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    शरीर से इंद्रियाँ परे (सूक्ष्म) हैं। इंद्रियों से परे मन है मन से परे बुद्धि है और बुद्धि से परे आत्मा है। आत्मा तक पहुँचने केलिए क्रमश: सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ेंगी। पिछले अध्याय में आत्मा के शरीर और इंद्रियों से ऊपर अनुभव करने के साधन बताये गए थे।इस अध्याय में मन का स्वरूप समझने और उससे ऊपर आत्मा को सिद्ध करने का हमारा प्रयत्न होगा।

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    नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहु ना श्रुतेन ।”
    -कठो० १२-२३
    शास्त्र कहता है कि यह आत्मा प्रवचन, बुद्धि या बहुत सुनने से प्राप्त नहीं होती। प्रथम अध्याय को समझ लेने के बाद आपको इच्छा हुई होगी कि उस आत्मा का दर्शन करना चाहिए, जिसे देख लेने के बाद और कुछ देखना बाकी नहीं रह जाता। यह इच्छा स्वाभाविक है। शरीर और आत्मा का गठबंधन कुछ ऐसा ही है, जिसमें जराअधिक ध्यान से देखने पर वास्तविक झलक मिल जाती है। शरीर भौतिक, स्थूल पदार्थों से बना हुआ है, किंतु आत्मा सूक्ष्म है।

    पानी में तेल डालने पर वह ऊपर ही उठ आता है। लकड़ी के टुकड़े को तालाब में कितना ही नीचा पटको, वह ऊपर को ही आने का प्रयत्न करेगा, क्योंकि तेल और लकड़ी के परमाणु पानी की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म हैं। गरमी ऊपर को उठती है, अग्नि लपटें ऊपर कोही उठेंगी। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति और वायु का दबाव उसे रोक नहीं सकता है।

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    मनुष्य शरीर में निवास तो करता है, पर वस्तुतः वह शरीर से भिन्न है। इस भिन्न सत्ता कोआत्मा कहते हैं। वास्तव में यही मनुष्य है। मैं क्या हूँ ? इसका सही उत्तर यह है कि मैं आत्मा हूँ।’

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    मनुष्य के लिए शरीर, मन, चरित्र, आचार-विचार आदि सब प्रकार की पवित्रता आवश्यक है । पवित्रता मानव-जीवन की सार्थकता के लिए अनिवार्य है । मनुष्य का विकास और उत्थान केवल ज्ञान अथवा भक्ति की बातों से ही नहीं हो सकता, उसे व्यावहारिक रूप से भी अपनी उच्चता और श्रेष्ठता का प्रमाण देना आवश्यक है और इसका प्रधान साधन पवित्रता ही है ।

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    उपवास द्वारा मनुष्य की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति होती है, उसकी बुद्धि और विवेक जागृत होता है l स्वास्थ्य, आरोग्यता, दीर्घायु के अतिरिक्त आध्यात्मिक दृष्टि से उपवास का विशेष महत्व है । उपवास में बहुत-सी नीच प्रवृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं, अन्तर्दृष्टि पवित्र बनती है, वृत्तियाँ वश में रहती हैं, धर्म बुद्धि प्रबल बनती है, काम, क्रोघ, लोभ आदि षट्रिरिपु क्षीण पड़ जाते हैं, प्राणशक्ति का प्रबल प्रवाह हमारे हदय में बहने लगता है और शान्त रस उत्पन्न होता है । उपवास से इन्द्रियों का नर्तन, वृत्तियों का व्यर्थ इघर-उधर बहक जाना और एकाग्रता का अभाव दूर हो जाता है । ईश्वर पूजन, साधना तथा योग के चमत्कारों के लिए उपवास अमोघ औषधि है ।