Home Akhand Jyoti Magazine आध्यात्मिक शक्ति के चमत्कार

आध्यात्मिक शक्ति के चमत्कार

by

Loading

विभिन्न धर्मग्रंथों में साधकों को धार्मिक-आध्यात्मिक साधनाओं से प्राप्त होने वाली आध्यात्मिक शक्तियों का वर्णन मिलता है। योगसूत्र में योग-साधनाओं से प्राप्त होने वाली नाना प्रकार की सिद्धियों, विभूतियों का वर्णन है। संत तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में अष्ट सिद्धिनवनिधि के दाता, अस बर दीन्ह जानकी माता’ कहा है, जिसका अर्थ है माता जानकी ने महावीर हनुमान जी को वरदानस्वरूप अष्टसिद्धि-नवनिधि के दाता होने की शक्ति प्रदान की।

युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव श्रीराम शर्मा आचार्य जी के अनुसार अध्यात्म एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, एक प्रयोग है, जिससे गुजरने पर साधक को अनंत आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। भारतवर्ष के महान संतों, साधकों, योगियों व ऋषियों ने अपनी आध्यात्मिक, यौगिक साधनाओं के द्वारा ही अनंत शक्तियाँ, सिद्धियाँ, विभूतियाँ प्राप्त की थी। वे उन आध्यात्मिक शक्तियों से ही लोगों का आध्यात्मिक मार्गदर्शन व पीड़ा निवारण किया करते थे।

भारत के महान साधु-संतों, ऋषियों व योगियों के अनेक चमत्कारों की कहानियाँ आज भी सुनने व पढ़ने को मिलती हैं। उनके द्वारा किसी रोगी को छूकर रोगमुक्त कर देने व किसी मृतदेह को छूकर उसमें प्राणों का संचार कर देने जैसी अद्भुत घटनाएँ सुनने व पढ़ने को मिलती हैं। ये -आश्चर्यजनक भी हैं और सत्य भी। वास्तव में निरंतर योग साधनाओं से जब तन-मन की शुद्धि होती है, हृदय में पवित्रता आती है, तब साधकों में ऐसी चुंबकीय शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जिनके कारण वे किसी को केवल आशीर्वाद देकर या छूकर ही रोगमुक्त कर सकते हैं।

इसी कारण साधु-संत, ऋषि-योगी आदि किसी के विचारों और भावनाओं को बदल देते थे। वास्तव में वे उच्च चुंबकीय शक्ति से सहज ही दूसरों की पीड़ाओं, अभावों व दुःखों को दूर कर दिया करते थे। सनातन संस्कृति में साधुसंतों, ऋषियों, योगियों व गुरु जनों के चरणस्पर्श करने की परंपरा रही है। वे चरणस्पर्श करने वालों के सिर पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। ऐसे दिव्य व महान लोगों के चरणस्पर्श करने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण है। उनके चरणस्पर्श करने से एवं उनके द्वारा सिर पर हायों के स्पर्श से उनमें विद्यमान आध्यात्मिक चुंबकीय शक्तियाँ चरणस्पर्श करने वाले के शरीर में प्रविष्ट हो जाती हैं। आध्यात्मिक चुंबकीय शक्ति के इस संचार से उन्हें अपने जीवन में सुख और शांति ही प्राप्त नहीं होते, वरन उनके विचारों को पवित्रता तथा आत्मा को तृप्ति मिलती है।

विश्व के अनेक धर्मग्रंथ आध्यात्मिक पुरुषों की चुंबकीय शक्तियों के चमत्कारपूर्ण उदाहरणों से भरे पड़े हैं। स्वामी रामकृष्ण परमहंस में अपार आध्यात्मिक चुंबकीय शक्ति थी। एक बार जब उन्होंने अपने पैर से नरेंद्र को स्पर्श: कर दिया था तो उनका स्पर्श पाते ही नरेंद्र यह कहते हुए चीख उठे थे-“नहीं। नहीं! मैं इस शक्ति को सहन नहीं कर सकता। मुझे सारा संसार घूमता हुआ दिखाई दे रहा है।” वास्तव में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की आध्यात्मिक शक्ति उनके स्पर्श के साथ ही युवक नरेंद्र के संपूर्ण शरीर में विद्युतधारा की तरह दौड़ने लगी थी।

इसी प्रकार भारत के महानतम योगी महर्षि रमण भी आध्यात्मिक ऊर्जा के शक्तिपुंज थे। उनके आश्रम में जानवर और पक्षी भी निर्भय होकर रहते थे। रमण महर्षि इन पक्षियों और जानवरों को मनुष्यों की तरह संबोधित करते थे। महर्षि और ये पशु-पक्षी एकदूसरे से बहुत घुल-मिल गए थे।

यूरोप के एक लेखक पॉल ब्रटन ने महर्षि की ख्याति के बारे में सुना तो वे उत्सुकतावश महर्षि से मिलने के लिए: उनके आश्रम पहुंचे। वहाँ उनके साथ जो घटना घटी, उसने उनकी आँखें खोल दी। वे रात को एक मचान पर सोने की तैयारी कर रहे थे कि तभी उन्होंने देखा कि मचान पर एक जहरीला साँप चढ़ रहा है। उन्हें लगा कि उनकी मृत्यु निश्चित है। तभी रमण महर्षि का एक सेवक वहाँ आया

और सौंप से मनुष्य की तरह बातें करते हुए बोला-ठहरो बेटा! यह सुनते ही सौप एक आज्ञाकारी बालक की तरह। जहाँ-का-तहाँ रुक गया और फिर पहाड़ों की तरफ गया। और गायब हो गया। पॉल बंटन के लिए यह घटना चकित कर देने वाली थी। उन्होंने आश्रम के सेवक से पूछा- “आखिर तुमने यह चमत्कार कैसे किया?”सेवक ने उत्तर -दिया-“यह चमत्कार मैंने नहीं, महर्षि रमण ने किया है। – उनके अनुसार जीव-जंतुओं से यदि हम प्रेम से बोलेंगे तो वे – अवश्य सुनेंगे।” वास्तव में जीव-जंतुओं में आध्यात्मिक – ऊर्जा का संचार कर महर्षि रमण उन्हें वशीभूत कर लेते थे।

भारत के महानतम योगियों में महर्षि अरविंद अपनी – दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा से अपने शिष्यों को निहाल किया करते थे। एक बार उनके आश्रम में कुछ शिष्य उनके पास बैठकर ध्यान कर रहे थे। वहाँ स्तब्ध नीरवता छाई हुई थी। ध्यानस्थ शिष्यों में से कुछ ने अवतरित होते हुए प्रकाश के सागर को देखा। वहाँ उपस्थित शिष्यों ने अपने सिर के ऊपर एक प्रकार के दबाव का अनुभव किया। सारा वातावरण मानो बिजली की ऊर्जा से भरा पड़ा था। चारों ओर नीरवता छाई हुई थी। दिव्यता का सागर उमड़-घुमड़ रहा था। लगभग पैंतालीस मिनट का ध्यान हुआ, उसके बाद एक-एक करके शिष्यों ने महर्षि अरविंद व श्रीमाँ को प्रणाम किया।

इस युग के महान दार्शनिक, योगी व गायत्री के सिद्धसाधक पूज्य गुरुदेव आध्यात्मिक ऊर्जा के प्रखरतम पुंज थे-जिन्होंने अपनी दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार कर कोटिशः साधकों के जीवन को रूपांतरित किया। गायत्री के चौबीस-चौबीस लाख के चौबीस महापुरश्चरण संपन्न कर लेने के बाद तो मानो उनकी स्थूल काया भी दहकते हुए अंगारे से कम न थी। उन दिनों वे भीषण गरमी में भी कंबल ओढ़ा करते थे और काला चश्मा पहने हुए होते थे, ताकि उनके रोम-रोम से बह रही आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रदर्शन बाहर किसी को न हो सके। इसके साथ ही उन दिनों शिष्यों को उनके चरणस्पर्श न करने के भी निर्देश थे, ताकि वे चरणस्पर्श कर प्रखर आध्यात्मिक ऊर्जा के विद्युतीय झटके से बचे रह सकें।

नेत्रों से बहती आध्यात्मिक ऊर्जा को लोकदृष्टि से छिपाए रखने के लिए ही वे उन दिनों काला चश्मा पहना करते थे, परंतु परोक्ष रूप से वे अपनी उस घनीभूत आध्यात्मिक ऊर्जा का शक्ति संप्रेषण लोक-कल्याण के लिए ही किया करते थे। कई बार तो उन्होंने कइयों में अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा का संप्रेषण कर उन्हें नवजीवन भी प्रदान किया। प्राण-प्रत्यावर्तन जैसे विशेष आध्यात्मिक शिविरों में उन्होंने सुपात्र साधकों में विशेष शक्ति का संचार कर उन्हें सचमुच निहाल किया और दिव्य जीवन की ओर प्रेरित कर दिया। उनके जीवन के ऐसे अगणित उदाहरण भरे पड़े हैं। – इसी प्रकार सूर, तुलसी, रैदास, नानक, कबीर, मीरा आदि संतों का जीवन भी आध्यात्मिक ऊर्जा से जुड़े चमत्कारों से भरा पड़ा है। भारत के प्राचीनतम ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक युग के महानतम योगी अग्निदीक्षा, ब्रह्मदीक्षा, मंत्रदीक्षा आदि विभिन्न प्रकार की दीक्षाएँ देते हुए अपने शिष्यों में, साधकों में शक्ति संचार किया करते थे। इसे हम शक्तिपात करना भी कह सकते हैं। वास्तव में मनुष्य के भीतर असीमित शक्तियाँ छिपी पड़ी हैं। हमारी पिंडरूपी काया में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ है। यदि हम विविध योग साधनाओं व गुरुकृपा से अपनी वासनाओं व इच्छाओं को रूपांतरित कर लें तो हम न केवल अपनी आत्मा में ही परमात्मा के दर्शन कर निहाल हो सकते हैं, बल्कि स्वयं में ही आध्यात्मिक शक्तियों की दिव्य अनुभूति भी कर सकते हैं।


केवलं ग्रहनक्षत्रं न करोति शुभाशुभम्।

सर्वमात्मकृतं कर्म लोकवादो ग्रहा इति॥

-महाभारत अनु. पर्व, अ.145

केवल नक्षत्र किसी को शुभ या अशुभ फल नहीं देते। उसके अपने किए गए कर्मों को ही लोग नक्षत्रों का नाम दे देते हैं।

नवरी, 2021 : अखण्ड ज्योति

You may also like