जिस तरह नदी का चलता पानी स्वच्छ व स्वास्थ्यप्रद होता है और एक ही स्थान पर ठहरा पानी गँदला और स्वास्थ्य विनाशक होता है। उसी तरह से इच्छाशक्ति जीवन में आगे बढ़ने और कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करती रहती है और इसके अभाव में हमें वर्तमान परिस्थितियों में ही सन्तुष्ट होना पड़ता है। मनुष्य की जैसी इच्छा होती है, वह वैसा ही बनता चला जाता है। कवि, लेखक, वक्ता, वकील, डॉक्टर, इंजीनियर आदि बनने की इच्छा रखने वाला अपनी क्रियाओं को उसी दशा में मोड़ मोड़ देता है और अपनी सारी शक्तियों को एकाग्र करके उसी में लगा देता है। परिणाम स्वरूप वह वही बन जाता है। इच्छा एक ऐसी वस्तु है, जो आसानी से हमारे स्वभाव में आ जाती है। इसलिए दृढ़ इच्छा करना सीखो और उस पर दृढ़ बने रहो। इस तरह से अपने अनिश्चित जीवन को निश्चित बनाकर उन्नति का मार्ग प्रशस्त करो। जिस मनुष्य में कोई इच्छा नहीं होती, वह क्रियाहीन और निरूत्साही बना रहता है। ऐसे ही मनुष्य संसार में दीन-हीन दशा में देखे जाते हैं। इच्छाशक्ति का देव से ऐसा घनिष्ठ सम्बन्ध है, कि हम सच्चे दिल से जो कुछ होने की इच्छा करें, वही हो सकते हैं। ऐसा कोई नहीं है, जिसकी उत्कट इच्छा आज्ञाकारी, सन्तोषी, नम्र अथवा उदार होने की हो और वह वैसा ही न हो जाय। यदि हम आलसी बन कर अपना जीवन बिता देते हैं, तो भगवान के द्वारा दिये गये उत्तरदायित्व को निभाने से जी चुराते हैं, अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने से भागते हैं। महापुरुषों ने संसार में जितने बड़े-बड़े कार्य किए हैं, उनमें इसी इच्छा शक्ति का मुख्य सहारा था। यह तो सभी कार्यों की जड़ है। इसके बिना तो किसी कार्य का आरम्भ होना सम्भव नहीं है। हमारा भविष्य हमारे अपने हाथों में हैं। उसको बनाने वाले हम स्वयं ही हैं। यह व्यक्ति विशेष की बुद्धि और विवेक पर निर्भर है कि वह अपनी इच्छाशक्ति को किस ओर लगाये? चोर-डाकू भी इसके आधार पर सफल होते हैं और सन्त, महात्मा और महापुरुष भी इसी शक्ति के सहारे समाज में क्रान्तियाँ करते हैं। अपनी शक्ति को जागृत करने के लिए हमें अपनी इच्छाशक्ति को बढ़ाना चाहिये और अपने जीवन का एक निश्चित मार्ग चुन लेना चाहिये।
( संकलित व सम्पादित)
– अखण्ड ज्योति जून 1959 पृष्ठ 39