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सुबह देर से उठना एक तरह से लोगों ने अपना अधिकार समझ लिया है।

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पशु-पक्षी प्रातःकाल जाग जाते हैं और अपना कार्य करने में व्यस्त हो जाते हैं। वहीं रात्रि होते ही वे अपने घोंसलों व निवास स्थान में पहुँच जाते हैं और रात्रि विश्राम करते हैं। उनकी यही दिनचर्या उन्हें स्वस्थ और सक्रिय बनाये रखती है और लोगों को भी यह प्रेरणा देती है, कि प्रकृति के नियमों का पालन किया जाय। समय पर सोना व जागना हमारी प्रकृति के अनुकूल हो। जब हम अपनी प्रकृति से विपरीत कार्य करने लगते हैं, तो अपनायी जाने वाली अप्राकृतिक जीवन शैली हमारे शरीर को बीमार करने लगती है और हम विभिन्न तरह के शारीरिक व मानसिक रोगों से घिरने लगते हैं। हमारी प्राचीन परम्पराओं में सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठने का समय तय किया गया है। ब्रह्म मुहूर्त यानी रात्रि के अन्तिम प्रहर या सूर्योदय से लगभग डेढ़-दो घण्टे पहले का समय। अनेक शोध अध्ययनों से भी यह प्रमाणित किया गया है, कि ब्रह्म मुहूर्त के समय हमारा वायुमण्डल काफी हद तक प्रदूषण रहित होता है। उस समय दिन के मुकाबले वातावरण में प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा भी बहुत अधिक होती है।

सुबह-सुबह की शुद्ध वायु हमारे तन-मन को स्फूर्ति और ऊर्जा से भर देती है। इसकी वजह से हमारे फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है, जिससे रक्त शुद्ध होता है। जब हम प्रातः काल में सोकर उठते हैं, तो वहीं अमृतमयी वायु हमारे शरीर को स्पर्श करती है, जिसके स्पर्श से हमारे शरीर में तेज, बल, शक्ति, स्फूर्ति एवं मेधा का संचार होता है, जिससे मन प्रसन्न व शान्त होता है। इसके विपरीत देर रात तक जागने से और सुबह देर तक सोने से हमें यह लाभकारी वायु प्राप्त नहीं हो पाती, जिससे हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है। भारत में एक समय ऐसा भी था, जब घर-परिवार में कोई देर से उठता था, तो घर के अन्य बाकी सदस्य उसे देर से उठने के लिए टोकते थे, डाँटते थे। देर से उठने पर बड़ी लज्जा के साथ उस व्यक्ति की आँखें खुलती थी, क्योंकि वह देर से उठा है। आज बदलती जीवन शैली में हम देर से सोने और देर से जागने को ही आधुनिक जीवन शैली का एक हिस्सा मानने लगे हैं, परन्तु हमेशा से अच्छी सेहत पाने के लिए रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठने की बात कही गई है। लेकिन देर से सोना और देर से उठना यह दोनों ही आदतें हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। कभी-कभी किसी कारणवश देर रात तक जागना और देर से उठना इतना नुकसानदेह नहीं होता, जितना हम इस क्रम को अपने जीवन में निरन्तर के क्रम में शामिल कर लेने से होता है। यदि गलत जीवन शैली अपनाई जाए, तो उसके विपरीत परिणाम भी हमें ही भुगतने होंगे। आजकल हमारे देश में देर से उठने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन सुबह देर से उठना एक तरह से लोगों ने अपना अधिकार समझ लिया है। सुबह जल्दी उठना हमारे लिए किसी दवा से कम नहीं है। यह आदत हमारे जीवन में आने वाली हर स्वास्थ्य समस्या का सकारात्मक ढंग से हल करने में सक्षम होती है। समय पर रात्रिशयन व प्रातःकालीन जागरण प्राकृतिक जीवन शैली का अभिन्न व महत्वपूर्ण सोपान है। अतः हमें अपने जीवन में इसका पालन करना चाहिए और इससे मिलने वाले लाभों से भी लाभान्वित होना चाहिए।

( संकलित व सम्पादित)

– अखण्ड ज्योति जुलाई 2019 पृष्ठ 46

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