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साहस ने हमें पुकारा है। समय ने, युग ने, कर्तव्य ने, उत्तरदायित्व ने, विवेक ने, पौरुष ने हमें पुकारा है। यह पुकार अनसुनी न की जा सकेगी। आत्म-निर्माण के लिए, नवनिर्माण के लिए हम काँटों से भरे रास्तों का स्वागत करेंगे और आगे बढ़ेंगे।लोग क्या कहते हैं और क्या करते हैं, इसकी चिंता कौन करे ? अपनी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अँधेरे में भटकते हैं, भटकते रहें। हम अपने विवेक के प्रकाश का अवलंबन कर स्वतः ही आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता है, कौन समर्थन? इसकी गणना कौन करे? अपनी अंतरात्मा, अपना साहस अपने साथ है और हम वही करेंगे, जो करना अपने जैसे सजग व्यक्तियों के लिए उचित और उपयुक्त है।
हारिए न हिम्मत
-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्या