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व्यायाम हमारी एक अनिवार्य आवश्यकता

by Akhand Jyoti Magazine

कोई देश जिस आधार पर अपनी आंतरिक शांति और बाहरी सुरक्षा बनाए रह सकता है, वह उसकी समर्थता ही है। राष्ट्रों के जीवन की तरह एक व्यक्ति की शांति और सुरक्षा के लिए भी उसकी सामर्थ्य अविच्छिन्न तत्त्व है, उसके अभाव में सुख और संतोष का जीवन नहीं जिया जा सकता। चरित्र और मनोबल की सम्मिलित शक्ति ही वह वास्तविक समर्थता उत्पन्न करती है, जिससे व्यक्ति या राष्ट्र अजेय बनते हैं।

मन समर्थ तब हो सकता है, जब शरीर में भी प्रचुर सामर्थ्य भरी पड़ी हो। उसी प्रकार शारीरिक दृष्टि से बलवान व्यक्ति ही अपने चरित्र और नैतिक तत्त्वों की रक्षा कर सकते हैं। इससे प्रकट होता है कि मनोबल और आत्मबल या चरित्रबल दोनों के लिए अन्य आवश्यकताओं से भी अधिक स्वास्थ्य अनिवार्य है। स्वस्थ विचार और स्वस्थ आचरण वही कर सकता है, जिसका शरीर भी स्वस्थ हो। दुर्बल और क्षीणकाय व्यक्ति तो अपने अस्तित्व की भी भली प्रकार रक्षा नहीं कर सकता, आदर्श और सिद्धांत की रक्षा करना तो उसके लिए अपंग का पर्वत पर चढ़ने के समान ही कठिन समझना चाहिए।

किसी व्यक्ति और राष्ट्र की समग्र समर्थता के लिए स्वास्थ्य एक अविच्छिन्न तत्त्व है; जिसकी किसी देश, समाज और काल में उपेक्षा नहीं की जा सकती। स्वास्थ्य न रहेगा तो न साहस रहेगा न और कुछ। शौर्य, उत्साह, पराक्रम, पुरुषार्थ, निरालस्यता, आत्मविश्वास, दृढ़ता इत्यादि गुणों का आविर्भाव स्वस्थ व्यक्तियों में ही संभव है। कमजोर शरीर ती कायरता, कापुरुषता, आलस्य, आत्महीनता, पराजय और परवशता का ही जन्मदाता होता है।

जीवनीशक्ति का आधार है-शरीर का भली प्रकार स्वस्थ और सशक्त रहना तथा समस्त अंगों का अपना-अपना कार्य सहीतीर पर करते रहना। स्वास्थ्य के मुदव, रहने से ही सब प्रकार के कार्यों को ठीक तरह से कर सकने की क्षमता उत्पन्न होती है। मन प्रसन्न और उत्साहयुक्त रहता है। विचारों में संतुलन और स्थिरता रहती है और बुद्धि नए-नए तथा महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की ओर अग्रसर होती है। इस दृष्टि से विचार करने पर यह निश्चय हो जाता है कि स्वास्थ्य ही हमारे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है जो व्यायाम इत्यादि से ही बनाए रखा जा सकता है।

पर इस प्रकार का उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त कर सकना और उसे सुरक्षित रख सकना आजकल थोड़ेसे ही लोगों के लिए संभव जान पड़ता है। बहुत-से लोग तो सुदृढ़ स्वास्थ्य के रहस्य को जानते ही नहीं। वे समझते हैं कि दूध, घी आदि पौष्टिक पदार्थों के अधिक परिमाण में खाने से, समय-समय पर शक्तिवर्द्धक औषधियों (टॉनिक) आदि का सेवन करते रहने से शारीरिक शक्ति बढ़ सकती है। पर जब हम इस मार्ग पर चलने वाले सेठों, बड़े व्यवसायियों, उच्च सरकारी अफसरों के स्वास्थ्य पर दृष्टि डालते हैं तो उनको प्रायः किसी न किसी शारीरिक व्याधि में ग्रस्त और डॉक्टरों के यहाँ प्रायः आते-जाते देखते हैं। इसका एक कारण तो शारीरिक श्रम के सभी कार्यों से दूर रहकर केवल दिमागी काम करते रहना और दूसरा कारण स्वच्छ हवा और खुले हुए वातावरण की अपेक्षा बड़े नगरों के बीच बंद कमरों में बिजली की रोशनी और पंखे के सहारे दिनभर काम करते रहना है। ये दोनों ही त्रुटियाँ स्वास्थ्य को निर्बल और दूषित बनाने वाली हैं।

वर्तमान आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों को देखते हुए यह तो संभव नहीं जान पड़ता कि शहरों के वातावरण को बहुत अधिक बदला जा सके अथवा लोगों के जीवन-निर्वाह के पेशों में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन किया जा सके। पर हम अपने खान-पान में उचित बदलाव करके और अपना परिस्थिति के अनुसार प्रतिदिन नियमित रूप से  किसी प्रकार का व्यायाम करके अपने स्वास्थ्य को | आयु के बढ़ने के साथ-साथ ठीक रख सकते हैं। व्यायाम का मतलब दंड-बैठक, कुश्ती, मुगदर आदि भारी व्यायामों से नहीं है। यह तो विशेष रूप से पहलवानों और फौजी लोगों के लिए उपयुक्त हैं। सामान्य लोगों को तो ऐसे ही व्यायाम करने चाहिए, जिससे रक्त शुद्ध होकर उसका शरीर में आना-जाना उत्तम प्रकार से होने लगे और पाचनसंस्थान के यंत्र अपना काम ठीक प्रकार से करते हुए आहार को उपयोगी रस और रक्त के रूप में परिवर्तित कर सकें। योग, व्यायाम बस्ती के बाहर किसी खले स्थान में या घर के ही किसी ऐसे स्थान में करना चाहिए, जहाँ की वायु अपेक्षाकृत शुद्ध और ताजा हो।

इन दोनों बातों के साथ अपनी मानसिक अवस्था को भी ठीक दशा में रखना आवश्यक है। विचारों की शक्ति अकथनीय है और यदि हम अपने मनोभावों को शुद्ध, परिष्कृत तथा आदर्श बनाने की चेष्टा करें तो स्वास्थ्य तथा सौंदर्य की बहुत दिनों तक ठीक रख सकते हैं। विशेष रूप से व्यायाम करते समय यह भावना भी करते रहना चाहिए कि इन क्रियाओं को करने से हमारे भीतर शक्ति की वृद्धि हो रही है। इससे हमारी दुर्बलता और त्रुटियाँ दूर होकर स्वास्थ्य पहले से बढ़िया हो रहा है। हमको यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि स्वास्थ्य का आधार पौष्टिक भोजन और अन्य बाहरी साधनों पर ही निर्भर नहीं है, वरन हमारे रहन-सहन, आचार-विचार और सद्वृत्तियों पर भी आधारित है। इतने पर भी किसी भूल-चूक या अनिवार्य परिस्थितियों के कारण कोई खराबी पैदा हो जाए तो उसे सरल व्यायाम अथवा टहलना आदि जैसे स्वाभाविक उपायों से दूर कर लेना चाहिए।

युग निर्माण योजना अक्तूबर २०१६

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