामाजिक -पारिवारिक विघटन, नशेबाजी चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, आतंकवाद, अनैतिकता आदि पतनोन्मुखी परिवर्तन देखे जा रहे हैं |
ऐसे समय में ‘युग निर्माण मिशन’ युगऋषि आचार्य पं० श्रीराम शर्मा द्वारा संकल्पित ऐसा आंदोलन है, जो ‘मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण’ के उद्देश्य को पूरा करने हेतु कार्यरत है। इस मिशन द्वारा संचालित नैतिक -बौद्धिक -सामाजिक क्रांतियों का मूलाधार ‘ धर्म’ रहा है, धर्म अर्थात कर्तव्य-परायणता। आचार्यश्री के शब्दों में-“प्रगति करना है तो है अपने कर्त्तव्यों को जानो और उनका निर्वाह करो।” युग निर्माण का प्रारंभ व्यक्ति निर्माण से होता है और युग परिवर्तन का अर्थ है इस महान प्रक्रिया का अपने से प्रारंभ होकर दूसरों पर प्रतिध्वनित होना अर्थात इसका एक सामूहिक रूप -सारे जमाने में बदलाव।
आचार्यश्री ने मनुष्य जीवन के चरमोत्कर्ष देवत्व को प्राप्त करने हेतु श्रेष्ठ जीवनशैली एवं शाश्वत जीवनमूल्य की स्थापना के उद्देश्य से १८ सिद्धांतों का निर्माण किया, जिन्हें युग निर्माण सत्संकल्प कहा जाता है। इन्हें ही युग परिवर्तन का आधार कहा जाता है। इन आदेशों एवं सिद्धांतों का महत्त्व इस तथ्य से ज्ञात होता है कि इन्हें इस युग की गीता के १८ अध्यायों की संज्ञा दी गई है।
आचार्य श्री ने आध्यात्मिक जीवनशैली एवं शाश्वत जीवनमूल्यों को स्थापित करने हेतु गायत्री एवं यज्ञ का प्रार्थना और सहारा लिया। गायत्री अर्थात सद्बुद्धि को यज्ञ अर्थात लोकमंगल के लिए संगठित होना ताकि आत्मनिर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण का उद्देश्य पूरा हो सके। जल्दी शयन, प्रातः जागरण, प्रातः भ्रमण, योग, दैनिक यज्ञ नियमित जप. शुद्ध आचार, सात्विक आहार, श्रेष्ठ चिंतन और परोपकार की वृत्ति इसे आदर्श जीवनपद्धति कहते हैं। यही संक्षिप्त में युग निर्माण मिशन को जीवनपद्धति है, जो आज की विकृत जीवनशैली का सर्वश्रेष्ठ एवं स्वस्थ विकल्प है जिसे अपनाने वालों की संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है।
इसी जीवनशैली एवं मूल्य-उन्मुखीकरण से संबंधित एक शोधकार्य देव संस्कृति विश्वविद्यालय में मार्च २००९ में शोधार्थी अविनाश बिहारिया द्वारा ‘युग निर्माण मिशन का जीवनशैली एवं मूल्य- उन्मुखीकरण पर प्रभाव का अध्ययन’ विषय पर किया गया। पी-एच०डी० उपाधि हेतु यह अध्ययन कुलाधिपति डॉ० प्रणव पण्ड्या के संरक्षण एवं डॉ० लता गैरोला के मार्गदर्शन में किया गया। इसमें मिश्रित प्रतिचयन विधि का प्रयोग करते हुए भारत के मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रांत से क्रमशः सीहोर तथा रायगढ़ जिले का चयन किया गया, जिसमें प्रत्येक से युग निर्माण मिशन से संबंधित एक ग्राम एवं एक सामान्य ग्राम का चयन करके उनमें से प्रयोज्यों का चयन किया गया। यह अध्ययन व्यापक स्तर पर किया गया, अतः प्रयोज्यों को उम्र के हिसाब से तीन समूहों में बाँटकर अध्ययन किया गया- पहले समूह से २५ वर्ष के २०० में १६ प्रयोज्य रखे गए, जिसमें १०० प्रयोज्य युग निर्माण मिशन से संबंधित थे तथा अन्य १०० प्रयोज्य सामान्य गतिविधियों से संबंधित थे. इसी प्रकार द्वितीय समूह में २६ से ३५ एवं तीसरे समूह मे ३६ के २०० प्रयोज्य में ३६ से ४५ वर्ष के २०० प्रयोज्यो को चयनित किया गया।
चयनित सभा प्रयोज्यों से शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित ‘युग निर्माण मिशन जीवनशैली मापनी’ एवं डॉ० जी०पी०शेरी व प्रो० आर०पी० वर्मा द्वारा निर्मित व्यक्तिगत मूल्य प्रश्नावली’ को भराया गया तथा प्राप्त आँकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण टी-टेस्ट के माध्यम से किया गया। शोध में व्यक्तिगत मूल्यों के अंतर्गत धार्मिक मूल्य, सामाजिक मूल्य, लोकतांत्रिक मूल्य, सौंदर्य ललितकला मूल्य, आर्थिक मूल्य, ज्ञान मूल्य, आनंद मूल्य, शक्ति मूल्य, पारिवारिक प्रतिष्ठा मूल्य, स्वास्थ्य मूल्य आदि का परीक्षण किया गया।
परिणामों में यह पाया गया कि युग निर्माण मिशन की गतिविधियों से संबंधित प्रयोज्यों की जीवनशैली एवं सामान्य गतिविधियों से संबंधित प्रयोज्यों की जीवनशैली में सार्थक अंतर पाया गया और मिशन से संबंधित प्रयोज्यों की जीवनशैली सामान्य प्रयोज्यों की अपेक्षा अधिक उन्नत पाई गई। इसी प्रकार धार्मिक, सामाजिक, लोकतांत्रिक, पारिवारिक प्रतिष्ठा एवं स्वास्थ्य मूल्यों में मिशन से संबंधित प्रयोज्यों एवं सामान्य प्रयोज्यों में सार्थक अंतर पाया गया, लेकिन सौंदर्य ललितकला मूल्य, – आर्थिक मूल्य, शक्ति मूल्य एवं आनंद मूल्यों में सार्थक अंतर नहीं पाया गया अर्थात मिशन की गतिविधियों का इन मूल्यों पर कम प्रभाव देखा गया। इससे यह स्पष्ट होता है कि युग निर्माण मिशन के प्रभाव से व्यक्ति साधनप्रधान मूल्यों की अपेक्षा आध्यात्मिक मूल्यों की ओर अधिक उन्मुखता दरसाता है।
अध्ययन के दौरान युग निर्माण मिशन से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने पर शोधार्थी ने पाया कि छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में भी मिशन ने अर्द्धनग्न रहने वाले और मांस-मछली यहाँ तक कि चींटियाँ तक खाने वाले लोगों को सादगीपूर्ण वस्त्र पहनने और लहसुन प्याज जैसे तामसी आहार से परहेज करने वाले सात्त्विक लोगों में परिवर्तित कर दिया। इसी प्रकार बस्तर के रांधनाकलाँ, आँवरी, तारगाँव, कोंडागाँव, लंझोड़ा आदि ग्रामों में युग निर्माण मिशन के सार्थक प्रयासों को देखा गया।
यह अध्ययन बताता है कि युग निर्माण मिशन की गतिविधियाँ व्यक्तिगत स्तर से लेकर विश्वव्यापी स्तर तक फैली हैं। इसमें निहित सशक्त विचारशैली, कार्य शैली व भावसशक्तता व्यक्ति की जीवनशैली को बदलने में पूर्ण सक्षम हैं।
अखण्ड ज्योति, सितंबर 2010