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युग निर्माण योजना के सात आंदोलन

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पिछले हजार वर्षों से जिस अज्ञानांधकार युग में हमें रहना पड़ा है, उसके फलस्वरूप हमारे चिंतन की दिशा में विकृतियों को मात्रा इतनी बढ़ गई कि प्रगति के लिए किए गए सभी प्रयत्न उल्टे पड़ते हैं। सुधार एवं प्रगति की सभी योजनाएँ चारित्रिक दुर्बलता से टकराकर निष्फल हो जाती हैं। कारण की तह तक हमें जाना होगा और भावनात्मक नवनिर्माण के लिए एक ऐसा प्रचंड अभियान चलाना होगा, जो जनमासन को चरित्रनिष्ठा, आदर्शवादिता, मानवीय सद्भावना प्रचंड कर्मठता और औचित्य को अपनाने की साहसिकता से ओत-प्रोत कर दे। इस आंदोलन को जितनी सफलता मिलती जाएगी, उसी क्रम से प्रगति का पथ प्रशस्त होता जाएगा। युग निर्माण आंदोलन अगले दिनों जिस प्रचंड रूप से मूर्तिमान होगा, उसकी रहस्यमय भूमिका कम ही लोगों को विदित है, पर यह निश्चित है कि यह आंदोलन बहुत ही प्रखर और प्रचंड रूप से उठेगा और पूर्ण सफल होगा। सफलता का श्रेय किन व्यक्तियों एवं किन संस्थाओं को मिलेगा, इससे कुछ बनता बिगड़ता नहीं, पर होना यह निश्चित रूप से है। इस उज्ज्वल भविष्य की कृषि को बोने, उगाने एवं सींचने के लिए जिन कर्मठ भुजाओं की आवश्यकता है, उनकी आज जरूरत पड़ रही है।

आंदोलन का अंतिम चरण संघर्षात्मक होगा, क्योंकि असुरता केवल अनुरोध एवं विनय से मिटने वाली नहीं है। उसके लिए पग-पग पर लड़े जाने वाले संघर्ष की आवश्यकता पड़ेगी। व्यक्तिगत तृष्णा, वासना, संकीर्णता, स्वार्थपरता, विलासिता, कामचोरी और अशिष्टता जैसी बुराइयों से आत्मसुधार एवं आत्मनिर्माण के आत्मसाधना स्तर पर लड़ा जाएगा। व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व स्तर की विकृतियों से उसी स्तर के हथियारों से लड़ा जाएगा। समग्र परिवर्तन का उद्देश्य लेकर प्रारंभ किया गया युग निर्माण आंदोलन अब संघर्षात्मक कार्यक्रमों तक आ पहुँचा है। यह इस आंदोलन का अंतिम चरण है, जिसमें समग्र परिवर्तन की सुनिश्चित संभावनाएँ विद्यमान हैं।

(1) आस्तिकता संवर्द्धन आंदोलन- आस्तिक व्यक्ति ही सच्चा क्रांतिकारी हो सकता है। जबरन थोपा हुआ परिवर्तन स्थायी भी नहीं रहता और परिवर्तनों के प्रति जनश्रद्धा नहीं होती तो जनता में उल्लास, उमंग एवं प्रसन्नता का स्रोत सूखा ही रहता है। भारत की भूमि पर क्रांतिकारी, संत महात्मा ही हुए हैं। कोई भी जन आंदोलन धार्मिकता और आस्तिकता का संबल लिए बिना सफल हो सकेगा, इसमें संदेह ही रहता। इस आंदोलन के योद्धा आस्तिक हों, हर प्राणी में ईश्वर का आभास उन्हें होगा तो हर प्राणी की सेवा ईश्वर सेवा मानकर करेंगे ऐसे आस्तिक योद्धा जन-जन को आस्तिक बनाएँ तो आस्तिकता का अमृत, प्रेम, भाईचारा, सहृदयता, दया, करुणा, सहयोग के रूप में समाज में फैले तो अन्य आंदोलनों को चलाने की आवश्यकता ही न पड़े। आस्तिकता की भावनाएँ जहाँ-जहाँ पहुँचती जाएँगी, वहाँ-वहाँ समाज का कायाकल्प होता हुआ नजर आएगा।

(2) स्वास्थ्य संवर्द्धन आंदोलन- प्रसन्नता से भरे समाज का निर्माण व्यक्तियों के शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। समग्र स्वास्थ्य-संवर्द्धन का आंदोलन जन-जन तक पहुँचाया जाए। शारीरिक स्वास्थ्य हेतु आहार-विहार, मानसिक स्वास्थ्य हेतु आचार-विचार और आत्मिक स्वास्थ्य हेतु उपासना द्वारा कषाय- कल्मष विहीन पवित्रता आवश्यक है। समग्र रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही संघर्ष में सहयोगी होते हैं। जन-जन को स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी देना, स्वस्थ रहने के तरीकों से अवगत कराना, इस आंदोलन के मुख्य कार्यक्रम हैं।

( 3) नारी-जागरण आंदोलन- समाज की आधी जनसंख्या को पददलित और अपंग बनाकर पुरुष वर्ग ने कुछ खोया ही है, पाया कुछ नहीं है। इस मिशन का यह आंदोलन पश्चिम के ‘नारी मुक्ति आंदोलन’ से भिन्न है। जहाँ नारी मुक्ति आंदोलन नारी को मनमाने, उच्छृंखल और अशिष्ट व्यवहार हेतु मुक्त कराता है, वहाँ नारी जागरण आंदोलन समाज को नारी की गौरव-गरिमा एवं उसकी आत्मिक संपदा से अवगत कराकर उसे सम्मानित कराता है तथा उस पर लगे अनावश्यक प्रतिबंधों को हटाने की माँग करता है। साथ ही नारी को उसके कर्त्तव्य के प्रति भी सचेत करता है। बच्चों तथा परिवार में अच्छे संस्कार एवं परंपराएँ डालना, प्रगतिशील नारी द्वारा ही संभव है। इस देश को नारी पर से अनावश्यक प्रतिबंध हटा लिए जाएँ और उसे आगे बढ़ने का पूरा अवसर प्रदान किया जाए तो समाज का कायाकल्प हो सकता है। २१वीं सदी मातृ सदी के रूप में आ रही है। इसमें नारी केवल अपनी गौरव- गरिमा को ही प्राप्त नहीं करेगी वरन बहुत ही आश्चर्यजनक उपलब्धियाँ प्राप्त करेगी।

(4) सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन – दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन आंदोलन- समाज में यदि सत्प्रवृत्तियों की हवा फैले तो दुष्प्रवृत्तियों की जड़ उखड़ जाएगी। यह आंदोलन हमें अपने आप से संघर्ष कराएगा। हमें अपनी एवं अपने स्वजनों की दुष्प्रवृत्तियों से संघर्ष करना पड़ेगा। परिवार एवं समाज में फैली मूढ़ मान्यताओं एवं दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ेगा।

(5) कुरीति उन्मूलन आंदोलन- समाज में सभी व्यक्ति विवेक से काम लेकर अपने कार्यों का निर्धारण नहीं करते। अधिकांश व्यक्ति परंपरावादी होते हैं और प्रचलित रीति-रिवाजों को बिना तर्क की कसौटी पर कसे अपनाते रहते हैं। बहुत-सी कुरीतियाँ समाज के लिए बहुत हानिकारक भी हैं। इन कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए प्राणवान, जुझारू एवं संघर्षशील व्यक्तियों की आवश्यकता होगी।

(6) व्यसन मुक्ति आंदोलन- तंबाकू, शराब आदि व्यसन समाज को खोखला किए दे रहे हैं। मनुष्य को शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ बनाने में इन व्यसनों की बहुत बड़ी भूमिका है। पारिवारिक कलह एवं विनाश में तथा समाज में व्याप्त अपराधों के लिए व्यसन मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। समाज को यदि व्यसन मुक्त बनाया जा सका तो नवनिर्माण का उद्देश्य पूरा होता हुआ दिखाई देगा।

(7) विवाहोन्माद प्रतिरोध आंदोलन- विश्व के हर धर्म तथा हर देश में विवाह एक बिना खरच वाला सामान्य सा कृत्य है, लेकिन दुर्भाग्यवश हिंदू समाज में इस अत्यंत महत्त्वपूर्ण धार्मिक संस्कार को इतनी विकृतियों से भर दिया गया है कि इस संस्कार की मूल भावनाएँ बिलकुल समाप्त हो गईं हैं। दहेज जैसे पिशाच ने इस यज्ञ में हड्डियाँ डालकर जो विघ्न डाला है, उससे इस यज्ञ की रक्षा हेतु राम और लक्ष्मण जैसे वीर और क्रांतिकारियों की आवश्यकता होगी। खरचीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। यह चिंतन युवावर्ग में विशेष रूप से फैलाना है।

उपरोक्त सात आंदोलन की विस्तृत जानकारी ‘क्रांति की रूपरेखा’ पुस्तक में दी गई है। प्रत्येक गाँव, मुहल्ले में लगभग २४ युग सैनिकों का एक ‘युग सेना संगठन’ बनाया जाना चाहिए, जो इन आंदोलनों को अपने क्षेत्र में सफलतापूर्वक चला सके युग सेना संगठन बनाने की योजना और शपथपत्र युग सेना प्रकोष्ठ, युग निर्माण योजना, मथुरा- २८१००३ को पत्र डालकर मँगा सकते हैं।

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

ऋषि चिंतन के सानिध्य में (भाग-१)

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