जन्म के बाद प्रतिक्षण आयु बढ़ती नहीं, अपितु घट रही है-यह ध्रुव सत्य है। जैसे शिशु का जन्म हुआ तब मान लीजिए 100 साल की उसकी आयु शेष है। एक वर्ष बाद 99, 10 वर्ष बाद 90; इस तरह प्रतिवर्ष आयु घट रही है। यह मानिए कि हम 45 वर्ष की उम्र से ही ऐसी तैयारी कर लें, जिससे वृद्धावस्था में भी स्वस्थ, निरोगी बने रहें। जिसमें हमारे वश में जितना है, उतना प्रयास तो करना ही है। वृद्धावस्था और मृत्यु तो आएगी ही, परंतु किस रूप में आए, उसकी सावधानी बरतना जरूरी है। आयु कम भी हो तो भी शंकराचार्य जी और स्वामी विवेकानंद जी ने कितना कार्य कम आयु में ही कर दिखाया। हम जितने दिन भी जिएँ, सार्थक जीवन ही जिएँ।
स्वस्थ वृद्धावस्था के लिए सत्र प्रातः टहलना-दैनिक दिनचर्या में पहला सूत्र प्रातः पैदल चलना (मॉर्निंग वॉक) बेहद सरल, मनः प्रसादक और स्वास्थ्यप्रद प्रयास है। सुबह पैदल चलेंगे तो स्नायुतंत्र, अस्थितंत्र तथा फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ेगी। मन भी प्रसन्न रहेगा। पाजिटिव विचारों की श्रृंखला का आगमन प्रात:वेला में होने लगेगा, जिससे मानसिक शक्ति भी बढ़ेगी।
योगासन-प्राणायाम-45 वर्ष की आयु से ही सरल योगासनों का अभ्यास जैसे-भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, गोमुखासन, वज्रासन, योगमुद्रा, पवन मुक्तासन आदि का नित्य अभ्यास करें। प्राणायाम में अनुलोम-विलोम तथा धीमी गति से कपालभाति, भस्त्रिका 2-2 मिनट करें। भ्रामरी प्राणायाम, ओंकार प्राणायाम 5-5 बार करें। शाम के समय भी समय हो तो इस अभ्यास क्रम को दोहराएँ। हँसने-हँसाने की प्रवृत्ति बनाएँ-वृद्धावस्था में जिनको हँसी-खुशी बाँटने का अभ्यास है, उनके आस-पास मित्र, सहयोगी परिजन इकट्ठे हो जाते हैं, परंतु जो कुढ़ते, डाँटते, फटकारते हैं, उनके पास कोई बैठना भी पसंद नहीं करता है। अतः अपनी आदतों को सुधारें और सर्वप्रिय मधुर व्यक्तित्व बनाएँ। इसका अभ्यास प्रौढ़ावस्था से करेंगे तभी बुढ़ापे में| उन संस्कारों की परिपक्वता दिखाई देगी। प्रसन्न रहना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है। दुःख और कठिनाइयों से रहित किसी का भी जीवन धरती पर नहीं होता। यह मानकर कष्ट-कठिनाइयों को स्वीकार कर यह भाव बनाए रहें कि इनसे जन्म-जन्मांतरों के शारीरिक एवं मानसिक पाप-कर्मों का बोझ समाप्त करने जा रहे हैं, जिससे आगे वाले जीवन में इतने कष्ट न आएँ।
सुपाच्य आहार लें-उम्र के बढ़ने पर पाचनक्षमता धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है। अतः उसी के अनुरूप सुपाच्य आहार सेवन करें। गरिष्ठ तले-भुने पकवानों से दूर रहें। सलाद चबा नहीं सकते तो कद्दूकस करके या पीसकर चटनी जैसा पेस्ट बनाकर भी अपक्वाहार सेवन कर सकते हैं। अंकुरित अनाज को थोड़ा उबालकर उसमें सेंधानमक, काली मिर्च स्वादानुसार मिलाकर, पीसकर खा सकते हैं, जिससे दाँत न होने से प्रायः सलाद एवं ठोस अन्न चबाने में कठिनाई न हो। दूध, दही, छाछ, जूस, सूप, नींबू आदि का सेवन नित्य करते रहेंगे तो खून की कमी नहीं होगी। एंटी ऑक्सीडेंट अच्छी मात्रा में मिलेंगे। शारीरिक-मानसिक ऊर्जा भरपूर रहेगी। चुकंदर, गाजर, लौकी, टमाटर, खीरा, पालक आदि का जूस या मिक्स वेज जूस आर्थिक दृष्टि से सस्ता होता है।
व्यस्त रहें-मस्त रहें-(1) वृद्धावस्था में भी अपने शरीर को जितना सक्रिय क्रियाशील बनाए रखेंगे, उतनी ही शक्ति बनी रहेगी।
(2) लोकसेवा, समाजसेवा के कार्यों में भरपूर रुचि लें।
(3) लोभ को त्याग दें। नि:शुल्क सेवाकार्य करने के लिए आध्यात्मिक सेवा-संगठनों से जुड़कर अपने मानसिक आत्मिक संतोष और प्रसन्नता (स्वान्तः सुखाय) के लिए निष्काम सेवाकार्य करें।
— Yug Nirmaan Yojna