व्यवहार की मधुरता, सरलता और निष्कपटता में वह शक्ति होती है जो दूसरों के बंद द्वार खोल देती है। प्रारंभिक मिलन के मधुर व्यवहार से ही उसके व्यक्तित्व का पता चल जाता है। उसमें एक अलौकिक चुंबक शक्ति होती है जो लोगों के बंद हृदय का द्वार खोल देती है। मनुष्य को योग्यता, बुद्धिमत्ता और सामर्थ्य से भी अधिक सम्मोहन उसके विनीत स्वभाव में होता है। ऐसे व्यक्ति मिल जाते हैं तो उन्हें छोड़ने का जो नहीं करता। थोड़ी देर और बात करने का हर किसी का मन करता है। भाव और भाषा की विनयशीलता में वह रस, वह प्रेम होता है जो अनजान आदमियों को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। विनीत होना मनुष्य के पात्रत्व का लक्षण है, सहयोग प्राप्त करने का साधन है।
नम्रता के लिए हृदय में दुविधा नहीं होनी चाहिए। यह याद रखना है कि चालाक, स्वार्थ-बुद्धि और चाटुकार व्यक्ति भी अच्छी-अच्छी बात बनाकर तात्कालिक लाभ के लिए दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने मिथ्या व्यवहार का अधिक देर लाभ नहीं उठा सकते। उनके अभद्र व्यवहार का पता चलेगा तो लोगों की भर्त्सना, निंदा और अपमान के अतिरिक्त और कुछ न मिलेगा।
आपकी वाणी से जैसे शब्द निकलें वैसे ही मन में भाव भी हों। जिसके विचार और कर्म, व्यवहार और सिद्धांत में एकता नहीं होगी उसे कभी भी औरों को आत्मीयता नहीं मिलेगी। यह वस्तुतः स्वार्थवादी दृष्टिकोण है, जिससे अपने भी पराये हो जाते हैं और जीवन का संपूर्ण प्रेम-रस सूख जाता है।
वाणी की सरलता के साथ-साथ विचारों की सबलता भी अपेक्षित है, इसके बिना जीवन में स्थिरता नहीं आती, चरित्र ऊँचा नहीं उठता उदात्त चरित्र के व्यक्ति औरों को बड़ी आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। विद्वान दार्शनिक जे, हावेज का कथन है- “चरित्र एक शक्ति है, प्रभाव है। वह मित्र उत्पन्न करती है, सहायता और संरक्षण प्राप्त करती है और धन, मान तथा सुख का निश्चित मार्ग खोल देती है।”
ऐसे प्रबल आकर्षण शक्ति वाले लोग कभी मिल जाते हैं तो बड़ी प्रेरणा मिलती है। लोग तत्काल ही उनके लिए अपनी भावनाओं का द्वार खोल देते हैं। बिना किसी हिचक या झिझक के उनके समक्ष लोग आत्मसमर्पण कर देते हैं। उनके संपर्क में आने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे बाह्य जगत के सुखों से कुछ ऊपर उठ गए हों। हमारा दृष्टिकोण उनके लिए विस्तृत और विशाल बन जाता है। आत्मीयता प्राप्त करना सचमुच कोई जादूगरी नहीं है, वह विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक प्रशस्ति है। अर्थात अपने-पराये की भेद बुद्धि का जिस क्षण परित्याग कर देते हैं, उसी समय दूसरे का हृदय-द्वार हमारे लिए खुल जाता है, हम मैत्री पा लेते हैं, सहयोग और आत्मीयता प्राप्त कर लेते हैं।
ऐसी आत्मीयता के कारण अंत:करण में नए उत्साह और नई आशाओं का संचार होता है। अपने अंदर भी सद्गुणों के विकास का संकल्प जाग्रत होता है। हम जब स्वयं दूसरों के साथ ऐसा ही मधुर व्यवहार करते हैं तो यही प्रतिक्रिया दूसरों के दिलों में उत्पन्न होकर उन्हें आत्मविभोर बना देती है। चरित्र को दृढ़ता और वाणी की सरलता के साथ अभिव्यक्त आत्मा ही संपूर्ण सुखों की जननी है। जिनका जीवन इस प्रकार बन गया है, उनके संपर्क में रहने वाले लोग भी धन्य हैं। उन्हें स्वर्गीय सुखों की अनुभूति इसी जीवन में होती रहती है।
आपके व्यक्तित्व को यह मोहक शक्ति आपको बल तो प्रदान करेगी ही, साथ ही आपको भौतिक सफलताओं की संभावनाएँ भी बढ़ेगी। दूसरों को प्रसन्न करने की कला जिन्हें नहीं आती, वे जीवन व्यापार में असफल ही रहते हैं। प्रसन्नता प्रदान करने का तात्पर्य यह नहीं कि केवल मीठी-मीठी बातें तो करें किंतु उद्देश्य स्वार्थमय बना रहे। सच्ची प्रसन्नता, अपनी स्नेहशीलता, संवेदनशीलता, सेवा, सहानुभूति, उदारता, भद्रता आदि नैतिक सद्गुणों के द्वारा विकसित होती है।
इस मार्ग में बाह्य परिस्थितियाँ कभी भी बाधक नहीं हो सकी। कठिनाइयों में भी स्नेह और करुणा की ज्योति जगाई जा सकती है। आत्मिक सौंदर्य तो यथार्थतया मुसीबतों में ही निखरता है। ऐसे गुणों का विकास करना जो सबको प्रिय हों, लोकप्रिय बनने का मूल मंत्र है। ईर्ष्या द्वेष यह मनुष्य का दूषण है। इसे कोई नहीं चाहता इसलिए हमें भी किसी से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। प्रेम की भावनाएँ और अपनी शुभ कामनाएँ दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, इसलिए हमें भी स्वहित से उठकर सबसे प्यार पैदा करना चाहिए। जो दूसरों की सहायता नहीं कर सकता, भला उसका भी कोई सहयोग करेगा।
अपनी आत्मा को हम जिस वस्तु में मिला देते हैं, वही वस्तु अतिशय प्रिय बन जाती है। अपना काला-कलूटा बच्चा, दूसरे के गोरे खूबसूरत बच्चे से कहीं अधिक प्यारा लगता है। इसलिए कि अपने बच्चे के साथ अपनी आत्मा संयुक्त होती है। आत्मा का क्षेत्र व्यापक है, विशाल है। इसे जितना अधिक विकसित करते हैं, उतना ही अधिक सुख और आत्मतोष मिलता है। अपनी आत्मा जब फैलकर विश्वात्मा में फूट पड़ती है तो संसार के संपूर्ण प्राणियों में अपनी ही आकृति नजर आती है। जब ऐसी स्थिति आती है तो हमारे अंत:करण में सभी के लिए प्यार होता है, आत्मीयता होती है। अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं तभी दूसरों के हृदय जीत लेते हैं। इस सिद्धांत पर जिनके जीवन आधारित होंगे, वे सचमुच इसी धरती में स्वर्गलोक के मुखों का उपभोग कर रहे होंगे।
जिंदगी हँसते-खेलते जिएँ
~पं. श्रीराम शर्मा आचार्य