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एक शून्य निवेदन है भक्ति
बड़ा कठिन एवं परम दुर्लभ है यह सब लेकिन यह होता है कहीं-कहीं, किसी-किसी में। आमतौर पर भाव एवं विचार कहे जाते हैं, बोले जाते हैं, लिखे जाते हैं- यह सब होता है बहुत होशपूर्वक, बड़ी सघन बौद्धिकता के साथ लेकिन यह बस अभिव्यक्ति होती है। इसकी नापतौल व्याख्या-विवेचना सम्भव है परन्तु जब भक्त की भक्ति से परमात्मा प्रकाशित होता है तो वह अभिव्यक्ति नहीं अभिव्यञ्जना होती है। इस अवस्था में मन, वाणी, बुद्धि और यहाँ तक कि मानवीय चेतना के धरातल व दायरे में जो कुछ भी है, वह सभी मौन-नीरव, निस्पन्द हो जाता है। बस स्वतःस्फूर्त परमात्मा बह उठता है। भक्त नाच उठता है, भक्त गा उठता है, भक्त समाधि में डूबा हुआ बोलने लगता है।
सच तो यह है कि इस अवस्था में भक्त होता है अनुपस्थित- बस भगवान होते हैं उपस्थित। भक्त हो जाता है मौन, बस भगवान हो जाते हैं मुखर। इस मुखरता को, इस उपस्थिति को जानने वाले भी विरले होते हैं। इस अनुभव की अनुभूति भी विरले ही कर पाते हैं अन्यथा तार्किक तो बस तर्क करते रह जाते हैं। उनका कहना है कि अनुभव हुआ है तो कहा भी जाएगा, सुना भी जाएगा और समझा भी जाएगा। सिर में सामान्य दर्द होता है तो इसका पता चलता है और इसे कहा भी जाता है। पाँव में कांटा चुभता है तो पीड़ा की बात कहने-सुनने में आती है। इसी तरह से प्रसन्नता की अनुभूतियों का भी बयान-बखान होता है।
फिर भक्ति का बखान क्यों नहीं? सवाल तर्कपूर्ण लगता है। परन्तु इसका जवाब बड़ा जोखिम भरा है। जहाँ और जिन्होंने यह बखान किया, उसमें से किसी को फाँसी हुई तो किसी को सूली। किसी को पत्थर मारे गए तो किसी को जहर पिलाया गया। उनके लिए कहा गया कि ये धोखा दे रहे हैं, छल कर रहे हैं। इतना कहने के बाद महर्षि ने सबकी ओर बड़े निश्छल नयनों से देखा और बोले- बड़ा अजीब सा है यह छल। इसे छल कहने वाले इतना भी नहीं सोच पाते कि भला कोई फाँसी, सूली पाने के लिए छल क्यों करेगा। कोई जहर पीने के लिए धोखा क्यों देगा।
यह तो वह परम विरल अवस्था है, जब परमात्मा स्वयं मुखर होता है। अपने भक्त के माध्यम से भक्ति के सार को प्रकट करता है। असंख्यों में से कोई विरला ही इसे सुनता, समझता है। यह सच जान पाता है कि अखिल ब्रह्माण्ड के अधीश्वर यहाँ पर प्रकाशित हो रहे हैं। इस अवस्था में परम दिव्य की झलकियाँ मिलती हैं। अनूठापन, अनोखापन यहाँ अपनी चमक बिखेरता है। इसे वही देख पाते हैं, समझ पाते हैं जो प्रभुप्रेम में डूबे हैं, जो परमात्मा के परमरस से भीगे एवं उसमें डूबे हैं। क्षुद्र मन वालों के लिए यहाँ कहीं कोई स्थान नहीं है।’’
…. क्रमशः जारी
डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 भक्तिगाथा नारद भक्तिसूत्र का कथा भाष्य पृष्ठ २१४