एक राजा जंगल में भटक गया। प्यास से आकुल-व्याकुल होकर वह इधर-उधर घूमने लगा। उसे एक झोंपड़ी दिखाई दी। वह वहाँ पहुँचा। वहाँ एक बूढ़ा आदमी बैठा था। पास ही ईख का खेत था। राजा ने पानी माँगा। बूढ़े ने दो-चार ईख तोड़े, कोल्हू में उन्हें पेरा। ईख के रस से एक कटोरा भर गया। राजा ने वह पिया और उसका मन पुलकित हो गया। उसने बूढ़े से पूछा-“क्या ईख पर ‘कर’ (टेक्स) भी लगता है ?” बूढ़े ने कहा- “नहीं, हमारा राजा दयालु है। वह भला हमसे क्या ‘कर’ लेगा ?” राजा ने मन ही मन सोचा-“ऐसी मीठी चीज पर अवश्य कर (टेक्स) लगना चाहिए।” मन में संकल्प विकल्प उठने लगे। आखिर ‘कर’ लगाने का निश्चय कर लिया। राजा ने चलते-चलते बूढ़े से कहा- “एक प्याला रस और पिलाओ।” बूढ़े ने फिर दो-चार ईख तोड़े। उन्हें कोल्हू में पेरा पर रस से कटोरा नहीं भरा। राजा अचंभे में पड़ गया। उसने पूछा- “यह क्या ? पहले ईख के रस से कटोरा भर गया था, अब नहीं भरा, यह क्यों ?” बूढ़ा दूरदर्शी था। उसने कहा- “लगता है मेरे राजा की नीयत बिगड़ गई। अन्यथा ऐसा नहीं होता।” राजा मन ही मन पछताने लगा। राजा की नीयत का इतना असर होता है तो क्या धर्माध्यक्षों, गणमान्य व्यक्तियों के आचरण का प्रभाव समाज पर नहीं पड़ता होगा ?
व्यक्ति की नीयत खराब होती है या आचरण खराब होता है तो उसका प्रभाव समाज पर भी पड़ता है।
अमृत कण ( सचित्र बाल वार्ता )
युग निर्माण योजना , मथुरा
2 comments
गुजरात (पहले सौराष्ट्र) के लाठी स्टेट के कविजीव राजवीने गुजराती भाषा में इस कहानी को अलग इलग छंदों में कविताका सर्जन किया था।
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alag alag lekhak evam kavi sada se hi samaj mai sadvichar ke mahatv ko batane ka prayas karte aaye hai
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