नींद मनुष्य के जीवन का अहम हिस्सा है। एक ओर जहाँ पढ़ने वाले बच्चे अधिक नींद आने की वजह से परेशान रहते हैं, वहीं संसार में कई ऐसे व्यक्ति भी हैं जो नींद न आने की वजह से परेशान हैं। वास्तव में अधिक नींद आने से अधिक परेशानी की बात नींद न आने की समस्या की है, इसलिए इसे एक रोग के रूप में माना जाता है। सामान्यतया इसके अंतर्गत दो बीमारियाँ हैं-इन्सोम्निया और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एप्निया। इन दोनों ही स्थितियों का इलाज समय से न हो पाने पर नींद न आने के अलावा अन्य कई परेशानियाँ भी बढ़ जाती हैं।
नींद न आना, जबरदस्ती नींद लाने का प्रयास करना, करवटें लेते रहना या फिर घूम-घूमकर रात बिताने की मजबूरी इन्सोम्निया कहलाती है। विशेषज्ञ इसके बारे में कहते हैं कि कई कारणों व परेशानियों की वजह से इन्सोम्निया रोग हो जाता है और इसमें सबसे प्रमुख कारण है-शारीरिक श्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम अधिक करना व इसके लिए लगातार परेशान रहना। इस रोग के पैदा होने के बाद काम में एकाग्रता की कमी, चिड़चिड़ापन, शरीर में ऊर्जा की कमी, थकान, आलस्य जैसी परेशानियाँ व्यक्ति को हो सकती हैं।
ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एप्निया नामक रोग में नींद न आने का कारण काम का तनाव नहीं, बल्कि साँस लेने में रुकावट होती है और इसके कारण लोग खर्राटे लेकर सो तो जाते हैं, लेकिन उन्हें बेहतर नींद नहीं आती। ऐसे लोगों को गले में टॉन्सिल बढ़ने, श्वास की नलियों में संकुचन या साइनस में स्लीप एप्निया की शिकायत हो सकती है और सामान्य स्थिति में साँस लेने के लिए गहरी साँस खींचना या अँभाई लेना भी इस रोग का एक लक्षण है।
हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, हमारे देश में ५८ प्रतिशत भारतीयों का काम अनिद्रा के कारण प्रभावित होता है। ११ प्रतिशत भारतीय नींद न आने के कारण ऑफिस से छुट्टी लेते हैं। ३८ प्रतिशत लोग ऑफिस में सहकर्मियों को सोते हुए देखते हैं और २ प्रतिशत भारतीय नींद न आने की समस्या को लेकर डॉक्टर के पास जाते हैं। हालाँकि नींद न आने की समस्या से बहुत से लोग परेशान होते हैं, लेकिन इसके स्थायी उपचार के बारे में नहीं सोचते, सीधे नींद की गोलियाँ खाना शुरू कर देते हैं।
नींद की गोलियों से व्यक्ति को नींद तो आने लगती है, लेकिन यह अनिद्रा की समस्या का स्थायी समाधान नहीं है, क्योंकि अनिद्रा से परेशान व्यक्ति जब नियमित रूप से इन गोलियों का सेवन करता है तो धीरे-धीरे नींद की गोलियों पर वह इतना निर्भर हो जाता है कि इनके बिना उसे नींद ही नहीं आती और ये मस्तिष्क पर अपना नकारात्मक असर भी डालती हैं, जैसे-मुँह सूखना, भूख कम लगना आदि। इसी कारण इन्हें नारकॉटिक्स दवाओं की श्रेणी में रखा गया है। ‘इन्स्टीट्यूट ऑफ ह्यमन बिहेवियर एंड एलाइड साइन्स’ के मनोचिकित्सकों की कहना है कि नींद की दवाएँ मस्तिष्क के न्यूरोन्स को निष्क्रिय कर सुस्त कर देती हैं और इसी कारण इन दवाओं का लंबे समय तक प्रयोग मस्तिष्क की क्रियाशीलता को कम करके स्मृति क्षमता को कमजोर कर सकता है।
आज की परिस्थिति में कामकाजी युवा और बुजुर्ग व्यक्ति सबसे अधिक अनिद्रा की समस्या से ग्रस्त हैं। यदि व्यक्ति दिन भर काम की थकान के बाद रात्रि को गहरी नींद सो जाते हैं, तो उनकी सुबह बहुत तरोताजा व स्फूर्तिवान होती है और वे अधिक उत्साह व ऊर्जा के साथ अपने काम को कर पाते हैं, लेकिन आज की अस्त-व्यस्त दिनचर्या, नशे की आदत, अपौष्टिक आहार आदि के कारण शहरी क्षेत्र का हर दसवाँ व्यक्ति चैन की नींद की तलाश में है। इस बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि नींद न आने का समाधान नींद की दवाओं में नहीं, बल्कि कई चरणों में नींद के लिए क्रमबद्ध प्रयास में है।
सामान्यतः एक स्वस्थ व्यक्ति को लेटने के बाद १० से १५ मिनट के अंदर नींद आ जाती है और इसके लिए उसे कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। व्यक्ति को आने वाली नींद भी कई चरणों में पूरी होती है। यह जरूरी नहीं कि व्यक्ति हमेशा ही गहरी नींद ले। इसमें चरण होते हैं और वह भी क्रमबद्ध तरीके से। नींद की दो अवस्थाएँ हैं-एन० आर० ई० एम० एवं आर० ई० एम०। एन० आर० ई० एम० पहले चरण की अवस्था है, जिसमें तीन चरणों में नींद आती है। पहले चरण में गरदन पर नियंत्रण खो जाता है, लेकिन आँखों की पुतलियाँ घूमती रहती हैं। दूसरे चरण में मस्तिष्क स्थिर हो जाता है, इसमें शरीर द्वारा मस्तिष्क को भेजी जाने वाली तरंगें धीमी हो जाती हैं और बाहरी दुनिया से उसका ध्यान हट जाता है। तीसरे चरण में उसका मस्तिष्क और शरीर सामान्य हो जाता है, इसे ही स्वप्न देखने की स्थिति कहते हैं और इस अवस्था में प्रायः बच्चे एवं बुजुर्ग व्यक्ति नींद लेते हैं।
एन० आर० ई० एम० अवस्था के तीनों चरणों के बाद व्यक्ति का आर० ई० एम० अवस्था की नींद में प्रवेश होता है, जिसमें एन० आर० ई० एम० की अवस्था में स्थिर होने वाला मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति को स्वतः ही बीते हुए समय की बातें याद आती हैं। स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति द्वारा इस चक्र का पूरा होना जरूरी है, लेकिन बहुत कम लोग ही इस चक्र को पूरा कर पाते हैं और इसका मुख्य कारण तनाव, अत्यधिक कार्य का दबाव, अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा, पारिवारिक व आर्थिक समस्याएँ व अत्यधिक चिंता आदि हैं, जिसके कारण उसकी आँखों से नोंद ही छिन जाती है और फिर समस्याएँ कम होने के बजाय बढ़ती जाती हैं।
अतः यदि रात्रि में नींद की समस्या से छुटकारा चाहिए तो सोने से पहले अपने मस्तिष्क में चल रहे विचारों की उथल-पुथल को रोकना होगा और अपने मस्तिष्क को विचारों के पहले प्रेरणादायी पुस्तकों को पढ़ना भी अच्छा माना जाता है; क्योंकि पढ़ने की प्रक्रिया में आँखों पर दबाव पड़ता है, उनमें थकान आती है और वे निद्रा की स्थिति में आ जाती हैं। यदि सोने से पूर्व प्रेरणादायी प्रसंग पढ़ा गया है, तो इससे मन को सुकून मिलता है और मन में अच्छे विचार उठते हैं। इसके अतिरिक्त पौष्टिकता से भरपूर भोजन लेना, भोजन के एक घंटे के बाद पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहना मनुष्य के स्वास्थ्य को बनाए रखता है और स्वस्थ शरीर व तनावमुक्त शरीर व मन अधिक सुकून की नींद लेता है। यदि हमें अपना शरीर स्वस्थ रखना है तो आवश्यक है कि हम भरपूर नींद लेते रहें।
- अखण्ड ज्योति, मई २००३