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महाशिवरात्रि का संदेश

by Akhand Jyoti Magazine

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आज हमारे देश में लाखों नर-नारी भगवान शिव की उपासना करते हैं। उपासना का अर्थ है-समीप बैठना। उपासक देव के गुणों का चिंतन-मनन और उन्हें ग्रहण करने का प्रयत्न करना, उस पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करना। सच्चे शिव के उपासक वही हैं, जो अपने मन में स्वार्थ भावना को त्यागकर परोपकार की मनोवृत्ति को अपनाते हैं। जब हमारे मन में ये विचार उत्पन्न होने लगते हैं तो हम झूठ छल, कपट, धोखा, बेईमानी, ईर्ष्या, द्वेष आदि से मुक्त हो जाते हैं। यदि शिवरात्रि व्रत करके भी हम इन बुराइयों को नहीं छोड़ते तो शिव का व्रत और पूजन केवल लकीर पीटना मात्र रह जाता है। उसमें कोई विशेष लाभ नहीं होता।

भगवान शिव का वस्त्र धारण न करना, अपरिग्रह का प्रतीक है। परिग्रह एक प्रकार का पाप है; क्योंकि किसी वस्तु का परिग्रह करने का अर्थ हुआ-दूसरों को उस वस्तु से वंचित रखना। अन्न के भंडार जमा रखने वाला दूसरों को भूखों मारने के लिए बाध्य करता है। जिसके अनेक मकान और बंगले हैं, वह औरों को झोंपड़ी बनाने से भी वंचित रखता है। संसार में परिग्रह करने वाले धनवानों का पूजन और सम्मान कोई नहीं करता, बल्कि त्यागी, तपस्वी और अपरिग्रही संत-महात्माओं की चरण धूल मस्तक पर लगाई जाती है। भगवान शंकर सर्वशक्तिमान हैं, परंतु उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं लिया। सादा जीवन और उच्च विचार ही उनके जीवन का आदर्श रहा।

भगवान शिव ने योग-साधना से अपने जीवन को परिष्कृत किया। वह गुणों के भंडार हैं। शक्ति उनके इशारे पर नाचती है। वह अपने तीसरे नेत्र से बड़ी-से-बड़ी शक्ति को जलाकर राख करने की सामर्थ्य रखते हैं। इसी शक्ति से उन्होंने कामदेव को भस्म कर दिया था। हमें भी शक्ति की वृद्धि करके, अपने व्यक्तिगत जीवन व समाज में अनैतिकता, अश्लीलता और कामुकता को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।

महादेव रुंडों की माला अपने गले में पहनते हैं, अर्थात क्रोध को वश में किए हुए हैं। गंगा उनकी जटाओं से निकल रही है। आध्यात्मिक शांति की गंगा का प्रवाह उनसे आरंभ होता है। उनके मस्तक पर चंद्रमा का चिह्न रहता है। वह शांतिप्रिय और संसार को शांति का प्रकाश देने वाले हैं। शिव निरंतर अपनी साधना में लीन रहते हैं। गायत्री मंजरी नामक पुस्तक में वर्णन आता है कि भगवान शिव की साधना का मूल आधार गायत्री उपासना था। इसे उन्होंने पृथ्वी की सबसे बड़ी शक्ति कहा है। अखंड अग्नि अर्थात यज्ञ भगवान के समक्ष साधना का उनके जीवन में विशेष स्थान था। इनके द्वारा प्राप्त शक्ति से ही त्रिशूल अथवा त्रितापों को दूर करने की सामर्थ्य रखते हैं। यदि हम भी सुखी रहना चाहते हैं तो हमें उनका अनुकरण करना चाहिए।

महान आत्माएँ अपने व अन्य प्राणियों में कोई अंतर नहीं मानतीं, वह दूसरों को अपने बराबर ही समझती हैं। उनके मन में छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं रहता। गीता में भगवान ने स्वयं कहा है कि पंडित और ज्ञानी वह है, जो विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण, हाथी, गाय आदि को एक समान मानता है। आज लोग धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा आदि के मद में अपने से छोटों को दुतकारते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार करते और अपने छोटेपन का परिचय देते हैं। वे कभी यह नहीं सोचते कि इस प्रकार का व्यवहार उनके साथ किया जाए तो उन्हें कैसा लगेगा ? महादेव ने तो भूत-प्रेतों को अपना साथी बनाया अर्थात पतितों को अपने गले से लगाया, उनके उत्थान के लिए सतत प्रयत्न किए। शिवरात्रि व्रत मनाने का अधिकार ब्राह्मण से लेकर चांडाल तक को है। भोले बाबा के लिए सब एक समान हैं।

यह धारणा है कि भगवान शिव भाँग व धतूरा खाते-पीते हैं। अतः हमें भी उसका सेवन करना चाहिए। वे तो परोपकार की मूर्ति हैं। प्राणियों को इनके विषैले प्रभाव से हानि न हो इसलिए वे इन्हें ग्रहण करते हैं। हमें भी अपने समाज की विकृतियों को समाप्त करने के लिए कुछ भी सहन करना पड़े तो सहन करें।

प्रत्येक वर्ष भगवान शिव हमें चेतनता प्रदान करते हैं- संसार के लोगो! उठो और जागो यदि अपनी और दूसरों की सुख-शांति चाहते हो तो अपरिग्रह, सादा जीवन, उच्च विचार, अक्रोध, परोपकार, समता, परदुःखकातरता, परमात्मा की समीपता को अपनाओ। भोग-विलास का जीवन व्यतीत करने से क्षणिक सुख भले ही मिल जाए, परंतु उनमें स्थायित्व नहीं है। स्वार्थ में क्षणिक आनंद अवश्य आता है, परंतु उसका अंत पतन में है। केवल अपनी उन्नति में ही संतुष्ट न रहो, वरन दूसरों की, अपने समाज और राष्ट्र की उन्नति को अपनी सफलता मानो।” इन संदेशों को यदि अपने अंतःकरण में स्थान देते हैं तो हम सच्चे शिव-उपासक हैं।

गायत्री परिवार का कर्त्तव्य है कि इस महान पर्व को शुद्ध शास्त्रोक्त रीति से मनाकर लोगों को स्वकल्याण का मार्ग दिखाए। प्रज्ञा-परिजनों में से हरेक को यह महाशिवरात्रि व्रत निष्ठापूर्वक मनाना चाहिए। अपनी शाखा के सब सदस्यों को व्रत रखने की प्रेरणा देनी चाहिए और विधिपूर्वक शिव-पूजन करना चाहिए। भगवान शिव के गुणों का गान और समाज के प्रति कर्त्तव्यों पर प्रकाश डाला जाए। जनता से इस पुनीत पर्व पर नशीली वस्तुओं के त्याग के लेने चाहिए। त्याग, परोपकार, सादा जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। परिजनों को चाहिए कि वे इस शुभ अवसर पर जनता को महान अनिष्ट से बचाने के लिए सिगरेट, बीड़ी, शराब, भाँग, गाँजा, अफीम आदि नशीली वस्तुओं को छुड़वाने के संकल्प भी कराएँ ।

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मार्च , २०२२

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