‘अगर मुझे अमुक सुविधाएँ मिलती, तो मैं ऐसा करता’ इस प्रकार की बातें करने वाले एक झूठी आत्म प्रवंचना किया करते हैं ।
अपनी नालायकी को भाग्य के ऊपर, ईश्वर के ऊपर, थोपकर खुद निर्दोष बनना चाहते हैं। यह एक असंभव माँग है कि यदि मुझे अमुक परिस्थिति मिलती, तो ऐसा करता।
जैसी परिस्थिति की कल्पना की जा रही है, यदि वैसी मिल जाए तो वे भी अपूर्ण मालूम पडेंगी और फिर उससे अच्छी स्थिति का अभाव प्रतीत होगा।
जिन लोगों के पास धन, विद्या, मित्र, पद आदि पर्याप्त मात्रा में मिले हुए हैं, हम देखते हैं कि उनमें से भी अनेक का जीवन बहुत अस्त व्यस्त और असंतोषजनक स्थिति में पड़ा हुआ है।
धन आदि का होना उनके आनंद की वृद्धि न कर सका, वरन जी का जंजाल बन गया। जो सर्प विद्या नहीं जानता, उसके पास बहुत साँप होना भी खतरनाक है।
जिसे जीवन जीने की कला का ज्ञान नहीं, उसे गरीबी में, अभावग्रस्त अवस्था में थोड़ा-बहुत आनंद तब भी है, यदि वह संपन्न होता, तो उन संपत्तियों का दुरुपयोग करके अपने को और भी अधिक विपत्तिग्रस्त बना लेता।
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पुस्तक : आगे बढ़ने की तैयारी
प. श्रीराम शर्मा आचार्य