आज दुनिया जल संकट की समस्याओं से जूझ रही है। दिन-प्रतिदिन विकट होते जा रहे जल संकट से मुक्ति की पुकार सब तरफ सुनी जा सकती है। पानी पर बात करने के लिए सभी तैयार है, किंतु आश्चर्य है कि पानी बचाने और उसका सही प्रबंधन करने के प्रश्न पर सौधी भागीदारी की बात जब आती है, तब लोग किनारा कर जाते हैं।
सब जानते हैं कि जल जीवन का पर्याय है। पर उसी जल के जीवन के लिए सार्थक हस्तक्षेप से आनाकानी करने की आदत से बाज नहीं आते हैं। हम मानते जरूर हैं कि जाल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है, हम जानते हैं कि जल हमारे लिए कितना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसका इस्तेमाल करते वक्त हम यह भूल जाते हैं कि बेतरतील इस्तेमाल का बे इंतिहा हक हमें किसी ने नहीं दिया है।
हम जल का दोहन करना तो जानते हैं, किंतु उसके संरक्षण में हमारी रूचि जवाब देने लगती है। हम यह भी जानते हैं कुछ घंटे या कुछ दिनों तक भूखे तो रहा जा सकता है, पर पानी पिए बगैर कुछ दिनों के बाद जीना भी मुमकिन नहीं है। फिर भी अफसोस की बात है कि हम जल का दुरुपयोग एवं उसकी उपेक्षा करने के आदी हो गए हैं।
अब समय की माँग है कि जल संसाधनों के प्रबंधन को हमें निवी जीवन ही नहीं, सामाजिक सरोकार से जोड़कर आगे कदम बढ़ाना चाहिए तथा इसके लिए स्थायी तरीके खोजने चाहिए। वहीं स्थायी जल प्रबंधन की रणनीति में भारत की युवा शक्ति का समुचित निवेश करना चाहिए। इधर यह खबर भी हौसला बढ़ाने वाली है कि जल प्रबंधन पर शोध के लिए होनहार युवक आगे आ रहे।
कई युवाओं को इस संदर्भ में अनेक पुरस्कार भी मिल चुके हैं। जल संरक्षण एवं प्रबंधन के कार्य में अनेक युवा आज शोधरत हैं। यहाँ इस उल्लेख का तात्पर्य यह है कि हमारे युवाओं में योग्यता, लगन, जुनून, जन्बा सब कुछ है, जिनका इस्तेमाल पानी के सवालों को हल करने के साथ ही सही ढंग से सही समय पर किया जाए तो बात बन जाए।
कौन नहीं जानता कि पानी प्रकृति की सबसे अनमोल धरोहर है। यह विश्वसृजन और उसके संचालन का आधार है। मानव संस्कृति का उद्गाता है। मानव सभ्यता का निर्माता है। पानी जीवन के लिए अनिवार्य है। पानी के बिना जीव जगत् के अस्तित्व और साँसों की यात्रा की कल्पना भी संभव नहीं है। फिर भी सभी लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल पाता है। खेती किसानी की आशाएँ पानी के अभाव में धूमिल हो जाती है।
नदियों का कलकल निनाद कब अवसाद में बदल जाएगा, कोई नहीं जानता? जलाशयों का जीवन कब ठहर जाएगा, कह पाना मुश्किल है। पानी न मिलेगा तो परिंदों की उड़ान पर भी सवालिया निशान लग जाएगा। वैसे भी उड़ान के लिए पानी रखने की जरूरत को हम भुला बैठे हैं। युवा शक्ति को स्वयंसेवी उद्यम के साथ-साथ रोजगारमूलक अभियानों में नियोजित किया जाना चाहिए, ताकि वे जल चेतना के दूत बनकर व्यावहारिक स्तर पर श्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। युवा शहरों और गाँवों में पहुंचकर अच्छी आदतों से बचत का सार तत्य लोगों तक पहुंचाएँ। पानी पर हमारी निर्भरता दिनोदिन बढ़ती जा रही है और वहाँ पानी के स्रोत दिनोदिन घटते जा रहे हैं।
हमें पेयजल, दैनिक दिनचर्या, कृषिकार्यों और उद्योग धंधों में पानी की आवश्यकता होती है, जिनकी पूर्ति के लिए हम उपलब्ध जल संसाधनों के साथ-साथ भूजल का भी भयानक दोहन कर रहे हैं। लगातार हो रहे दोहन से भूजल का स्तर प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है। परिणामस्वरूप जलस्रोत सूखने लगे हैं। जल संकट गहराने लगा है। वर्षा भूजल स्रोत बढ़ाने का कार्य करती 8 1 भारत में औसतन 1300 मिलीमीटर के आस-पास बारिश होती है।
अगर हम वर्षा जल का उचित प्रबंधन करें तो यह हमारी आवश्यकताओं के हिसाब से पर्याप्त है। जरूरत है तो केवल वर्षा के जल को सहेजने की। वैसे भी पानी कोई समस्या नहीं है, बल्कि पानी का भंडारण और पानी को प्रदूषित होने से बचाना एक चुनौती है।
हमारी युवा पीढ़ी इस सत्य को समझे और दूसरे लोगों को भी समझाए कि जल पर्यावरण का अभिन्न अंग है। यह मनुष्य को मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है। मानव स्वास्थ्य के लिए स्वच्छ जल का होना नितांत आवश्यक है
जल की अनुपस्थिति में मानव कुछ दिन ही जिंदा रह पाता है; क्योंकि मानव शरीर का एक बड़ा हिस्सा पानी होता है। अतः स्वच्छ जल के अभाव में किसी प्राणी के जीवन की क्या, किसी सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह सब आज मानव को मालूम होते हुए भी वह बिना सोचे-विचारे उसके जलस्त्रोतों में ऐसे पदार्थ मिला रहा है, जिनके मिलने से जल प्रदूषित हो रहा है।
जल संकट को दूर करने के कुछ उपाय इस तरह संभव है- अत्यधिक जल दोहन रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाएं, जिनमें सजा का प्रावधान हो तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण करते हुए तथा परस्पर विवादों को समाप्त करते हुए इस समस्या का शीघ्र निदान किया जाए।
इसके साथ ही ऐसी विधियों की खोज की भी आवश्यकता है, जिनसे समुद्री जल का शोधन कर उसका कृषि कार्यों में उपयोग किया जा सके। साथ ही कोई ऐसी व्यवस्था भी बनाई जाए, जिसके तहत नदियों के मीठे जल का अधिक-से-अधिक उपयोग किया जा सके।
भूगर्भीय जलभंडार की पुन: देख-रेख करने के अलावा छत से बरसाती पानी को सीधे किसी टैंक में भी जमा किया जा सकता है। बड़े संसाधनों के परिसर की दीवार के पास बड़ी नालियाँ बनाकर पानी को जमीन पर उतारा जा सकता है। इसी प्रकार कुओं में भी पाइप के माध्यम से बरसाती पानी को उतारा जा सकता है। इसी प्रकार वर्षा जल को एक गड्ढे के जरिए सीधे धरती के भूगर्भीय जल-भंडारण में उतारा जा सकता है।
जल संरक्षण से कुछ सीमा तक जल संकट की समस्या का निराकरण किया जा सकता है। जल को प्रदूषण से मुक्त रखने तथा इसकी उपलब्धता को बनाए रखने के कुछ और उपाय भी किए जा सकते हैं, जैसे वर्षा जल संरक्षण (रेन वाटर हारवेस्टिंग) को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
मकानों की छत के बरसाती पानी को ट्यूबवैल के पास उतारने से ट्यूबवैल रिचार्ज किया जा सकता है। शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी अपने मकानों की छत से गिरने वाले वर्षा के पानी को भूमि में समाहित कर भूमि का जलस्तर बढ़ा सकते हैं।
पोखरों में एकत्रित जल से सिंचाई करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे भूमिगत जल का उपयोग कम हो। शहरों में प्रत्येक आवास के लिए रिचार्ज कूपों का निर्माण अवश्य किया जाना चाहिए, जिससे वर्षा का पानी नालों में न बहकर भूमिगत हो जाए।
तालाबों, पोखरों के किनारे वृक्ष लगाने की पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया जाना चाहिए। ऊँचे स्थानों, बाँधों इत्यादि के पास गहरे गड्ढे खोदे जाने चाहिए, जिससे उनमें वर्षा जल एकत्रित हो जाए और परिणामस्वरूप बहकर जाने वाली मिट्टी को अन्यत्र जाने से रोका जा सके।
कृषि भूमि में मृदा की नमी को बनाए रखने के लिए हरित खाद तथा उचित फसल चक्र अपनाया जाना चाहिए। कार्बनिक अवशिष्टों का प्रयोग कर इस नमी को बचाया जा सकता है। वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए शहरी मकानों में आवश्यक रूप से वाटर टैंक लगाए जाने चाहिए। इस जल का उपयोग अन्य घरेलू जरूरतों की पूर्ति में भी किया जाना चाहिए।
जल हमें नदी, तालाब, कुएँ, झील आदि से प्राप्त हो रहा है। जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण आदि ने हमारे जल स्रोतों को प्रदूषित किया है, जिसका ज्वलंत प्रमाण है हमारी पवित्र पावन गंगा नदी – जिसका जल कई वर्षों तक रखने पर भी स्वच्छ व निर्मल रहता था, लेकिन आज यही पावन नदी गंगा ही क्यों, बल्कि कई नदियाँ व जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं।
यदि हमें मानव सभ्यता को जल प्रदूषण के खतरों से बचाना है, तो इस प्राकृतिक संसाधन को प्रदूषित होने से रोकना नितांत आवश्यक है अन्यथा जल प्रदूषण से होने वाले खतरे मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जाएँगे। इसलिए ‘बिन पानी सब सून’ की सीख को अधिक अनसुनी न करने में ही बुद्धिमानी है।
–पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, नवंबर 2021