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सहिष्णुता का अभ्यास करो। अपने उत्तरादायित्व को समझो। किसी के दोषों को देखने और उन पर टीका-टिप्पणी करने के पहले अपने बड़े-बड़े दोषों का अन्वेषण करो। यदि अपनी वाणी का नियंत्रण नहीं कर सकते तो उसे दूसरों के प्रतिकूल नहीं बल्कि अपने प्रतिकूल उपदेश करने दो। सबसे पहले अपने घर को नियमित बनाओ क्योंकि बिना आचरण के आत्मानुभव नहीं हो सकता। नम्रता, सरलता, साधुता, सहिष्णुता ये सब आत्मानुभव के प्रधान अंग हैं।दूसरे तुम्हारे साथ क्या करते हैं, इसकी चिंता न करो। आत्मोन्नति में तत्पर रहो।यदि यह तथ्य समझ लिया तो एक बड़े रहस्य को पा लिया।
हारिए न हिम्मत
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या