गृह-कलह की चिनगारी जिस घर में सुलग जाती है, उसमें बड़ा अप्रिय, कटु और दुखदायी वातावरण बना रहता है। इसका कारण अधिकांश में यह होता है कि एक दूसरे के प्रति उचित शिष्टता और सम्मान का खयाल नहीं रखा जाता। आर्थिक, हानि-लाभ के आधार पर उतने कलह नहीं होते जितने शिष्टता, सम्मान, सभ्यता, मधुरता के अभाव के कारण होते हैं। यह कमी दूर की जानी चाहिये। परिवार के हर सदस्य को उचित सम्मान प्राप्त करने का अधिकार है, किसी के अधिकारों पर अनावश्यक कुठाराघात न होना चाहिए। जो कोई अशिष्टता, उच्छृंखलता, उद्दण्डता, अपमान या कटु भाषण की नीति अपनाना हो उसे प्रेमपूर्वक समझाया बुझाया जाना चाहिये और आपसी स्नेह भाव में कमी के कारणों को ढूंढ़कर उचित समाधान करना चाहिये। जरासी बात पर तुनककर न्यारे साझे की तुच्छता नहीं फैलने देनी चाहिये। जहां तक सम्भव हो सम्मिलित परिवार ही रहना चाहिए। सम्मिलित रहने में आत्मिक विकास की जितनी सुविधा है उतनी अलग रहने में नहीं है। परन्तु यदि ऐसा लगे कि आपसी मनोमालिन्य बढ़ रहा है, गृह-कलह शांत होने में सफलता नहीं मिलती या अलग रहने में अधिक सुख-शांति की सम्भावना ही हो तो प्रेमपूर्वक अलग अलग ही जाना चाहिए।
-पं श्रीराम शर्मा आचार्य