मानते हैं। इस बात की स्पृहा भी करते हैं कि हमारा देश, हमारा समाज
और हमारा परिवार एक बार वैसा ही हो जाए । वैसी ही पूर्वकालीन
सभ्यता विनम्रता, सौम्यता, अनुशासन और चारित्रिक महानता सब ओर
दिखाई देने लगे । बच्चा बच्चा शूरवीर, शालीन तथा संयमशील हो ।
स्त्रियाँ सच्चरित्र पतिव्रता, मृदुभाषिणी और गृहलक्ष्मी बनें | यह सब
सोचते तथा आकांक्षा तो करते हैं, किंतु यह कभी नहीं सोचते कि
पूर्वकाल में वैसा क्यों था और आज क्यों नहीं है ?
हमारी पूर्वकालीन व्यवस्था तथा विचारधारा बड़ी ही उन्नत
तथा आदर्श थी । घर पर उसके नियमों तथा योजनाओं का पालन
होता था। परिवार सौम्य तथा संपत्ति के आगार बने थे। संतान
सुसंस्कृत और पूर्ण विकसित होकर निकलती थी । सभ्य नागरिकता
का प्रमाण देती थी और अपना जीवन समाज-सेवी के रूप से यापन
करती थी। बच्चों को प्यार मिलता था, वृद्धों को श्रद्धा और नारियों
को आदर मिलता तथा सभी सुखी और संतुष्ट रहते थे। सभी विकास
और उन्नति करते थे ।
व्यवस्था तथा नियम तो आज भी वही है, अंतर केवल यह हो
गया है कि उनका समुचित रीति से पालन नहीं किया जा रहा है। आज
भी यदि वही प्राचीन नियम तथा नीतियाँ पालन की जाने लगें तो युग
बदलने लगे। सभी ओर प्राचीन परिस्थितियाँ दिखलाई देने लगें । यदि
हम अपनी सुधार भावना के प्रति वास्तव में ईमानदार हैं, अपनी
वर्तमान दुरावस्था के प्रति क्षुब्ध हैं, उसके प्रति हमारी घृणा सही है, तो
आइए उन कारणों को खोजें और दूर करें जो इस पतित दशा के