हिन्दू धर्म की कुछ अपनी विशेषताएं हैं। इन विशेषताओं के कारण ही इसे जगत में इतनी ऊँची पदवी प्राप्त थी। इसके प्रत्येक रीति रिवाज, पर्व, त्यौहार और संस्कार में महत्वपूर्ण रहस्य छिपा रहता है जो हमारे जीवन की किसी न किसी समस्या का समाधान करता है। हमारे मानसिक व आत्मिक विकास का साधन बनता है। शारीरिक व बौद्धिक उन्नति की ओर अग्रसर करता है, विचारों को एक नई मोड़ देता है।
जिस प्रकार से अन्य पर्व व त्यौहार महत्वपूर्ण रहस्यों का उद्घाटन करते हैं, उसी तरह से बसंत पंचमी का त्यौहार भी अपने अन्दर एक जीवन प्रेरणा लिए आता है। इस त्यौहार से हम जीवन का सूक्ष्म कायाकल्प करना आरम्भ करते हैं। मनुष्य योनि 84 लाख योनियों के पश्चात् प्राप्त होती है इसलिए हमारे मनः क्षेत्र में पशु वृत्तियों का आधिपत्य होता है मनुष्य की जैसी मानसिक वृत्तियां होती है वह वैसे ही कार्य करने पर बाध्य होता है। शरीर के कार्यों का संचालन तो मन के विचारों पर निर्भर करता है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने भौतिक उन्नति से आध्यात्मिक व मानसिक उन्नति को उत्तम समझा था और उन्होंने अपने मूल्यवान जीवनों को इन्हीं खोजों में लगा दिया था कि मानव का मानसिक व आत्मिक विकास किस प्रकार से हो?
बसंत पंचमी सरस्वती का – विद्या का त्यौहार है। जिस दिन हम पशुता से मनुष्यता की ओर बढ़ने की तैयारी आरम्भ करते हैं, बड़ी धूम धाम के साथ इस त्यौहार को मानते हैं इसलिए कि हमने जीवन के सबसे बड़े रहस्य को समझ लिया है कि बिना विद्या और ज्ञान के मनुष्य पशु होता है। आज हमने उससे ऊपर उठने का संकल्प किया है। उत्तम ग्रंथों के स्वाध्याय, सत्संग और ज्ञानोपार्जन के बिना विवेक की अनुभूति नहीं होती। कर्तव्य-अकर्तव्य, सत्य-असत्य, न्याय-अन्याय आदि के निर्णय करने को शक्ति व प्रेरणा जब तक जाग्रत नहीं होती तब तक मनुष्य मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता। मनुष्य के अन्य कार्य तो पशु बड़ी सुन्दरता व स्फूर्ति के साथ करते हैं। बल्कि कई बातों में तो पशु मनुष्य से बढ़ कर हैं। मनुष्य की श्रेष्ठता तो उपरोक्त गुणों के विकास में ही है।
बसंत का त्यौहार हर्ष व उल्लास का त्यौहार है इसमें नई नई उमंगें उत्पन्न होती हैं। इससे हम शोभा और सौंदर्य की वृद्धि करना सीखते हैं। जिस प्रकार से ऋतु में परिवर्तन होना आरम्भ होता है उसी तरह से हमारे जीवन में भी नवीन परिवर्तन का श्री गणेश होना चाहिए। बसंत के दिन लोग पीले बसंती नए कपड़े पहनते हैं । यह उज्ज्वल जीवन का प्रतीक है। इससे शोभा और सौंदर्य टपकता है। इसलिए हर वर्ष अपने जीवन में सौंदर्य वृद्धि के लिए इस दिन विचार करते हैं हमारे अन्दर जो मलिनताएं हैं, उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं।
बसंत के दिन सरसों, अरहर व अन्य प्रकार के पीले फूल लाये जाते हैं। उनका अभिप्राय यह होता है कि हमारा जीवन भी फूल जैसा आदर्श बनना चाहिए। फूल खिलता है, संसार को सुगन्धि देता है। वह किसी से कुछ माँगता नहीं, निरन्तर देने के स्वभाव बनायें रहता है। जब मनुष्य उसके शरीर पर आघात करता है तब भी वह दुःखी नहीं होता उसे क्षोभ नहीं होता है, तोड़ने वाले के ऊपर क्रोधित नहीं होता बल्कि शरीर त्यागने से पूर्व भी हँसते हँसते देवताओं, महापुरुषों, व विद्वानों के गले में सजावट का माध्यम बनता है। उसका यह कार्य अनुकरणीय है। हमारा जीवन भी फूल जैसा तपोमय हो, उज्ज्वल हो, यह प्रेरणा इस महान त्यौहार से हम ग्रहण करते हैं।
हमारे पूर्वज इस तथ्य को भली प्रकार से जानते हैं कि जिन सूक्ष्म गुणों की छाप मनुष्य के मस्तिष्क पर डालनी हो, उनका स्थूल रूप ही उनके सामने रखना उपयुक्त होता है, उसी से वह प्रेरणा ग्रहण कर सकते हैं। अपने बौद्धिक स्तर के अनुरूप ही मनुष्य हर एक विचार को अपनाता है। इस त्यौहार में भी ऐसा होता है। जिसक वस्तु को हम उत्तम समझते हैं, उसका सम्मान करते हैं, प्रतीक रूप में बस उस की पूजा करते हैं, यही सनातन पद्धति चली आ रही है, बसंत के दिन हम जीवन विद्या को सीखना आरम्भ करते हैं इसलिए विद्या के प्रतीकों का हमें सम्मान करना चाहिए, उनकी पूजा करनी चाहिए, जिसकी हम पूजा करते हैं, जनता की दृष्टि में वही श्रेष्ठ गिनी जाती है। विद्या, बुद्धि की प्रतीक सरस्वती हैं। सरस्वती देवी के एक हाथ में पुस्तक और दूसरे में वीणा होती है। ज्ञान प्राप्त करने के साथ साथ में उल्लास,स्फूर्ति, झंकार भी की आवश्यक है। वीणा के भजने से मन तरंगित होता है हमारे जीवन में विद्या के साथ साथ जीवन को सुन्दर व शोभायमान बनाने के लिए नई नई उमंगें पैदा हों।
तुम सरस्वती पूजन करते हैं ताकि हमारे अन्दर इन गुणों का विकास हो। इस दिन हम कागज कलम, दवात की पूजा करते हैं क्योंकि यही शिक्षा प्राप्त करने के साधन हैं। इस दिन हमें विद्वानों का सम्मान करना चाहिए। उन्हें सम्मान सूचक पद देने चाहिए ताकि साधारण व्यक्ति भी इस मार्ग की ओर अग्रसर हों, आम लोग उसी ओर चलते हैं जिसका विशेष प्रकार से सम्मान किया जाता है। चूँकि आज कल धनवानों की लोग कदर करते हैं इसलिए जनता की प्रवृत्ति अधिक धन प्राप्त करके सम्मान प्राप्त करने की है। इस प्रवृत्ति को हमें एक नई मोड़ देना है। हमारे सामने हर वर्ष यह शुभ अवसर आता है परन्तु हम उसे केवल मनोविनोद में ही समाप्त कर देते हैं। जनता के दृष्टिकोण को बदलने के लिये हमें विद्वानों का सम्मान विशेष धूमधाम के साथ करना चाहिए। वेद शास्त्रों की पूजा व उनके जुलूस निकालने चाहिए। सिख लोग अपने पवित्र धर्म ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहब का जुलूस निकाला करते हैं। हमें भी यह पद्धति अपनानी चाहिए।
शिक्षा और विद्या की वृद्धि के सम्बन्ध में जो भी विचार उत्पन्न हों, उन को क्रियान्वित करने का प्रयत्न करना चाहिए। पुस्तकालय, स्कूल, पाठशालाएं बढ़ाने के प्रयत्न होने चाहिए। गायन संगीत और भाषण के आयोजन होने चाहिए। उत्तम पुस्तकें लिखने वालों को पुरस्कार मिलने चाहिए। यदि हम उनको कुछ भेंट देने की स्थिति में न हो तो उनका विशेष सम्मान करना चाहिए । बच्चों को उत्साहित करने के लिए इनाम देने चाहिए। सरस्वती के चित्र का पूजन व जुलूस निकलना चाहिए।
बसंत का त्यौहार हमारे लिए पीले फूलों की जयमाला लिए खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जायेगी जो लोग उस दिन से पशुता से मनुष्यता, अज्ञानता से ज्ञान अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने का दृढ़ संकल्प करते हैं और जिन्होंने तप, त्याग और अध्यवसाय से इन्हें प्राप्त किया है, उनका सम्मान करते हैं, संसार में ज्ञान गंगा को बढ़ाने के लिए भागीरथ जैसा तप करने की प्रतिज्ञा करते हैं। श्रेष्ठता का सम्मान करने वाला ही श्रेष्ठ होता है। इसलिए आइए हम इस शुभ अवसर पर उत्तम मार्ग का अवलम्बन लें।
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1960