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प्रेम का अमृत छिड़क कर शुष्क जीवन को सजीव बनाइये
जो भी वस्तुएँ आपके आसपास मौजूद हैं, उनमें से कुछ आपको अच्छी लगती हैं, कुछ बुरी, कुछ की ओर ध्यान भी नहीं जाता। जो अच्छी लगती उनसे प्यार करते हैं, जो बुरी लगती हैं उनसे घृणा करते हैं, जो उपेक्षित हैं उनकी ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते। आप चाहते हैं कि प्रिय वस्तुएँ सदा अधिक मात्रा में पास रहें, वे आपको सुख देती हैं, सुखदायक वस्तुओं की समीपता सभी को पसंद है।
आइए अब यह विचार करें कि वस्तुओं के अच्छा लगने का क्या कारण है? यह कहना ठीक नहीं कि गुणवान वस्तुएँ स्वभावत: प्रिय लगती हैं। यह अधूरी व्याख्या है। सच बात यह है कि जिस वस्तु में जितनी मात्रा मे अपनापन- आत्मभाव, स्वार्थभाव है, वह उसी परिमाण में प्रिय लगती है, गुण रहित हो तो भी अच्छी लगती है। आपका अपना छोटा सा बालक है, वह सिर्फ रोना ही जानता है, दिन को रोता है, रात को रोकर बार-बार नींद उचटा लेता है, गोदी में लें तो मल से साफ कपड़ों को खराब कर देता है। उसमें एक भी गुण नहीं दुर्गुण बहुत हैं तो भी आप उसके लिए कपड़ों की, दूध की, दवा-दारू की खर्चीली व्यवस्था करते हैं, कष्ट उठाते हैं फिर भी उसे प्यार करते हैं। कारण यह है कि उस बालक में आपका आत्मभाव है, अपनापन है। दूसरं के बच्चे यदि आपके ऊपर टट्टी कर दें तो यह बुरा लगेगा। पडोसी का गोरा, सलौना बच्चा, अपने काले-कलूटे बच्चे से अच्छा थोड़े ही लगेगा? यहाँ सौंदर्य या गुण की प्रमुखता नहीं है, अपनेपन का महत्त्व है।
एक मकान के आप मालिक हैं वह बहुत अच्छा लगता है, उसकी अच्छाई की प्रशंसा करते नहीं थकते, टूट-फूट, मरम्मत, सजावट का दृश्य ध्यान रखते हैं, संयोगवश यह मकान बिक कर दूसरे के हाथ चला जाता है, अब आप निश्चित हो गए टूट-फूट से कोई मतलब नहीं, आज फूट जाए चाहे हजार वर्ष खड़ा रहे ? कल तक जो मकान इतना प्रिय था, आज ही उससे सारा संबंध छूट गया। इतनी शीघ्र इतनी अधिक विरक्ति का कारण क्या है? कारण यह है कि कल तक उसके साथ जो अपनापन चिपटा हुआ था, आज नहीं रहा। कल जिस रुपयों से भरी थैली को अत्यंत उत्साह से छाती से चिपटाए फिरते थे वह आज दूसरे व्यापारी के पास चली गई, यदि वे रुपए अब चोरी चले जाए तो आपको कुछ भी कष्ट न होगा। उन रुपयों के बदले जो माल खरीदा है वह अब प्यारा लगने लगा, कल वह माल भी पड़ोस में पडा था पर तब उसकी ओर आँख उठाकर भी न देखते थे, आज उसको सुरक्षित रखने के लिए चोटी का पसीना एडी तक बहा रहे हैं। माल वही कल था, वही आज है। अंतर केवल इतना कि आज अपना हो गया, अपनापन ही तो अच्छा लगने का कारण है।
…. क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ३