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रोचक बरफीला संसार

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बरफ प्रकृति का विशिष्ट उपहार है, जो सरदी के मौसम में पहाड़ी क्षेत्रों को अपनी सफेद मोटी चादर से ओढ़ लेती है। शायद ही कोई इंसान हो, जो इसका स्वागत न करता हो। यह बात दूसरी है कि लगातार बरफ के चलते या अत्यधिक बरफ के कारण कभी-कभी कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है अन्यथा जीवनयापन के संसाधन उपलब्ध हों तो बरफ से अधिक रोमांचक अनुभव शायद ही कोई दूसरा मिले। बरफ का संसार स्वयं में जितना रोमांचक है, उतना ही कई रोचक रहस्यों को समेटे हुए भी है। इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को यहाँ अनावृत किया जा रहा है।

हिमकण तब बनते हैं, जब वायुमंडल में जलवाष्प जमती है। प्रारंभ में इनके छोटे क्रिस्टल स्पष्ट और पारदर्शी दिखाई देते हैं। वायु के बहाव में ये क्रिस्टल हवा में तैरते रहते हैं और एकदूसरे से तब तक चिपके रहते हैं, जब तक कि उनमें संख्या सौ या उससे अधिक न हो जाए। जब हिमकणों के जमे हुए टुकड़ों का आकार काफी बड़ा हो जाता है तो वे धीरे-धीरे आसमान से गिरने लगते हैं। हिमखंडों के इन समूहों को ही हम बरफ कहते हैं।

बरफ के हिमकण का आकार कैसा होगा, यह हवा के तापमान पर निर्भर करता है शून्य से दो डिगरी सेल्सियस में बरफ जमती है। इससे नीचे 5 डिगरी सेल्सियस होने पर ये हिमकण सपाट क्रिस्टल के रूप में बन जाते हैं। इससे भी निचले तापमान पर ये क्रिस्टल रोएँदार दिखने लगते हैं। हिमकणों (स्नो-फ्लेक्स) के 35 विविध प्रकार पाए गए हैं।

बरफ दिखने में सफेद प्रतीत होती है, लेकिन इसका अपना कोई रंग नहीं होता। बरफ जमे हुए पानी से ज्यादा कुछ नहीं है। बरफ के टुकड़े वास्तव में छोटे क्रिस्टल से बने होते हैं, जिनके आर-पार रोशनी के गुजरने से बरफ के टुकड़े पारदर्शी के बजाय सफेद दिखाई देते हैं। बरफ का रंग प्रदूषण, धुआँ, काई या अन्य तत्त्वों के कारण नारंगी से लेकर काले रंग का हो सकता है। स्विट्जरलैंड में सन् 1969 में क्रिसमस के समय काली बरफ गिरी थी और सन्

1955 में कैलिफोर्निया पर हरी बरफ गिरी थी। अंटार्कटिका और ऊँचे पहाड़ों में बरफ शैवालों के कारण गुलाबी, बैंगनी, लाल और पीले-भूरे रंग की पाई जाती है।

बरफ वातावरण में विद्यमान ध्वनि को सोखती है। इसी कारण बरफ गिरने पर चारों ओर का वातावरण शांत हो जाता है। एक अद्भुत नीरव शांति पूरी प्रकृति एवं परिवेश में जैसे व्याप्त हो जाती है। इसी के साथ हिमकण गिरने की गति 1 किमी प्रतिघंटा से लेकर 14 किमी प्रतिघंटा जितनी तीव्र हो सकती है।

बरफ के कण में कितना पानी सिमटा है और वायु की गति कैसी है इन आधारों पर हिमकणों की गति तय होती है। इन्हें बादलों से धरती तक पहुँचने में एक घंटे तक का समय लगता है। जहाँ तक बरफ के स्वाद की बात करें तो इसका अपना कोई स्वाद नहीं होता। धरती पर गिरने से इसमें धरती की सौंधी खुशबू समा जाती है। वृक्षों में गिरने के पर यह पत्तों का स्वाद व गंध ले लेती है।

हिम एक उत्कृष्ट ऊष्मारोधक है। ज्ञातव्य है कि बरफ में 90 से 95 प्रतिशत तक हवा कैद होती है अर्थात यह गर्मी को रोककर रखती है। यही कारण है कि बरफीले क्षेत्रों में रहने वाले जीव-जंतु बरफ के भीतर गहराई में अपना घर बनाकर रहते हैं। ध्रुवों में बरफ को सिल्लियों से बने घर के (इग्लू) भी इसी आधार पर तापमान को गरम रखकर यहाँ के निवासियों के रहने लायक आवास बनते हैं।

उत्तरी ध्रुव में रहने वाले एस्किमोज के ये शीतकालीन आवास इग्लू स्नोहट्स को सबसे अधिक ऊर्जा संवर्द्धक भवनों के रूप में माना जाता है। जब बाहर का तापमान माइनस 45 डिगरी सेल्सियस तक गिर जाता है तो इन भवनों का तापमान 15 डिगरी सेल्सियस तक बना रहता है। इनका तापमान बाहर की तुलना में 100 डिगरी अधिक तक हो सकता है।

बरफ से जुड़े कुछ अन्य रोचक तथ्य इस तरह से हैं-वैज्ञानिकों के अनुसार उन्हें अध्ययन के दौरान कभी भी बरफ के दो एक समान टुकड़े नहीं मिले। अब तक पाए गए बरफ के टुकड़ों में सबसे बड़ा टुकड़ा 38 सेंटीमीटर व्यास का था। न केवल पृथ्वी पर, बल्कि मंगल पर भी बरफ पाई गई है। सन् 1949 में सहारा रेगिस्तान में बरफबारी हुई थी हालाँकि यह लगभग तुरंत ही पिघल गई थी। फिनलैंड में रहने वाले सैम लोगों की भाषा में बरफ के लिए लगभग 180 शब्द हैं: जबकि एस्किमो भाषा में बरफ के लिए 20 से अधिक शब्द हैं। इसी तरह उत्तरी ध्रुव के आदिवासी इनुइट लोगों ने बरफ के पचास से अधिक नाम रखे हुए हैं।

जब कोई बरफ का टुकड़ा पानी में गिरता है तो उससे एक उच्च आवृत्ति वाली ध्वनि निकलती है, जो मनुष्य द्वारा नहीं पकड़ी जाती है, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार मछलियाँ इसे नहीं पसंद करती हैं। सरदियों के मौसम में बरफ पृथ्वी की सतह से सूर्य की नब्बे प्रतिशत किरणों को परावर्तित कर देती है और उन्हें वापस अंतरिक्ष में भेजती है। इस प्रकार सरदियों में बरफ पृथ्वी को गरम होने से रोकती है।

यह भी एक ज्ञात तथ्य है कि पूरे विश्व में बरफ नहीं गिरती है। इस कारण पृथ्वी पर रहने वाली आधी आबादी अपने जीवनकाल में हिमपात नहीं देख पाती। वे कथा किंवदंतियों, चित्रों या फिल्मों के माध्यम से ही इसका दर्शन कर पाते हैं। हालांकि आज यातायात की सुविधाओं के चलते यह प्रतिशत कम हो रहा है। बरफ के दर्शनाभिलाषियों के लिए आज कुछ ही घंटों में बरफीले स्थलों के दर्शन संभव हो जाते हैं।

बरफबारी के बीच अत्यधिक समय बिताने पर लोग के कई तरह के रोगों के भी शिकार हो सकते हैं। उत्तरी ध्रुवों में लोग प्राय: आर्कटिक हिस्टीरिया नामक बीमारी के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में व्यक्तियों की स्मरणशक्ति कम हो जाती है और वे बेमतलब के शब्द बोलने लगते हैं तथा जोखिम भरे काम करने लगते हैं। इसी के साथ बचपन में बरफीले तूफान जैसी किसी दुर्घटना या कटु अनुभव के चलते कई लोग बरफ के भय अर्थात चियोनोफोबिया के शिकार हो सकते हैं। ऐसे लोग बरफ को देखते ही सिहर जाते हैं और थोड़ी-सी बरफबारी में उन्हें ऐसा लगता है कि वे इसमें दबने वाले हैं।

भारत के संदर्भ में बात करें तो इसके लिए बरफ के अनुदान अनगिनत हैं। बरफ से ढका हिमालय जहाँ उत्तरी छोर पर इसके सबल प्रहरी की भाँति खड़ा है तो इसके ग्लेशियरों से पिघलकर बह रही सदाबहार नदियाँ सिंचाई से लेकर आर्थिक व्यवस्था एवं संस्कृति के कालजयी आधार हैं।

आज कितने सारे हिल स्टेशन बरफ के कारण सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। दुर्भाग्यवश इन दिनों मौसम परिवर्तन की मार के कारण अनियमित से लेकर बेमौसमी बरफबारी तथा पिघलते ग्लेशियर चिंता का विषय बन रहे हैं। इनके कारण कई तरह की प्राकृतिक आपदाएँ भी घटित हो रही हैं, लेकिन कुल मिलाकर बरफ के अनुदान अनगिनत हैं।

ऐसे में आवश्यकता व्यापक स्तर पर प्रकृति एवं पर्यावरण के संरक्षण की है, जिससे बरफ का अनुदान प्राकृतिक रूप से हर वर्ष अपने भव्यतम रूप में सबको कृतार्थ करता रहे। विश्व हिमदिवस के रूप में मनाए जाने वाले 19 जनवरी के दिन इस पर विचारमंथन किया जा सकता है तथा जनजागरूकता से लेकर कुछ सार्थक कदमों के साथ इस दिशा में संकल्पित हुआ जा सकता है।

अखण्ड ज्योति, जनवरी 2022

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