अधिकांशत: व्यक्ति काम को टालने के रोग से ग्रस्त हैं। कितने ही कार्य ऐसे होते है जिन्हें तुरंत ही किया जाना चाहिए, परंतु कल-कल कहकर उन्हें टाला जाता है और वह कल कभी आता ही नहीं। अंगरेजी के प्रसिद्ध कवि शेक्सपीयर ने ठीक ही कहा है -“आज का अवसर घूमकर खो दो, कल भी वही बात होगी और फिर अधिक सुस्ती आएगी।”
काम टालने की प्रवृत्ति से बहुत-सी हानियाँ हैं। इससे हमारी कार्य-कुशलता पर प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे हम काम टालते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी संख्या बढ़ती जाती है। परिणाम यह होता है कि कामों के ढेर पर जब हमारी दृष्टि जाती है, तो खीझकर हम उनकी ओर से अपनी दृष्टि हटा लेते हैं और सारे कार्य अपूर्ण ही बने रहते हैं। कार्य टालने की वृत्ति का चरित्र पर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे वह आदत बढ़ती जाती है, अनुत्तरदायित्व और कर्त्तव्यहीनता की भावना दृढ़ होती जाती है। यही नहीं, अपने आलस्य के औचित्य को सिद्ध करने के लिए विभिन्न बहाने बनाने पड़ते हैं, सैकड़ों झूठ बोलने पड़ते हैं।
अच्छा हो, इस दुष्प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखें। निश्चय कर लें कि प्रत्येक कार्य निश्चित समय पर करेंगे। हो सकता है ऐसा करने में प्रारंभ में थोड़ी अड़चन हो, परंतु एक दिन पाएंगे कि हम सफलता की ऊंची सीढियों पर चढते जा रहे हैं। दिनभर के कार्यों को पूरा करने की एक अच्छी विधि यह भी है कि जो भी कार्य करने हों, उनकी सूची प्रातःकाल ही बना ली जाए। सायं ढलते-ढलते सभी कार्यों को विधिवत पूरा कर लिया जाए और रात्रि में निश्चिंत हो निद्रा की गोद में सोया जाए।
युग निर्माण योजना, अप्रैल – २००५