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नरेन्द्र को सीख

by Akhand Jyoti Magazine

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विवेकानंद विदेश जा रहे थे। वे माता शारदामणि के पास आशीर्वाद लेने पहुँचे। माताजी ने कहा—“पहले मेरा काम कर, बाद में आशीर्वाद दूँगी।” सामने खुली तलवार पड़ी थी इशारा करते हुए कहा- “उसे उठाकर ला।” विवेकानंद ने माता के हाथ में मूँठ थमा दी और धार वाली नोंक उसने अपने हाथ में रखी। माता ने आशीर्वाद देते हुए कहा- “जो दूसरों की कठिनाई को समझता है और मुसीबत अपने हिस्से में लेता है, उसी पर भगवान का आशीर्वाद बरसता है। तुम्हें भगवान का वरदान और कृपा सदा मिलती रहेगी।”
विवेकानंद जी कहते थे -“महानता के ढेरों गुण मुझे परमहंस जी के पारिवारिक वातावरण में सीखने विकसित करने का लाभ मिला। अन्यथा वे मुझे कभी नहीं मिल सकते थे।”
परिवार का श्रेष्ठ वातावरण संस्कारों के विकास में बहुत अधिक सहायक बनता है।

अमृत कण ( सचित्र बाल वार्ता )
युग निर्माण योजना , मथुरा

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