एक प्रकार की स्थिति दो अलग-अलग व्यक्तियों पर उनकी मनोभूमि के अनुसार अलग-अलग प्रकार के प्रभाव डालती है । संसार में बुराई और भलाई सभी कुछ पर्याप्त मात्रा में मौजूद है, पर हम अपनी आंतरिक स्थिति के अनुसार उसे ही पकड़ते हैं, जो अपने को रुचता है । यदि यह रुचि परिमार्जित हो, तो संसार में जो कुछ श्रेष्ठ है, उसे ही पकड़ने के लिए अपने प्रयत्न होते हैं । जिस प्रकार शहद की मक्खी बगीची में से शहद और गुबरीले कीड़े गोबर इकट्ठा करते रहते हैं, उसी प्रकार अपनी अपनी मनोभूमि के अनुसार हम भी भले या बुरे तत्त्वों से अपना संबंध जोड़कर अपने पल्ले सुख या दुःख इकट्ठा कर सकते हैं । संसार में बुरा भला सभी कुछ है, पर हम प्रायः उन्हीं तत्त्वों को आकर्षित एवं एकत्रित करते हैं, जिस प्रकार की अपनी मनोदशा होती है ।
मानव जीवन सुख और दुःख के, लाभ और हानि के, सम्पत्ति और विपत्ति के ताने-बाने से बुना हुआ है, ये दोनों ही रात-दिन के, सर्दी-गर्मी के जोड़े की तरह आते और जाते रहते हैं, इनके प्रभाव से कोई राजा-रंक अछूता नहीं रहता । यह सभी के लिए स्वाभाविक है ।
इन सब बातों से विचारशील व्यक्ति एक ही निष्कर्ष पर पहुँच सकता है कि हम जैसी परिस्थितियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, उसी के अनुसार अपनी मनोभूमि को ढालें । “आत्मनियंत्रण” और “आत्मनिर्माण” के आधार पर हम अपने लिए अपनी “भली” या “बुरी” दुनिया का निर्माण आप कर सकते हैं ।
अखण्ड ज्योति
अक्टूबर १९६०