सफलता का मार्ग सुगम नहीं होता। उसमें पग पग पर विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा…
सफलता का मार्ग सुगम नहीं होता। उसमें पग पग पर विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा…
नव सृजन योजना’ महाकाल की योजना है। वह पूरी तो होनी ही है। उस परिवर्तन का आधार…
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। देवियो, भाइयो!…
सौंदर्य एक स्वाभाविक गुण है। जो स्वाभाविक रूप से सुन्दर होगा, वह सुन्दरता के किसी प्रसाधन का…
बहुसंख्यक परिवारों में सास बहू के झगड़े चल रहे हैं। इसके अनेक कारण हैं। सास बहू को…
परिवार का अर्थ है—परिकर, समूह, समुदाय। उसे इतनी संकीर्ण सीमा में आबद्ध नहीं करना चाहिये कि उस…
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहु ना श्रुतेन ।”
-कठो० १२-२३
शास्त्र कहता है कि यह आत्मा प्रवचन, बुद्धि या बहुत सुनने से प्राप्त नहीं होती। प्रथम अध्याय को समझ लेने के बाद आपको इच्छा हुई होगी कि उस आत्मा का दर्शन करना चाहिए, जिसे देख लेने के बाद और कुछ देखना बाकी नहीं रह जाता। यह इच्छा स्वाभाविक है। शरीर और आत्मा का गठबंधन कुछ ऐसा ही है, जिसमें जराअधिक ध्यान से देखने पर वास्तविक झलक मिल जाती है। शरीर भौतिक, स्थूल पदार्थों से बना हुआ है, किंतु आत्मा सूक्ष्म है।
पानी में तेल डालने पर वह ऊपर ही उठ आता है। लकड़ी के टुकड़े को तालाब में कितना ही नीचा पटको, वह ऊपर को ही आने का प्रयत्न करेगा, क्योंकि तेल और लकड़ी के परमाणु पानी की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म हैं। गरमी ऊपर को उठती है, अग्नि लपटें ऊपर कोही उठेंगी। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति और वायु का दबाव उसे रोक नहीं सकता है।
पिछले पृष्ठों पर बताया जा चुका है कि परमार्थ और स्वार्थ, पुण्य और पाप, धर्म, अधर्म यह…
मनुष्य शरीर में निवास तो करता है, पर वस्तुतः वह शरीर से भिन्न है। इस भिन्न सत्ता कोआत्मा कहते हैं। वास्तव में यही मनुष्य है। मैं क्या हूँ ? इसका सही उत्तर यह है कि मैं आत्मा हूँ।’
मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सबसे श्रेष्ठ रचना है। लगता है भगवान ने अपनी सारी कारीगरी को…