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पुरुषार्थ की उपासना

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जो ये चाहते हैं कि कोई हमारी सहायता करे, हमें जीवन-पथ पर – चलने की दिशा दिखाए; जो सोचते हैं कि कैसे करें ? वे अंधकार में ही निवास करते हैं। ऐसी स्थिति से समाज में दासवृत्ति को जीवन और पोषण मिलता है; क्योंकि तब हम दूसरों का मुँह ताकते हैं और दूसरों से आशा रखते हैं; ऐसे परावलंबी व्यक्ति कभी सफलता प्राप्त नहीं कर सकते और न वे अपनी स्वतंत्रता की रक्षा ही कर सकते हैं। हमें अपने ही पैरों पर आगे बढ़ना होगा। अपने आप ही अपनी मंजिल का रास्ता खोजना होगा। अपने पुरुषार्थ से ही अपने अधिकारों की रक्षा करनी होगी।

आज के युग में जीवन-संघर्ष और भी अधिक बढ़ गया है। आज मनुष्य के लिए दो ही मार्ग रह गए हैं- एक ठेलने वाला और दूसरा ठेले जाने वाला । क्या हम दूसरों की ठोकरों में लुढ़कने के लिए अपने आप को छोड़ दें ? हम दृढ़प्रतिज्ञ होकर कुछ करें, कर दिखाएँ या फिर उदासीन होकर भाग्य और दूसरों की आशा लगाए जिंदगी के दिन पूरे करते रहें। पराधीनता के रूप में जीवित, मृत्यु की यंत्रणा भुगतते रहें। पुरुषार्थ ही हमारी स्वतंत्रता और सभ्यता की रक्षा करने के लिए दृढ़ दुर्ग है; जिसे कोई भी बेच नहीं सकता। हमें अपनी शक्ति पर भरोसा रखकर, पुरुषार्थ के बल पर जीवन संघर्ष में आगे बढ़ना होगा। यदि हमें कुछ करना है, स्वतंत्र रहना है, जीवित रहना है, तो एक ही रास्ता है – पुरुषार्थ की उपासना। पुरुषार्थ ही हमारे जीवन का मूलमंत्र होना चाहिए।

युग निर्माण योजना

अक्टूबर, २०२०

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