Home Akhand Jyoti Magazine समग्र एवं संपूर्ण जीवन का आधार है- उच्च आदर्श

समग्र एवं संपूर्ण जीवन का आधार है- उच्च आदर्श

by Akhand Jyoti Magazine

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मनुष्य जीवन को असीम संभावनाओं और क्षमताओं से युक्त कहा गया है। ‘यथा ब्रह्माण्डे तथैव पिण्डे’ के स्वर में इस जीवन की अनंत सामर्थ्य का गान हुआ है। इस धरती पर हजारों-लाखों की संख्या में प्राणि जातियों का जीवन मौजूद है, लेकिन केवल मनुष्य मात्र को ही इस सृष्टि को जानने एवं पूर्णरूपेण अभिव्यक्ति करने में समर्थ माना गया है। मनुष्य होने के नाते हम सभी के लिए यह अत्यंत गौरव और सौभाग्य की बात है कि हम इस सृष्टि में विशिष्ट प्राणी हैं और अपरिमित शक्ति सामर्थ्य के उत्तराधिकारी हैं।

परमपूज्य गुरुदेव ने भी कहा कि हम मनुष्यों का जीवन इस धरती पर राजकुमार की तरह है। परमसत्ता ने अपने प्रतिनिधि के रूप में हमें संसार में भेजा है और नर से नारायण बनने की दिव्य संभावना केवल और केवल मनुष्य को ही प्राप्त है, परंतु हम मनुष्यों के जीवन का दूसरा प्रत्यक्ष पहलू यह भी है कि असीम संभावनाओं और अनंत सामर्थ्यो के ईश्वरीय अनुदान से सुसज्जित यह जीवन स्वार्थ, संकीर्णता अहं, क्षुद्रता, अविवेकशीलता, भय, भ्रम, द्वंद्व, दुःख, विषाद आदि की जंजीरों में जकड़ा हुआ अभिशाप का पर्याय बनकर सामने आता है।

मानवीय कलेवर में से जिन दैवी गुणों का प्रस्फुटन होना चाहिए था, उनके स्थान पर पाशविक वृत्तियों का आधिपत्य हो जाना मानव अस्तित्व की सबसे बड़ी त्रासदी और दुर्भाग्य है। मनुष्य जीवन की यह कड़वी, परंतु वर्तमान की कठोर सच्चाई है कि वह चहुँओर मनुष्यों के बीच मनुष्यता को तरस रहा है। अपरिमित भौतिक चकाचौंध में खड़ा समाज का इनसान भीतर से रोता हुआ और बाहर से इनसानियत को तरसता नजर आता है।

इससे भी बड़ा दुःखद आश्चर्य तो यह है कि मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ने के, जीवनमूल्यों से आपूरित करने के, आदर्शों- सिद्धांतों के साँचे में ढालने के प्रयास विगत शताब्दियों से कहीं ज्यादा वर्तमान में दिखाई पड़ते हैं। लेकिन परिणाम परिणति अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक निकलकर सामने आ रहे हैं। ऐसे में यह उत्तरदायित्व उन सभी के कंधों पर आ जाता है, जो मनुष्यमात्र के कल्याण, उत्थान और विकास की दिव्य प्रेरणा से पूरित संकल्पित हैं और सतत प्रयासरत भी आवश्यकता है कि इन प्रयासों की दिशा को परिवर्तित किया जाए और गहन समीक्षापूर्ण तरीके से समस्या के केंद्र में पहुँचकर समाधान के सार्थक उपायों की ओर मानवमात्र के जीवन को मोड़ने का पुरुषार्थ किया जाए।।

हमारी दृष्टि में यह शुरुआत जीवन में सही आदर्श की खोज से होनी चाहिए। आदर्शों की डोर से बँधा जीवन कभी भी दिशाहीन एवं मूल्यहीन नहीं हो सकता है। आदर्श, फिर चाहे कोई व्यक्ति, व्यक्तित्व, विचार, सिद्धांत कुछ भी हों, परंतु आदर्श हों अवश्य; ताकि जीवन उनसे सतत प्रेरणा, पथ और प्रकाश प्राप्त करते हुए सही दिशा में आगे बढ़े, लेकिन आदर्श को पहचानें कैसे? सही आदर्श का चयन कैसे करें? तो ध्यान रहे कि आदर्श हमारे जीवन की पराकाष्ठा का पर्याय है। जितना ऊँचा, महान, पवित्र आदर्श होगा, उतना ही जीवन ऊँचाई पर पहुँच पाएगा।

जीवन की अपनी ही प्रकृति, प्रवृत्ति और गति है। इसमें जो, जब, जैसे बीज डालेंगे, उसी के अनुरूप परिणाम प्रस्तुत होंगे घटिया और ओछे आदर्शों के बीज बोकर हम जीवन को कभी भी ऐसे उच्च विचारों और भावनाओं से नहीं जोड़ सकते, जहाँ से मानवीय गरिमा और गुण प्रकाशित होते हों। इसलिए आदर्श हमेशा बड़ा, महान, उच्च और श्रेष्ठतम ही चयन करना चाहिए।

आदर्श ऐसा हो, जो हमें जीवन की सही दिशा दे सके। जब भी हम विपरीतताओं, विषमताओं और संघर्षमय चुनौतियों के भँवर में फँसे हों, स्वयं को सब ओर से असहाय, बेबस से महसूस कर रहे हों, तब हमारा आदर्श ही एकमात्र वह शक्तिस्रोत होता है, जो हमें इन सारे अंत:-बाह्य झंझावातों से बाहर निकाल सकता है। इसलिए जीवन में आदर्श का स्थान अवश्य होना चाहिए और आदर्श भी ऐसा हो, जिस पर हमारा संपूर्ण विश्वास, अटूट आस्था और श्रद्धा-समर्पण की भावना इतनी सुदृढ़ हो कि जिसके लिए आवश्यकता पड़ने पर जीवन भी उत्सर्ग किया जा सके।

आदर्श की छाँह में पोषित, आदर्श के प्रकाश से प्रकाशित जीवन ही संपूर्णता और समग्रता का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। इसके साथ यह भी अनिवार्यता है कि आदर्श के चयन करने में स्वयं के जीवन का आकलन संपूर्णता और व्यापकता में किया जाए। जीवन के लिए लौकिक और अलौकिक, भौतिक और आध्यात्मिक, स्थूल और सूक्ष्म सभी आयाम समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, इनमें से किसी एक की उपेक्षा अवहेलना का तात्पर्य है अस्तित्व की सच्चाई को नकारना और आत्मघाती दिशा में कदम बढ़ाना। अतः ध्यान रहे आदर्श की विशालता में हमारे जीवन की व्यापकता का सहज समावेश संभव हो सके। आदर्श चयन की यह कसौटी उन लोगों के लिए भी है, जिन्होंने अपने जीवन को किसी आदर्श से जोड़ लिया है या किसी को आदर्श बनाकर चल रहे हैं।

सामान्यतया लोग कई बार अपने घर-परिवार के सदस्यों, परिचितों या टेलीविजन, फिल्म, खेल आदि से जुड़ी हस्तियों को अपना रोल मॉडल मानकर चलते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। सत्प्रेरणाएँ जहाँ से मिलें, ग्रहण करने योग्य हैं, परंतु यह सदैव ध्यान रखा जाए कि इन प्रेरणाओं से बाहर भी जीवन का कोई हिस्सा छूट तो नहीं रहा है। जैसे यदि कोई क्रिकेट या कुश्ती जैसे किसी खेल में रुचि रखता है तो उस खेल के शिखरस्थ खिलाड़ियों से वह प्रेरणाएँ ग्रहण कर सकता है, करना भी चाहिए, परंतु साथ में यह भी ध्यान रहे कि खेल क्षेत्र के अलावा भी जीवन के आयाम हैं, जैसे-घर-परिवार, मित्र, समाज, राष्ट्र और सबसे अहम स्वयं का व्यक्तित्व, चिंतन, चरित्र और व्यवहार है।

ये सभी हमारे जीवन से जुड़े अनिवार्य पहलू हैं। इनकी उपेक्षा हम कदापि नहीं कर सकते और इनसे भी एक कदम आगे बढ़कर जीवन का आत्मिक विकास है। जीवन में आदर्श का मूल प्रयोजन इसी आत्मिक विकास की यात्रा को पूर्ण करना है। ऐसे में यदि हमारा आदर्श एकांगी, संकीर्ण एवं साधारण स्तर का है तो उसी अनुपात में हमारे जीवन की संभावनाएँ और विकास- प्रक्रिया सीमित हो जाते हैं।

आदर्श के समानांतर ही विचारों, कल्पनाओं और जीवन की ऊँचाई होती है। छोटे एवं ओछे आदर्श से ऊँचे एवं महान जीवन की कल्पना बेमानी है। सच्चे आदर्श में जीवन की संपूर्णता, व्यापकता और सर्वोच्चता की विशेषताएँ मौजूद होती हैं। अतः ध्यान रहे कि आदर्श हमारी जिंदगी का चरम बिंदु है। इसके बौने रहने से जिंदगी भी बौनी ही रह जाएगी, इसलिए आदर्श वही चयन किया जाए, उसे ही बनाया जाए, जो जिंदगी के शिखर पर पहुँचा हुआ हो।

सच्चे आदर्श का स्थान सर्वोपरि होता है। उसे हमारा हृदय संपूर्ण रूप से स्वीकार करता है, महसूस करता है। जीवन की उलझनों में, संघर्षों में वह हमारे लिए प्रकाशस्तंभ की भाँति कार्य करता है। जहाँ भी हम भटकते हैं, जब भी गिरते हैं, हमारा आदर्श ही हमें सँभालता है, उठाता है और आगे बढ़ाता है। एक श्रेष्ठ आदर्श की छाँह में ही हमारा •जीवन मनुष्यता के गुणों से विभूषित होता है और व्यक्तित्व में उन मूल्यों को प्रकाशित होने का अवसर मिलता है, जिनसे सच्चे अर्थों में हम मनुष्य कहलाते हैं।

हमारे जीवन की नाव को सही दिशा में चलाने और अभीप्सित लक्ष्य तक पहुँचाने में आदर्शरूपी पतवार ही एकमात्र सहारा होती है। संसार के इस भवसागर में भाग्य, परिस्थितियों और संघर्षों के निरंतर उठते रहने वाले तूफानों थपेड़ों से बाहर निकाल लाने की शक्ति सामर्थ्य आदर्श में ही होती है। अतः इन बातों से आदर्श की महत्ता और उसके चयन की अनिवार्यता का बोध स्वतः हो जाता है।

मनुष्य का शरीर धारण कर जीवन में निकृष्टता, मूल्यहीनता, संकीर्णता, निरर्थकता और निराशा की दशा का समाज में निरंतर बढ़ते जाना आदर्शहीनता तथा ओछे आदर्शों का ही परिणाम माना जाना चाहिए। असीम संभावनाओं और क्षमताओं से युक्त जीवन की वर्तमान दशा-दिशा से तुलना की जाए तो घोर निराशा होती है। मानवीय विशेषताओं का पतन और पाशविक आसुरी प्रवृत्तियों का बढ़ते जाना संपूर्ण मानवता के लिए घातक है।

ऐसे में समाधान का समुचित मार्ग तलाशना और उस पर चल पड़ना प्रत्येक मनुष्य का आत्मिक कर्त्तव्य है। अपनी मानवीय काया में जिस आत्मा को लेकर वह पैदा हुआ है-उसे पूर्णता तक विकसित बनाना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा एवं प्रमुख कर्त्तव्य है। इस महान लक्ष्य की प्राप्ति और स्वकर्त्तव्यपालन की क्षमता का स्रोत है- जीवन आदर्श।

आदर्श जितना महान होगा, उसी अनुपात में व्यक्ति के विचार, कल्पनाएँ और अंतः भाव पहुँचेंगे और जहाँ विचार एवं कल्पनाएँ पहुँचेंगी, वहीं जीवन की ऊँचाई होगी। अतः सावधान रहें। छोटा एवं ओछा आदर्श असीम व असीमित जीवन की संभावनाओं को सीमित व संकीर्ण बना देगा, इसलिए बड़े एवं महान आदर्श का चयन कीजिए, ताकि मनुष्य जीवन की अपरिमित शक्ति सामर्थ्य संभावनाओं तक पहुँचना संभव हो सके और मनुष्य देह में मनुष्यता के प्रकाश से विश्व समाज पुनः आलोकित हो उठे।

फरवरी 2022,अखण्ड ज्योति

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