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प्रेम का अमृत छिड़क कर शुष्क जीवन को सजीव बनाइये
प्रेम एक ऐसा शब्द है जो टूटे हुए हृदय को जोडता है, बिछुडों को मिलाता है, विद्वेष को शांत करता है, शिकायतों को दूर करता है। अपने मनोभावों को वाणी या आचरण द्वारा पर इस प्रकार प्रकट करें जिससे उसे यह विश्वास हो जाए आपका आत्मभाव सच्चा है, बिना किसी खुदगर्जी या मायाचार के अपनेपन की भावना रखते हैं तो विश्वास कीजिए कि वह आपका गुलाम हो जाएगा। संघर्ष और कलह के लिये फिर गुंजाइश ही नहीं रहेगी। दोषों से रहित व्यक्ति इस संसार में एक भी नहीं है। काम, क्रोध, मोह की वृत्तियाँ न्यूनाधिक अंशों में हर एक के मन में बस रही हैं, किसी की एक बुराई को देखकर उस पर आग बबूला हो जाना, सब बुराइयों की खान मान लेना, घृणास्पद मानना उचित नहीं। आप निष्पक्षता के साथ तलाश करेंगे तो उसमें बुराइयाँ मिलेंगी, पर बुराइयों से अच्छाइयों की मात्रा अधिक होगी। क्या आप ऐसा नहीं कर सकते कि इन अच्छाइयों से आनंदित हों, उन्हें प्रकट करें और प्रोत्साहित करके आगे बढावें ? क्या आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुराइयों को कुछ देर के लिए दर गुजर कर जाएँ उन्हें दफना दें, घटावें और सुधारने का प्रयत्न करें? ऐसा नहीं कर सकते तो
इसका एकमात्र कारण यह है कि उस व्यक्ति के प्रति आपका सच्चा आत्मभाव नहीं है। झूठ-मूठ किसी रिश्ते में बँध गए हैं, पर उस रिश्ते को निबाहने का आपका क्या कर्तव्य है? इसकी बहुत ही कम जानकारी रखते हैं।
यदि रोग असाध्य हो गया है तो बात दूसरी है अन्यथा अधिकांश मनमुटाव ऐसे होते हैं जिन्हें आसानी से सुलझाया जा सकता है। दूसरे आदमी तभी तक आपसे दूर-दूर रहते हैं जब तक कि उन्हें आपकी आत्मीयता की सचाई पर विश्वास नहीं होता। जिन स्वजनों से आप बड़बड़ाते रहते हैं, क्या कभी आपने वाणी एवं आचरण द्वारा उन्हें यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न किया है कि मेरी आत्मीयता सच्ची है? इस प्रयत्न में जितने ही सफल होते हैं उनके दिलों में उतनी ही जगह अपने लिए बना लेते हैं।
यह भी मान लिया जाए कि दूसरे लोग आपके साथ उत्तम व्यवहार नहीं करते, हुक्म नहीं मानते, अदब नहीं करते तो भी यह कोई ऐसी बात नही है जिससे बुरा मानने या दुःखी होने की आवश्यकता पड़े। तीन-चार वर्ष का बच्चा आपके साथ कोई सलूक नहीं करता, हुक्म नही बजाता, अदब नहीं करता बल्कि बहुत बार खराब आचरण करता है तो भी उसके व्यवहार आपको बुरे नहीं मालूम होते, वरन किसी हद तक मनोरंजन ही करते हैं, फिर क्या बात है कि बड़ी उम्र के व्यक्ति के किसी प्रकार के आचरण पर अत्यंत दुःख मानते हैं? कारण यह है कि उस छोटे बालक को बड़े से अधिक चाहते हैं, अथवा जितना आत्मभाव बालक पर था, बडे पर उससे कम रखते हैं। स्वार्थ के साथ प्रेम नहीं ठहर सकता हैं। बदला चाहने वाले को निराश होना पड़ता है। आप अपना कर्त्तव्य पालन करने तक ही दुष्ट रहिए। अपनी इच्छा को इतनी सूक्ष्म रखिए आवश्यकताओं इतनी न्यून रखिए कि दूसरों की सहायता की जरूरत न पड़े। यदि जरूरत पड़े तो बदले में कृतज्ञता ज्ञापन, धन्यवाद, प्रशंसा द्वारा उसका कुछ बदला उसी समय चुका दीजिए और शेष को आगे-पीछे बेवाक कर देने की फिक्र में रहिए। कर्जदार बन कर अपने ऊपर दूसरे के उपकार लादने की इच्छा करना कोई गौरव की बात थोडे ही है। बदला चाहने या कर्ज लेने की तुच्छ वृत्ति को छोड़ दें तो कोई कारण नहीं कि अल्पबुद्धि वालों का, बडी उम्र के बालकों का कोई अप्रिय व्यवहार आपको दुखदायी प्रतीत हो।
…. क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ७