वसंत के आगमन के साथ ही चारों ओर प्रकृति के सौंदर्य की चर्चा होने लगती है। मलय पवन की सुगंध से लता-कुंज महक उठते हैं। पीली सरसों से सुसज्जित खेतों की शोभा देखते ही बनती है। चारों ओर हरियाली और फूलों को देखकर ऐसा कौन सा जीव है जो झूमे बिना रह सकता है ? वसंत का स्वागत करने के लिए प्रकृति का अंग-अंग खिल उठता है। इसी कारण वसंत को ‘ऋतुराज‘ की उपाधि दी गई है। वसंत जब आता है तो अपने साथ लाता है-हर्ष व आनंद, प्रेम व प्रसन्नता, हँसी और मुस्कान, मस्ती और आनंद हर वर्ष, माघ सुदी पंचमी के दिन वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
वसंत आगमन के साथ ही प्रत्येक प्राणी के शरीर और मन में नई स्फूर्ति और नई शक्ति का संचार होता है। वसंत ऋतु में प्रकृति और मनुष्य के बीच ऐसा संबंध स्थापित होता है, जिससे उल्लसित मन में श्रेष्ठ विचारों का उदय होता है। जीवन में रचनात्मकता एवं सृजनात्मकता का पथ प्रशस्त होता है। संभवतः यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने वसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा की प्रथा चलाई थी।
कैसा शुभ अवतरण का दिन रहा होगा वह, जिस दिन भगवती सरस्वती ने अवतरण लिया होगा, इस धरती पर। भगवती सरस्वती के अवतरण के दिन को हम ‘ज्ञान के अवतरण’ का दिन भी कहते हैं। कभी आदिकाल में जब मानव असभ्य नर-वानर की तरह घूमता था, तब धीरे-धीरे ज्ञान का उदय हुआ होगा अर्थात मनुष्य के अंदर सरस्वती ज्ञान के रूप में आई होगी। यह बुद्धि और विचारों का ही चमत्कार था जो मनुष्य इतना विकसित होता चला गया कि सारी सृष्टि का मुकुटमणि हो गया। वह सौभाग्य का दिन ही रहा होगा, जब अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य की बुद्धि विकसित हुई होगी।वनमानुष से आदमी बनाने का दिन वसंत पर्व हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भगवतीसरस्वती की कृपा से ही हमें बुद्धि और विवेकशीलता प्राप्त हुई।
सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं और उनकी कृपा के बिना संसार का कोई भी महत्त्वपूर्ण कार्य पूर्णरूप से सफल नहीं हो सकता। प्राचीन काल में जब यहाँ के निवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तो इस देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी और दूर-दूर के देशों से लोग यहाँ सत्य-ज्ञान की खोज में आते थे और भारतीय गुरुओं के सान्निध्य में रहकर विद्याध्ययन करके अपने को धन्य समझते थे। उन्हीं भगवती सरस्वती को हम प्रकृति के अंतर्गत वसंत के रूप में भी देखते हैं। वसंत आगमन के समय पदार्थों में एक नया उल्लास आता है, उमंगें आती हैं, पुराने पत्ते झड़ते हैं और नई कोपलें फूटती हैं। प्रकृति का कोना-कोना अपनी अद्भुत छटा बिखेरता है। प्रकृति में उल्लास फैल जाए और मन प्रफुल्लित न हो ऐसा कैसे संभव है। वातावरण में सुगंधित द्रव्य बिखर जाए और हमें उसकी गंध का अनुभव न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। आम के पेड भी अपनी मंजरी की भीनी सुगंध वातावरण में बिखेर देते हैं। लताएँ रंग-बिरंगे पुष्पों के भार से झुक जाती हैं। सृष्टि का सृजन-कार्य इन दिनों ज्यादा होता है। इस समय प्राणियों से लेकर वनस्पतियाँ तक प्रजनन की ओर अग्रसित होती हैं।
बच्चे भगवान का रूप माने गए हैं। वह प्रसन्न होते हैं तो प्रकृति भी अपनी प्रसन्नता प्रदर्शित करती है। प्रत्येक को समझना चाहिए कि प्रकृति भी हमारे साथ-साथ उदास और प्रसन्न होती है। बच्चों की किलकारियाँ और फूलों की शोभा ये ही तो हमारी धरती का सौंदर्य हैं।
युग निर्माण योजना २०१४