मनुष्य का जीवन रिरियाने, रेंगने और रोने-कलपने के लिए नहीं, बल्कि आगे बढक़र भविष्य की ओर पैर बढाने और समय पर अधिकार करने के लिए है।
(२) हमारा जीवन पराजय के लिए नहीं, विजय के लिए है। जीवन-संग्राम में विजय मिलती उसी को है, जो उत्साह से भरपूर और आत्मविश्वास से ओत-प्रोत हैं। जिसके चरणों में अंगद की दृढ़ता है, वही समय की छाती पर अपना पद आरोपित कर सकता है। आत्मविश्वास सारी शक्तियों का उद्गम और समस्त श्रेयों की कुञ्जी है।
(३) आत्मविश्वास के जागृत ही मनुष्य में वह दिव्य-शक्ति प्रवाहित हो जाती है, जिसके बल पर ऊँचे पर्वतों को लाँघा और गहरे-से-गहरे समुद्र को भी बाँधा जा सकता है।
(४) आत्मविश्वासी समस्त संसार के विश्वास का अधिकारी होता है। जो अपने ऊपर भरोसा करता है, उसी का दूसरे लोग भी भरोसा करते हैं। जो अपनी सहायता आप करता है, उसी की ईश्वर भी सहायता करता है।
(५) आत्मविश्वास हमारी शक्ति का स्रोत है। उसी के सहारे हर किसी के लिए आगे बढऩा सम्भव हो सकता है। भाग्य का निर्माण ईश्वर नहीं, हमारा आत्मविश्वास करता है। जो निष्ठापूर्वक पुरुषार्थ में संलग्न है और हार-जीत की चिन्ता न करते हुए आगे ही बढ़ता जाता है, उस आत्मविश्वासी के लिए पर्वतों को भी रास्ता देना पड़ता है।
— युग ऋषि पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी
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