विचारशीलों का यह कहना है, कि बीते हुए से प्यार करने की तो छूट सभी को है, लेकिन उससे चिपको मत। ईश्वर ने अगर हमारी आँखें आगे की ओर दी है, तो इसका कोई मतलब है। इतिहास भी हमें पीछे समय गँवाने को नहीं कहता। वह कहता है कि जो गलतियाँ हुई, उन्हें दुरुस्त करो और वर्तमान में रहो। जीवन में घटित होने वाले संवेदनशील पल सकारात्मक हैं तो इन पलों के कारण जीवन का उत्थान होने लगता है, लेकिन यदि यह पल नकारात्मक है तो जीवन अवनति की ओर जाने लगता है और प्रायः व्यक्ति के जीवन में अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले यह पल नकारात्मक होते हैं, दिल दहलाने वाले होते हैं, बड़ी गलतियों, कमियों व भूलों से भरे होते हैं। कहावत है कि बीते को बिसार दें, लेकिन व्यक्ति इस बीते हुए से इस तरह लिपटा होता है, कि उसे छोड़ ही नहीं पाता और इस तरह बीता हुआ पल न जाने कब तक व्यक्ति के साथ रहता है। पीछे अटकने का मतलब ही है- पलायनवादी होने का खतरा होना। यह अपने जीवन की गति की डोर दूसरे के हाथों में सौंपने जैसा है जबकि वर्तमान के बारे में सोचने का मतलब है- अपनी गति की डोर अपने हाथों में रखना।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भी व्यक्ति जितना पीछे की ओर सोचता है, उसका चिन्तन और कार्य करने की क्षमता भी उतनी ही कम होती जाती है। निश्चित रूप से यदि हम अपने अतीत से नहीं सीखेंगे तो वही गलतियाँ अपने भविष्य में दोहराते रहेंगे, जो हमने अपने अतीत में दोहराई है। इस तरह हम अपने जीवन में बारम्बार अपने अतीत को ही दोहराते रहेंगे। वैसे अतीत की चिन्ता को मूर्खों की खुराक और वर्तमान के चिन्तन को बुद्धिमान का मानसिक भोजन कहा गया है। बेहतर यही है कि हम अपने अतीत से सीखें और वर्तमान की दहलीज पर चलते हुए अपने भविष्य की ओर कदम बढ़ाएँ। अतीत से यानी अपने बीते हुए कल से सीखना बहुत जरूरी है, लेकिन सीखने का मतलब अतीत से जुड़ा होना नहीं है, बल्कि वहाँ से अपने योग्य सीख को हासिल करके बाहर निकल जाना है।
( संकलित व सम्पादित)
– अखण्ड ज्योति जून 2019 पृष्ठ 28