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नर सेवा ही नारायण सेवा है

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प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का निवास है। प्राणियों की सेवा करने से बढ़कर दूसरी ईश्वरभक्ति हो नहीं सकती। कल्पना के आधार पर धारणा-ध्यान द्वारा प्रभु को प्राप्त करने की अपेक्षा सेवा धर्म अपनाकर, इस साकार ब्रह्म, अखिल विश्व को सुंदर बनाने के लिए संलग्न रहना, साधना का श्रेष्ठतम मार्ग है। अमुक भजन-ध्यान से ईश्वर को प्रसन्नता हुई या नहीं; इसमें संदेह हो सकता है, पर दूसरों को सुखी एवं समुन्नत बनाने के लिए जिसने कुछ किया है, उसे आत्मसंतोष, सहायता द्वारा सुखी हुए जीवों का आशीर्वाद और परमात्मा का अनुग्रह मिलना सुनिश्चित है।

प्रेम से बढ़कर इस विश्व में और कुछ भी आनंदमय नहीं है। जिस व्यक्ति या वस्तु को हम प्रेम करते हैं, वह हमें अतीव सुंदर प्रतीत होने लगती है। इस समस्त विश्व को परमात्मा का साकार रूप मानकर, उसे अधिक सुंदर बनाने के लिए यदि उदार बुद्धि से लोक-मंगल के कार्यों में निरत रहा जाए, तो यह ईश्वर के प्रति तथा उनकी पुण्य-वृत्तियों के प्रति प्रेम-प्रदर्शन करने का एक उत्तम मार्ग होगा। इस प्रकार की हुई ईश्वरोपासना कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। इसकी सार्थकता के प्रमाणस्वरूप तत्काल आत्मसंतोष मिलता है। श्रेय की भावनाओं से ओत-प्रोत उदार हृदय ही स्वर्ग है। जिसे स्वर्ग अभीष्ट हो, उसे अपना अंत:करण प्रेम और सेवाधर्म से परिपूर्ण बना लेना चाहिए।

Source: Yug Nirman Yojana Sept 2021

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