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जब मन में पुरानी दुःखद स्मृतियाँ सजग हों तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही जरूरी है जितना अच्छी बात का स्मरण करना। यदि तुम शरीर से, मन से और आचरण से स्वस्थ होना चाहते हो तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जाओ। । माना कि किसी ‘अपने’ ने ही तुम्हें चोट पहुँचाई है, तुम्हारा दिल दुखाया है, तो क्या तुम उसे लेकर मानसिक उधेड़बुन में लगे रहोगे। अरे भाई ! उन कष्टकारक अप्रिय प्रसंगों को भुला दो, उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कर्मों में मन को केन्द्रीभूत कर दो। चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दुःखों को भूलना ही है।
हारिए न हिम्मत
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या