Home Akhand Jyoti Magazine परिश्रम के साथ विश्राम भी है जरूरी

परिश्रम के साथ विश्राम भी है जरूरी

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जीवनयात्रा में तन-मन की थकान स्वाभाविक है। अधिक श्रम, पारिस्थितिक दबाव या तनाव के कारण शरीर व मन पर अत्यधिक खींचतान करने की स्थिति में हमारी दैनिकचर्या प्रभावित होती है। इसके लिए विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। जीवन साधना में नींद के साथ विश्राम तन-मन को तरोताजा कर देता है और कार्य को एकाग्रचित्त होकर करना संभव बनाता है। इसलिए जीवनशैली में विश्राम को स्थान देना महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अत: कुछ तन-मन को विश्रांति देने वाले तौर-तरीकों की चर्चा यहाँ की जा रही है।

शारीरिक विश्राम के लिए योग में प्रचलित श्वसन की प्रक्रिया बहुत उपयोगी रहती है, जिसमें शरीर के शिथिलीकरण का अभ्यास किया जाता है। इसमें पीठ के बल लेटकर शरीर के एक-एक अंग-प्रत्यंग पर ध्यान केंद्रित करते हुए इनकी थकान व खिंचाव को अनुभव करते हुए इन्हें ढीला छोड़ा जाता है। इसके साथ विश्राम के लिए अन्य योगासनों का अभ्यास भी किया जा सकता है। शरीर में प्रविष्ट थकान को दूर करने में मालिश बहुत उपयोगी रहती है। इसका विशेष लाभ लेने के लिए किसी जानकार से सहायता ली जा सकती है।

शरीर से अधिक व्यक्ति मानसिक तनाव, दबाव एवं खिंचाव के कारण थक जाता है, जिसका स्नायविक संस्थान से लेकर शरीर एवं मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके कारण व्यक्ति की एकाग्रता, स्मरणशक्ति एवं कार्य में रुचि कुंद पड़ जाती है और जीवन की यात्रा एक बोझिल सफर बन जाती है। इसके लिए मन को विश्रांत करने वाली जीवनशैली के नियमों का अनुसरण आवश्यक हो जाता है। यहाँ दैनिक जीवन में मानसिक विश्राम के कुछ उपयोगी सूत्रों की चर्चा की जा रही है |

धीरे-धीरे गहरा श्वास लें, इसका अभ्यास मन को शांत करने में प्रभावी रहता है। इसके साथ शीतकारी, शीतली जैसे प्रशांतक प्राणायामों का अभ्यास किया जा सकता है। किसी योग्य योगशिक्षक की देख-रेख में इन्हें सीखा जा सकता है।

मौसम के अनुकूल गरम या शीतल जल में स्नान करना भी थकान से उबारने बाला एक रामबाण नुसखा साबित होता है। विश्व भर के ठंडे इलाकों में गरम जल से भरे टब या कुंडों में इस तरह के प्रयोग आम चलन में देखे जा सकते हैं। घर पर भी इनकी व्यवस्था की जा सकती है। गरम पेय जैसे-गरम दूध या जड़ी-बूटियों का सेवन भी एक लाभकारी अनुभव रहता है।

कर्णप्रिय संगीत को सुनना मन को विश्रांति देने वाला व तनावमुक्त करने वाला एक अद्भुत अनुभव रहता है। थकान से उबरने के लिए संगीत के जादुई प्रभाव को अवश्य आजमाया जा सकता है। आजकल माइंडफुल मेडिटेशन का चलन है। इसका सार भी वर्तमान को पूरे होशोहवास में जीना है।

अपने वर्तमान में क्या हो रहा है, इस पर ध्यान केंद्रित करें; जैसे-अपने सुनें, इसकी धड़कनें धीमे चल रही हैं, गहरी हैं या तीव्र- इस पर गौर करें। कमरे में कौन कौन सी ध्वनियाँ सुनाई दे रही हैं इनको सुनें। कमरे के बाहर पक्षियों का कलरव, गाड़ियों की आवाजें या एकदम शांति- इन सबको अनुभव भी किया जा सकता है।

मन को शांत करने वाले इन प्रयोगों को आजमाया जा सकता है। जब मन अस्त-व्यस्त होने के कारण तनाव की स्थिति में हो व थकान अनुभव कर रहा हो तो मन में बेतरतीब पड़े कार्यों की एक सूची बनाएँ और फिर इनको प्राथमिकता के आधार पर अंजाम देने की कार्ययोजना पर काम करें। आप देखेंगे कि मन का तनाव हलका हो रहा है और यह विश्रांति की ओर बढ़ रहा है।

दैनिक जीवन में कठिन समय में प्रार्थना मन को शांत करने का एक अचूक उपाय रहता है। आप अपने किसी विश्वसनीय मित्र या परिवार जन से मन का तनाव साझा करके भी मन को हलका कर सकते हैं। यदि कोई ऐसा सान्निध्य न हो तो एकांत में डायरी लेखन का अभ्यास भी किया जा सकता है। यह मन के तनाव या गुबार को हलका करने का एक प्रभावी उपाय रहता है।

रचनात्मक लेखन इसका अगला चरण हो सकता है। इसके बल पर व्यक्ति कठिन समय में भी आनंदपूर्ण वातावरण की सृष्टि कर लेता है। उन पलों को याद करें, जब आप शांत थे, प्रसन्न व प्रमुदित थे। अपने पुराने स्वर्णिम पलों के एलबम या विडियोज शिथिल मन में नए उत्साह का संचार कर सकते हैं। इसी प्रक्रिया में किसी प्रेरक या मनोरंजक कथा, संगीत, संग या किसी स्थान से जुड़ा अनुभव भी याद कर सकते हैं।

अपने आत्मीय मित्रों या परिवार जनों से ऐसे पलों की चर्चा कर पुरानी यादें भी ताजा की जा सकती हैं। आपस में हलकी-फुलकी विनोदपूर्ण बातें हलका करती हैं। इसके साथ ठहाका मारकर हँसने का अभ्यास भी किया जा सकता है। जब भी ऐसा कोई अवसर मिले तो उसे चूकें नहीं जब बहुत अधिक बैठने से मन ऊब रहा हो तो घर से बाहर निकलें व टहलें। इससे भी विश्राम की आवश्यकता पूरी होती है।

प्रकृति की गोद में ऐसा प्रयोग अधिक प्रभावशाली रहता है। कोरोनाकाल में जब जीवन घर की चहारदीवारी में सिमट गया हो तो ऐसे में बाहर खुली हवा में, धूप में निकलना एक स्वास्थ्यवर्द्धक एवं विश्रांतिदायक अनुभव रहता है। इन पलों में कोई ऐसा कार्य करें, जिसमें आप आनंद लेते हों। यह रसोईघर से लेकर बागवानी, गायन, कला आदि कुछ भी हो सकता है।

अगर संभव हो तो आप किसी खेल को भी आजमा सकते हैं। साथ ही दूसरों से आशा-अपेक्षाएँ कम ही रखें; क्योंकि पूरा न होने पर ये मानसिक अशांति का कारण बनती हैं। संबंधों में कटुता एवं नकारात्मकता भाव भी मानसिक रूप से तनाव व थकान का कारण बनते हैं। ऐसे में दूसरों के उपकारों का स्मरण करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता का भाव बनाए रखें।

जीवन में जो अच्छा हुआ है या हो रहा है, उसको याद कर मन को सकारात्मक रखें। इसके साथ तनावपूर्ण वातावरण से स्वयं को अलग करें तथा एकांत, शांत या रुचिकर स्थल पर जाएँ। यदि संभव हो तो हरे-भरे एवं फूलों से खिले बगीचे में या जंगल में जाएँ। हवा में तैरती फूलों की खुशबू को अनुभव करें।

ऐसे में किसी पालतू पशु का सान्निध्य भी एक सहायक अनुभव रहता है। इसके अतिरिक्त नियमित व्यायाम करें। किसी भी तरह के नशे से बचें नींद पूरी लें। हलका फुलका सुपाच्य एवं पौष्टिक आहार करें तथा कुपथ्य से बचें। अपनी शांति को महसूस करें। टीवी से लेकर मोबाइल आदि में कम समय बरबाद करें तथा किसी रचनात्मक कार्य में व्यस्त हो जाएँ।

जितना हम ऐसा करेंगे, उतना जीवन के संघर्ष के बीच भी तन-मन से विश्रांति के पल जी सकेंगे और जीवन का भरपूर आनंद उठा सकेंगे।

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

नवंबर, 2021 अखण्ड ज्योति

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