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एक साथ बहुत सारे काम निबटाने के चक्कर में मनोयोग से कोई कार्य पूरा नहीं हो पाता। आधा-अधूरा कार्य छोड़कर मन दूसरे कार्यों की ओर दौड़ने लगता है। यहीं से श्रम, समय की बर्बादी प्रारंभ होती है तथा मन में खीझ उत्पन्न होती है। विचार और कार्य सीमित एवं संतुलित कर लेने से श्रम और शक्ति का अपव्यय रुक जाता है और व्यक्ति सफलता के सोपानों पर चढ़ता चला जाता है। कोई भी काम करते समय अपने मन को उच्च भावों से और संस्कारों से ओत-प्रोत रखना ही सांसारिक जीवन में सफलता का मूल मंत्र है। हम जहाँ रह रहे हैं उसे नहीं बदल सकते पर अपने आपको बदल कर हर स्थिति में आनंद ले सकते हैं।
हारिए न हिम्मत
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या