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हँसते रहो, मुस्कुराते रहो

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उठो! जागो! रुको मत!!! जब तक की लक्ष्य प्राप्त न हो जाए। कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से वैर आगे नहीं बढ़ता। अपने ही मन में कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन। जो अपने कर्तव्य कार्य में जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज में नहीं रहता उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है। जीवन में उतार-चढ़ाव आते ही रहते हैं। हँसते रहो, मुस्कुराते रहो। ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीं, मुस्कराए नहीं। जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं। उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढ़ना नहीं चाहिए।

हारिए न हिम्मत

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या

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