‘राम’ नाम के दो अक्षरों में जीवन की संपूर्ण मर्यादाएँ संजोई गई हैं। लोक और वेद में उत्कृष्ट आचरण के जितने भी सूत्र कड़े गए हैं, वे सभी अपने साररूप में राम में समाहित हैं। राम का अवतरण ईश्वरीय मर्यादाओं का, अनुशासन का धरती पर अवतरण है, जिसका उद्देश्य मनुष्य को देवत और धरा को स्वर्ग में रूपांतरित करना है। परमात्मा की समस्त लौकिक एवं आध्यात्मिक मर्यादाओं के साकार विग्रह बनकर प्रभु श्रीराम वैत्र शुक्ल नवमी तिथि को अवतरित हुए थे। चैत्र नवरात्र को यह नवमी तिथि जगमाया आदिशक्ति के नवम् रूप सिद्धिदात्री’ (नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।- श्रीदुर्गासप्तशती) को संपूर्ण शक्तियों को प्रकट करती है। इस तरह ‘रामनवमी’ में मर्यादाओं के सिद्धिदात्री होने का सच अपनी संपूर्ण आभा के साथ प्रकट होता है।
मर्यादाएँ लौकिक जीवन में निभाई जाएं या फिर आध्यात्मिक जीवन में, उनकी सिद्धि-सफलता सुनिश्किा है। मर्यादित जीवन तप की डगर है। इस पर चलकर मनुष्य पल-पल अपनी शक्तियों का संचय करता है, उनमें अभिवृद्धि करता है। यह सामान्य पुरुष में पुरुषोत्तम बनता है। लोक उसे अपना आदर्श मानकर उसे मर्यादा पुरुषोतम का गौरव देता है। राम’ शब्द के दो अक्षरों में मर्यादा और सिद्धि का, शक्ति व ब्रह्म का सायुज्य है। मर्यादाओं का कतीरता से अनुपालन करने पर अधोमुखी अंतःशक्ति ऊर्ध्वमुखी होती है। वह महाकुंडलिनी मूलाधार में जाग्रत होकर वासना, तृष्णा व अहंता की ग्रंथियों को खोलते हुए चक्रों के चक्रव्यूह का वेधन कर ऊपर उठती है। इसी के साथ होता है क्लेश कर्मों का क्षय, कर्मबीजों का नाश, कुसंस्कारों का विनाश और फिर जीवन की सता में प्रकट होती है आत्मा की अनुभूति, ईश्वर का ऐश्वयं तथा परमात्मा का परमपद, परंतु यह अनुभव मिलता उनहीं को है, जो राम गुन गाते हुए. मर्यादित जीवन जीकर अपनी भाव-चेतना में मर्यादा पुरुषोत्तम के अवतरण को संभव बनाते हैं।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल २००८