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दूसरों से यह अपेक्षा करना कि सभी हम से होंगे और हमारे कहे अनुसार चलेंगे, मानसिक तनाव बने रहने का, निरर्थक उलझनों में फंसे रहने का मुख्य कारण है। इससे छुटकारा पाने के लिए यह आवश्यक है कि हम चुपचाप शांतिपूर्वक अपना काम करते चलें और लोगों को अपने हिसाब से चलने दें। किसी व्यक्ति पर हावी होने की कोशिश न करें और न ही हर किसी को खुश करने के चक्कर में अपने अमूल्य समय और शक्ति का अपव्यय ही करें। यह सोचना निरर्थक है कि कोई हमारी ही बात माने, उसी के अनुसार चले, हममें ही रूचि ले और हमारी ही सहयता करे। यह चाहनाएँ गलत भी हैं और हानिकारक भी। दूसरों पर भावनात्मक रूप से आश्रित न होना ही श्रेयस्कर है।
हारिए न हिम्मत
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या