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मानसिक संतुलन आवश्यक

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यदि तुम चाहते हो कि जीवन में तुम्हें असफलता,” “मजबूरी’ या “कठिनाई न मिले, तो यह असम्भव है, तुम्हारे वश की बात नहीं है । जीवन मृदुल भावनाओं की मृदु वाटिका है, तो कंटक और शूल भी, कठोर चट्टानों, पत्थरों की शुष्कता और कठोरताओं से भी भरा है । सभी कुछ आपको ही चखना है, “मधुरता” भी, “कड़वाहट” भी ।

जिस दुनियाँ को आप बदल नहीं सकते, उससे झगड़ा करने से क्या लाभ ? जिस परिस्थिति से आप बच नहीं सकते, उसे परिवर्तित करने की इच्छा से क्या फायदा ? जिन व्यक्तियों का कड़ा, कलहपूर्ण या झगड़ालू स्वभाव है, उनसे अड़ने और क्रोध करने से क्या लाभ ? असफलता, हानि और भूत पर व्यर्थ सोचने से क्या लाभ ? ये सभी आपके मनोबल और मानसिक संतुलन को नष्ट करने वाले हैं ।

तुम्हारे वश की बात क्या है ? तुम्हारा स्वभाव, तुम्हारी अच्छी आदतें, तुम्हारा मानसिक संतुलन, मन की शांति, ऐसी दिव्य बातें हैं, जो तुम्हारे वश की है । इनका संबंध स्वयं तुमसे और तुम्हारे निजी व्यक्तित्व से है । क्रमशः अभ्यास द्वारा तुम इनमें से प्रत्येक को प्राप्त कर सकते हो । इनके द्वारा तुम्हारा जीवन सुख और शांति से परिपूर्ण हो सकता है ।

अतएव यदि संसार में सुख और शांति चाहते हो, तो जो तुम्हारे वश की बातें हैं, उन्हीं को विकसित करो और जो तुम्हारे वश की बातें नहीं हैं, उन पर व्यर्थ चिंतन या पश्चाताप छोड़ दो । स्वयं अपने मस्तिष्क के स्वामी बनो । संसार और व्यक्तियों को अपनी राह जाने दो ।

अखंड ज्योति

फरवरी १९५६

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