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समय का महत्त्व जानें

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कवि स्टीफन अपने जीवनकाल में निकटवर्ती लोगों से बराबर कहा करते थे- “समय रबर है-उसे खींचकर लंबा करो, उसे सिकुड़ने न दो। यदि सिकुड़ जाएगा तो तुम पछताओगे। यदि फैल जाएगा तो अपने आप को धन्य मानोगे।” लोगों ने सिकुड़ने और फैलने का रहस्य पूछा तो कहने लगे-सिकुड़ने का तात्पर्य है-निर्धारित समय में जितना उपयोगी काम संपन्न हो सकता था, उतना सदुपयोग नहीं हुआ। उस समय को आलस्य-प्रमाद में गँवाया गया, किंतु फैलने का तात्पर्य है-निर्धारित समय में शारीरिक एवं मानसिक सक्रियता को इस स्तर तक बढ़ाना, जिससे हमारी बौद्धिक सामर्थ्य तो बढ़े ही कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य भी संभव हो सके। इसी आधार पर महापुरुष कम समय में अनेक व्यक्तियों का कार्य संपन्न कर लिया करते हैं। लोगों को आश्चर्य होता है कि छोटे-से जीवनकाल में इतना सब संपन्न कैसे हुआ?

हर व्यक्ति यदि गंभीरतापूर्वक अपने आप का विश्लेषण करे, तो पता चलता है कि उसके कुछ विशेष दायित्व एवं कर्त्तव्य हैं। उसके अतिरिक्त बचे समय का वह सुनियोजन नहीं कर पाता फलस्वरूप उसकी योग्यता, प्रतिभा तथा कार्यक्षमता कुंठित होकर रह जाती है। आठ या दस घंटे कठोर शारीरिक या मानसिक श्रम करने के बाद अवकाश के क्षणों को अपना स्वयं मानकर वह मनोरंजन या हलके कार्यों में लगा देता है। यह अवकाश के क्षणों की उपयोगिता नहीं हुई। प्रवाह को चीरकर आगे बढ़ने वाले अपने समय को कसकर महत्त्वपूर्ण दायित्वों के बीच रहकर भी अत्यंत कम समय का सदुपयोग करते हुए विद्या एवं कला के क्षेत्र में हीरे-मोती की तरह चमककर आगे आ गए; जबकि अन्य लोग यथास्थान बने रहे और अपना एवं भाग्य का सिर पटकते रहे। उनकी गाड़ी दो कदम आगे नहीं बढ़ी।

ब्रिटिश पार्लियामेंट के प्रमुख जान हुरविट अपनी व्यस्ततम दिनचर्या में भी कुछ क्षणों को छोड़कर बोलने एवं संपर्क करने का क्रम बनाते रहते थे और विश्व के जाने-माने वक्ता बन गए। दास प्रथा का उन्मूलन करने वाली पुस्तक ‘टाम काका की कुटिया’ की लेखिका श्रीमती हैरियट स्टो अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त नहीं थी। खाना बनाने, बच्चों को सँभालने एवं अर्थोपार्जन के लिए कुछ कार्य करने की जिम्मेदारी उन पर थी। फिर भी रात्रि में सबको सुलाकर लेखन-कार्य करती, तभी ‘टाम काका की | कुटिया’ नामक उच्च संवेदनशील ग्रंथ की रचना संभव हो सकी। वह कभी भी समय का रोना नहीं रोई।

कवि वर्क्स ने अपने पूर्वकाल से लेकर अंत समय तक एक साधारण कृषक का जीवन बिताया। । किंतु उन्होंने खेत जोतते, बीज बोते, निराई-गुड़ाई करते, पानी देते और फसल काटते समय अपने चिंतन-मंथन वाले क्रम को लुप्त नहीं होने दिया। इन विचारों को लिपिबद्ध करते हुए कृषि-कार्य के साथसाथ महाकवि बन गए। मिल्टन राज्यमंत्री होते हुए अवकाश के क्षणों में अनेक समस्याओं से ग्रसित होने के बाद भी ‘पेरेडाइज लास्ट’ नामक रचना से विश्वविख्यात हो गए। उपयोगितावाद के जनक जान स्टुअर्ट मिल ईस्ट इंडिया हाउस में क्लर्की का कार्य किया करते थे। परिस्थितियों का गंभीरता से अवलोकन करते हुए वे रात्रि में अपने विचारों को लिपिबद्ध करते हुए लेखक कहलाए। ज्योतिष के संबंध में प्रथम शोध करने वाले गैलीलियो मूलतः चिकित्सक थे। मरीजों को देखने जाते समय 15 मिनट से लेकर एक घंटे का समय चिंतन पर लगाया करते थे, रात्रि में तारासमूहों को देखने उनकी स्थिति का पता लगाने में भी समय का उपयोग करते थे। इन आधारों पर ज्योतिषाचार्य कहलाए।

माइकिल फैराडे जिल्दसाजी करते हुए भी अपनी रुचि अध्ययन की ओर लगाए रहे। चार्ल्स फास्ट मूलतः जूता बनाने, चप्पलों को ठीक करने का कार्य किया करते थे। इस बीच उनकी मौन साधना पर लोग आश्चर्य करते थे।बाद में वे प्रथम श्रेणी के व गणिताचार्य कहलाए। प्रसिद्ध संगीतकार वीथोवियन ने मृत्युशय्या पर कराहना स्वीकार नहीं किया और जब तक रेक्यूम ग्रंथ पूरा नहीं हुआ, तब तक उनके प्राणपखेरू नहीं उडे। डॉ. मारशन ने मरीज देखने जाते समय बीच वाले समय का उपयोग करते हुए लुकेशियस का अनुवाद कर डाला। हेनरी क्वीकाहाईट ने दफ्तर आते-जाते समय घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे फ्रेंच एवं इटालियन भाषा को पढ़ा।

हमारे गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य जी स्वयं समय को रबर की तरह खींचकर बड़ा करने वाले सिद्ध हुए। स्कूली पढ़ाई पाँचवीं होने पर भी विभिन्न भाषा एवं विषयों के निष्णात बन गए। अँगरेजी उन्होंने जेल में सीखी। प्रवास में होने पर भी नित्य 100 चिट्ठियों का उत्तर स्वयं लिखा करते थे एवं युग निर्माण व अखण्ड ज्योति पत्रिका के लिए भी नित्य लिखते थे। रेल में यात्रा करते समय उनकी लेखनी अनवरत चलती रहती थी, तभी वे अस्सी वर्ष की उम्र में 800 वर्ष के कार्यों को संपन्न कर सके। ऐसे व्यक्ति अभी भी हैं, जो व्यस्त चिकित्सक होते हुए भी अगाध परिश्रम, अनवरत स्वाध्याय के माध्यम से आयुर्वेद, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, योग, आर्ष साहित्य को अपने जीवन में उतारकर लोक-नेतृत्व का कार्य भी कर लेते हैं। यह उपलब्धि समय के एक-एक क्षण के सदुपयोग से संभव हो पाती है।

विनोबा जी ने जेल में ‘गीता रहस्य’ जैसे गढ ग्रंथ की रचना कर डाली। अरविंद जेल में रहकर विशद्ध रूप से साधक बन गए। महात्मा गांधी प्रात:काल टहलते समय महत्त्वपूर्ण परामर्श एवं मार्गदर्शन दिया करते थे। जो उनसे नहीं मिल पाते वे टहलते समय मिला करते थे। रवींद्र नाथ टैगोर की अधिकांश रचनाएँ रात्रि में लिखी गईं। यही उनकी साधना का भी समय था। 24 घंटे का समय ईश्वर ने सबको प्रदान किया है। स्वतंत्रता इतनी भर है कि कौन इसे किस रूप में उपयोग करता है और उपलब्धियाँ अर्जित करता है। तभी जार्ज एमिल कहा करते थे-फुरसत का समय सोने से ज्यादा मूल्यवान है। इटली के प्रसिद्ध विद्वान ने अपने घर में बोर्ड टाँग दिया था-“कृपया मेरे कार्य में मदद करें, फालतू की बातें न करें।” टीटिया का कहना था-“आज के दिन में हमारा भविष्य छिपा हुआ है।” जेपिया पारमरगन अपने विद्यार्थियों के बीच चिल्लाकर बोलते थे-“एक घंटा सहस्र रुपयों से भी बढ़कर है। अत: समय न गँवाओ, समय को यों ही खरच मत करो।”वस्तुतः यह सत्य है कि जो भी समयसंपदा का सही उपयोग कर लेता है, वही जीवनरूपी रंगमंच का सच्चा कलाकार, सफल व्यक्ति कहा जाता है।

-पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

युग निर्माण योजना

जुलाई 2020

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