(1) जब तक भट्टी में आग जलती रहती है, तब तक दूध खौलता रहता है। जब आग का जलना बन्द हो जाता है, तब खौलना भी बन्द हो जाता है। उसी तरह आध्यात्मिक ज्ञान को प्राप्त करने वाला जब तक उसकी साधना करता रहता है, तभी तक उसका मन उन्नति के पथ पर चलता रहता है।
(2) मछलियों के किसी में कई जोड़ अस्थि होती है। किसी के बहुत कम होती है, परन्तु माँसाहारी हड्डियों को निकाल देते हैं। इसी तरह कोई मनुष्य कम पाप कर रहा है, कोई अधिक। परन्तु जब ईश्वर की कृपा होती है, तो सब दुराचार दूर हो जाते हैं।
(3) जैसे वास्तविक चीज से परछाई की उत्पत्ति होती है, अग्नि से धुआँ निकलता है। उसी तरह कर्म के करने पर फल मिलता है। मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है। अतः सुख और दुख मनुष्य के कर्मों के पीछे चलते हैं।
(4) घाव के भर जाने से उसके ऊपर की गली हुई खाल अपने आप ही गिर जाती है, किन्तु कच्चे घाव से खाज को उचेलने से खून निकलने लगता है। उसी तरह दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होने पर भेदभाव दूर हो जाता है, किन्तु दिव्य ज्ञान की उत्पत्ति से पहले भेदभाव मिट नहीं सकता है।
(5) रस्सी को जला देने से उसकी ऐंठ बनी रहती है, परन्तु उससे कोई काम नहीं ले सकते हैं। इसी प्रकार मनुष्य त्यागी होकर भी अहंकारी दिखाई दे, तो उसे निरर्थक ही समझना चाहिए।
( संकलित व सम्पादित)
अखण्ड ज्योति जनवरी 1943 पृष्ठ 7-10