सच्चा मनुष्य समाज में आदर पाता है। प्रत्येक मनुष्य उसमें विश्वास रखता है। लोग कहते हैं- “अमुक व्यक्ति बहुत ही सच्चा मनुष्य है। मैंने उसके समान किसी को भी अपने जीवन में नहीं देखा। उसके प्रति मुझमें बहुत ही आदर का भाव है, उसमें मेरी अटूट श्रद्धा है।” जो आदमी इस सुन्दर गुण से विभूषित है, वह अपने सारे प्रयासों में सफलता प्राप्त करता है। वह उत्तरदायित्व पूर्ण कामों के करने से पैर पीछे नहीं खींचता है। सच्चा मनुष्य प्रबल प्रेम तथा भक्ति के साथ कठिन काम करता है। वह अपने गुरु अथवा स्वामी के सारे उत्तरदायित्व को अपने ऊपर ले लेता है। वह सरल तथा स्पष्टवादी होता है।
वह किसी वस्तु को छिपाता नहीं। वह अपने विचारों को नहीं छिपाता। उसके विचार, उसकी वाणी तथा उसके कार्य में एकरसता होती है। झूठा मनुष्य कभी अपने वादे के अनुसार काम नहीं करता, वह कोई न कोई बहाना कर दिया करता है। लोग उसे शब्दों में विश्वास नहीं करते। उसके शब्दों में प्रभाव नहीं होता। उसमें प्रबल इच्छाशक्ति नहीं होती। झूठा मनुष्य जीते जी मृतक के समान हैं। मनुष्य अच्छी तरह जानता है कि असत्य अच्छा नहीं है, फिर भी वह उसी में आसक्त रहता है। वह अपने दुर्गुणों को नहीं छोड़ सकता। वह अपने दुर्गुणों को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील नहीं होता। सच्चाई सतोगुण से उत्पन्न होता है। यह ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है। यह दैवी सम्पत्ति है। यह सत्य का ही एक रूप है। यह सात्विक अन्तःकरण की वृत्ति है।
( संकलित व सम्पादित)
– अखण्ड ज्योति अप्रैल 1958 पृष्ठ 2