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अपने स्वास्थ्य का भी रखें ध्यान

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स्वास्थ्य एक वरदान है, जो सुख-शांति का आधार है, आनंद का अक्षय स्रोत है। जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थ चतुष्टय इसी के आधार पर संभव होते हैं। यदि व्यक्ति स्वस्थ नहीं है तो जीवन की गाड़ी लड़खड़ा जाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही सम्यक रूप में आर्थिक, सामाजिक, नैतिक कर्तव्यों का पालन कर पाता है। एक रोगी चाहते हुए भी अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर पाता। रोग की गंभीर अवस्था में तो वह एक जीवित लाश की तरह जीवन को किसी तरह ढोने के लिए विवश होता है।एक रोगी का जीवन अभिशाप से कम नहीं होता। वह कई मानों में दूसरों पर आश्रित होता है। एक परावलंबी जीवन जीने के लिए विवश-बाध्य होता है। वह एक तनावपूर्ण जीवन जीता है।

शिष्टाचार एवं मानवीयता के नाते उसका भरण-पोषण होता रहता हो, लेकिन वह एक स्वाभाविक एवं गौरवमयी स्थिति में नहीं होता। दूसरों पर अपने अनावश्यक दायित्व के बोझ की ग्लानि तो पहले ही सर पर सवार रहती है साथ ही परिचर्या करने वाले भी एक समय के बाद फिर उकताने लगते हैं व किसी तरह से अपना फर्ज निभाते देखे जाते हैं। परिवार एवं समाज पर आर्थिक संकट का दबाव इसके चलते अलग से पड़ता है, जिसका वहन करना सबके लिए संभव नहीं हो पाता। रुग्ण आबादी एक प्रगतिशील राष्ट्र के लिए भी वांछनीय स्थिति नहीं होती।

जिस अर्थ एवं परुषार्थ का नियोजन राष्ट्ररूपी भवन के निर्माण में किया जाना था, वह खाई पाटने में खप जाता है। ऐसे में एक बीमार व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता, जिन पर वह फुरसत के समय में विचार कर सकता है।जाने-अनजाने में कोई बीमार पड़ गया, यह अलग बात है, परंतु अपनी बिगड़ी आदतों एवं जीवनशैली के कारण यदि वह बीमारियों को न्योता दे रहा है तो उसे सजग-सावधान रहने की आवश्यकता है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उसे अपने स्वास्थ्य का यथासंभव ध्यान रखना भी चाहिए और गंभीरता एवं ईमानदारी पूर्वक अपने रोगों के कारण व जड़ों पर विचार करना चाहिए। इनको दुरुस्त करने के लिए समझदारी भरे एवं साहसपूर्ण कदम उठाने चाहिए। इसे भी उसकी स्थिति को देखते ही धर्मधारणा, कर्त्तव्यपालन, सेवा-साधना से कम नहीं माना जाएगा।

वास्तव में स्वास्थ्य एक ईश्वरप्रदत्त उपहार है, जीवन की एक स्वाभाविक स्थिति है। मनुष्य के अतिरिक्त इस पृथ्वी पर हर प्राणी स्वस्थ पैदा होता है, जीवनभर नीरोग रहता है और स्वस्थ अवस्था में ही शरीर छोड़ता है। ऐसा इस कारण संभव होता है, क्योंकि वह प्रकृति की प्रेरणा से जीवनयापन करता है। उसका आहार-विहार सब प्रकृति के नियमानुसार होते हैं। एक इंसान ही इसका अपवाद है, जो नाना प्रकार के रोगों से ग्रस्त रहता है और आए दिन रोगों का रोना रोता रहता है। इसी के लिए तमाम तरह के अस्पतालों, चिकित्सापद्धतियों एवं प्रणालियों की व्यवस्था की गई है। एक पूरा तंत्र इसी निमित्त खड़ा है, जिसमें भारी मानव संसाधन, धन एवं ऊर्जा का नियोजन होता रहता है।

बीमारी एक स्वाभाविक स्थिति नहीं है। इसका अप्राकृतिक जीवन से सीधा संबंध है; जबकि स्वास्थ्य का अभिप्राय प्रकृति के साथ तारतम्य भरे जीवन से है। स्वास्थ्य का व्यक्ति की आदतों व दिनचर्या से भी सीधा संबंध जुड़ा हुआ है। यदि हम इन पर ध्यान दें और जीवन के सरल सामान्य सूत्रों का अनुसरण करें तो बहुत सीमा तक स्वस्थ नीरोग जीवन जी सकते हैं।दिनचर्या का सुव्यवस्थित होना स्वस्थ जीवन का प्राथमिक आधार है। समय पर शयन एवं जागरण इसका महत्त्वपूर्ण पहलू रहता है। समय पर शयन से प्रात: समय पर जागरण संभव होता है और सुबह की प्राणवायु में दिनचर्या का बलवर्द्धक एवं स्फूर्तिदायक शुभारंभ संभव होता है। इसके साथ स्वस्थ एवं प्राकृतिक खान-पान नीरोग जीवन का प्रमुख आधार है।

समय पर यथासंभव पौष्टिक आहार, लें तथा बीच-बीच में स्वाद के वशीभूत होकर कुछ भी न खाएँ। यह एक तो भूख को चौपट कर देता है और दूसरा पेट के तमाम रोगों का कारण बनता है। आहार के साथ पर्याप्त मात्रा में जल लें। जल के प्रति लापरवाही कई मानों में भारी पड़ती है। इसके चलते शरीर के अवशिष्ट पदार्थों का निष्कासन नहीं हो पाता है और शरीर में जमे विषाक्त तत्त्व एवं विजातीय पदार्थ कई तरह के रोगों को आमंत्रण देते हैं।आहार के साथ शारीरिक श्रम एवं व्यायाम का अनुपान शरीर को तंदुरुस्त रखता है। इसके साथ उचित नींद एवं विश्राम का अपना महत्त्व है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

नीरोग जीवन के संदर्भ में इंद्रिय संयम की उपेक्षा नहीं की जा सकती।कामुकता जीवन के सार तत्त्व को निचोड़ देती है और असंयमित जीवन व्यक्ति को दुर्बलता एवं रुग्णता की ओर ले जाता है। ऐसे में स्वस्थ जीवन के सारे प्रयास धरे रह जाते हैं। इसके साथ अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए सादा जीवन-उच्च विचार जीवन को सुखी-स्वस्थ रखने का ठोस मानसिक आधार तैयार करता है। कहने की आवश्यकता नहीं कि प्राकृतिक जीवन स्वस्थ एवं नीरोग जीवन का प्रमुख आधार है, जिसको आज के दूषित वातावरण में जितना संभव हो सके-उतना अपनाने का प्रयास करना चाहिए। अपनी दिनचर्या एवं जीवनशैली में इन सूत्रों का ध्यान रखते हुए एक स्वस्थ एवं सुखी जीवन की नींव रखी जा सकती है।

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

अखंड ज्योति

दिसंबर 2020

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