इंद्रियनिग्रह का मूल मंत्र अपने को आवेशों से बचाए रहना है । जिस व्यक्ति के भीतर तरह-तरह के मनोवेगों का तूफान उठता रहता है, उसका मानसिक संतुलन स्थिर नहीं रह सकता और इससे वह इंद्रियों को वशीभूत रखने में भी असमर्थ हो जाता है । इसीलिए जो लोग इंद्रियों को संयत रखना चाहें उनको अपने मनोवेगों पर भी सदैव दृष्टि रखना आवश्यक है।