भगवान शिव के निवास स्थान कैलास पर्वत के पास स्थित है-कैलास मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा हुआ है। कैलास पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों-हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख धर्म का धार्मिक केंद्र है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से भगवान विष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलास पर्वत की चोटी पर गिरी धों, जहाँ प्रभु शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण करके धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित किया था। कैलास पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक है। शिवपुराण, स्कंदपुराण, मत्स्यपुराण आदि में कैलासखंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहाँ इसकी महिमा का गुणगान किया गया है।
कैलास पर्वत पर साक्षात् भगवान शंकर विराजमान माने गए हैं। इसकी बाहरी परिधि 52 किलोमीटर की है। मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जो पुराणों में ‘क्षीरसागर’ के नाम से वर्णित है। क्षीरसागर कैलास से 40 किमी. की दूरी पर है व इसी में शेषशय्या पर भगवान विष्णु व देवी लक्ष्मी विराजमान होकर समस्त संसार को संचालित करते -हैं। यह क्षीरसागर भगवान विष्णु का अस्थायी निवास है। -कैलास पर्वत के दक्षिण भाग को नीलम, पूर्व भाग को :स्फटिक, पश्चिम को रूबी और उत्तर को स्वर्ण रूप में – माना जाता है। इस पावन स्थल को भारतीय संस्कृति के हृदय की उपमा दी गई है। जिसमें भारतीय सभ्यता की झलक दिखाई पड़ती है। कैलास पर्वत की तलहटी में कल्पवृक्ष लगा हुआ है। बौद्ध धर्मावलॉवयों के अनुसार इसके केंद्र में एक वृक्ष है, जिसके फलों के चिकित्सकीय गुण सभी प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम हैं।
तिब्बतियों की मान्यता है कि एक संत कवि ने वहाँ वो गुफा में रहकर तपस्या की थी। तिब्बती बोनपाओं के अनुसार कैलास में जो नौ मौजला स्वस्तिक देखते हैं वह डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास है। बौद्ध भगवान का अलौकिक रूप’डेमचौक’ बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए पूजनीय है। बुद्ध के इस रूप को ‘धर्मपाल’ की संज्ञा भी वे देते हैं। बौद्ध धर्मावलंबियों का मानना है कि इस स्थान पर आकर उन्हें निर्वाण की प्राप्ति होती है। यह भी कहा जाता है कि भगवान बुद्ध की माता ने यहाँ की यात्रा की थी।
जैनियों की मान्यता है कि आदिनाथ शषभदेव का निर्वाण स्थल ‘अष्टपद’ यहाँ है। कहते हैं कि ऋषभदेव ने आठपा में कैलास की यात्रा को थी। हिंदू धर्म के अनुयायियों: की मान्यता है कि कैलास पर्यंत ही मेरु पर्वत है, जो ब्रह्मांड की धुरी है और यह भगवान शंकर का प्रमुख निवास स्थान है। यहाँ देवी सती के शरीर का दायाँ हाथ गिरा था, इसलिए यहाँ एक पापाण-शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहाँ एक शक्तिपीठ भी है। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि गुरु नानक देव ने भी यहाँ कुछ दिन ठहरकर ध्यान किया था और इसलिए सिक्खों के लिए भी यह एक अत्यंत पवित्र स्थान है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह स्थान धरती का केंद्र है। धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है तो दूसरी ओर दक्षिणी, ध्रुवा दोनों के मध्य स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है। कैलास पर्वत और मानसरोवर । वैज्ञानिक मानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप के चारों ओर पहले समुद्र था। इसकी लहरों के टेक्टोनिक प्लेटों से टकराने के कारण हिमालय का निर्माण हुआ। यह घटना अनुमानतः 10 करोड़ वर्ष पूर्व घटी थी। यह एक ऐसा भी केंद्र है, जिसे एक्सिस मुंडी कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि का आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहाँ दसों दिशाएँ मिल जाती हैं ।
रूस के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहाँ अलौकिक शकि का प्रवाह होता है और हम इन शकियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।कैलास पर्वत और उसके आस-पास के वातावरण का अध्ययन कर चुके रूस के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलास पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है. जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं। यदि हम कैलास पर्वत या मानसरोजर झील के क्षेत्र में जाएंगे तो हमको निरंतर एक Eआवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आस-पास में हवाई जहाज उड रहा हो, लेकिन ध्यान से सनने पर यह आवाज ‘डमरू’या’ॐ’ की ध्वनि जैसी होती है। वैज्ञानिक कहते है कि हो सकता है कि यह आवाज बरफ के पिघलने की हो और यह भी हो सकता है कि प्रकाश और ध्यान के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहाँ से ‘ॐ’ की आवाजें सुनाई पड़ती हों।
दावा किया जाता है कि कई बार कैलास पर्वत पर 17 तरह के प्रकाश आसमान में चमकते हुए देखे गए हैं। नासा के वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि हो सकता है कि ऐसा यहाँ के चुंबकीय बल के कारण होता हो। यहाँ का चुंबकीय बल आसमान से मिलकर कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण कर सकता है। हिमालयवासियों का कहना है कि हिमालय पर यति मानव रहता है। कोई इसे सफेद भालू कहता है कोई जंगली मानव तो कोई हिममानव।
कुछ वैज्ञानिक इसे निएंडरथल मानव मानते हैं। विश्वभर के करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय में बरफीले इलाकों में हिममानव मौजूद हैं। यह भी कहा जाता है कि यहाँ आस-पास दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग-कस्तूरी मृग है। इस मृग को कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है, जो उसके शरीर के एक हिस्से की ग्रोथ में एक पदार्थ के रूप मेंं ग्रहीत होती है। – कैलास पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे-छोटे पिरामिडों का केंद्र है। कैलास पर्वत की संरचना कंपास के 4 द्विक बिंदुओं के समान है और एकांत स्थान पर स्थित है, जहाँ कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है। कैलास पर्वत समुद्र सतह से 21668 फुट ऊँचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चौक तिब्बत चीन के अधीन है, अत: कैलास चीन में आता है। मानसरोवर झील से घिरा होना : कैलास पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। यहाँ चारों ओर बहुत ऊँचे बरफीले पहाड़ हैं; जहाँ कुछ पहाड़ों की ऊँचाई 3500 मीटर से भी अधिक है। कैलास पर्वत की ऊँचाई तो लगभग 21668 फुट है। कैलास पर्वत को 4 दिशाओं में 4 नदियों का उदगम हुआ हैब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलजय करनाली। इन नदियों से ही चीन की कुछ नदियाँ भी निकली हैं। कैलास के चारों ओर विभिन्न जानवरों के मुख हैं, जिनमें में नदियों का उदगम होता है। पूर्व में अश्वमुख है। पश्चिम में हाथी का मुख है। उत्तर में सिंह का मुख है। दक्षिण में मोर का मुख है।
कैलास मानसरोवर के पास ही यमद्वार बताया जाता है। यहीं से होकर कैलास स्पर्श स्थान तथा कैलास जी की परिक्रमा शुरू करनी होती है। यमद्वार से करीब 12 किमी० की यात्रा प्रारंभ होती है। सुनसान रास्ते के दोनों तरफ पधरीले और बरफ से ढंके पहाड़ दिखाई देते हैं। दोनों पहाड़ों के -बीच बरफ की नदी अपने अस्तित्व का एहसास कराती है। कैलास की संपूर्ण परिक्रमा लगभग 50 किलोमीटर की है। जिसे यात्री प्रायः तीन दिनों में पूरा करते हैं। यह परिक्रमा कैलास शिखर के चारों ओर के कमलाकार शिखरों के साथ होती है। कैलास शिखर अस्पृश्य है। यात्रा मार्ग में लगभग ढाई किलोमीटर की सीधी चढ़ाई करके ही इसे स्पर्श किया। जा सकता है। यह चढ़ाई पर्वतारोहण की विशिष्ट तैयारी के बिना संभव नहीं है।
मानसरोवर झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। इसके उत्तर में कैलास पर्वत तथा: पश्चिम में रसातल झौल है। संस्कृत शब्द मानसरोवरमानस तथा सरोवर को मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है-मन का सरोवर । कहते हैं कि मानसरोवर वह झील है, जहाँ माता पार्वती सान करती थी। मान्यतानुसार वे आज भी वहीं स्नान करती हैं।
वैज्ञानिक कहते हैं कि यह अभी तक रहस्य है कि ये झोलें प्राकृतिक तौर पर निर्मित हुई हैं या कि इन्हें ऐसा बनाया गया है। हालांकि पुराणों के अनुसार समुद्र तल से 17 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित 300 फुट गहरी मीठे पानी की इस मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर द्वारा प्रकट किए गए जल के वेग से जो झील बनी, कालांतर में उसी: का नाम’ मानसरोवर’ पड़ा। एक अन्य मान्यता के अनुसार परमपिता परमेश्वर के आनंद-अश्रुओं को भगवान ब्रह्मा ने अपने कमंडलु में समेट: लिया था तथा इस भूलोक पर त्रियष्टकं (तिब्बत) स्वर्ण स्थान पर मानसरोवर’ की स्थापना की। शाक्तगंध के अनुसार देवी सती का दायाँ हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह झील तैयार हुई. इसलिए यहाँ एक पाषाण-शिला को उनका रूप मानकर पूजा जाता है।
इसलिए इसे 51 शक्तिपीठों 2 में से एक माना गया है। मान्यता है कि कोई व्यक्ति मानसरोवर हमें एक बार डुबकी लगा ले तो वह ‘रुद्रलोक’ पहुँच सकता
है। मानसरोवर पहाड़ों से घिरी झील है, जिसे पुराणों के रचनाकार ‘क्षीरसागर’ कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि महाराज मांधाता ने मानसरोवर झील की खोज की और कई वर्षों तक इसके किनारे तपस्या की थी।
यहाँ दो सरोवर मुख्य हैं। पहला मानसरोवर, जो कि दुनिया में शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है। दूसरी यहाँ पर 250 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैली, 15010 फुट समुद्र तल
से ऊँचाई पर स्थित राक्षस झील है, जो कि खारे पानी की. उच्चतम झीलों में से एक है। इसका आकार चंद्रमा के. समान है।
ये दोनों झीलें सौर और चंद्र बल को प्रदर्शित करती। हैं जिनका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जय दक्षिण से देखते हैं तो इसे एक स्वस्तिक चिह के: रूप में देखा जा सकता है। इन दो सरोवरों के उत्तर में. कैलास पर्वत है। इसके दक्षिण में गुरला पर्वतमाला और गुरला शिखर है। इस प्रकार मानसरोवर का क्षेत्र एक दिव्य सिद्ध क्षेत्र है, जो एक रहस्यमयी ऊर्जा का केंद्र भी है।
जनवरी, 2021 : अखण्ड ज्योति