वर्तमान समय में देश में बढ़ती बेरोजगारी की दर सभी के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बनी हुई है। विगत वर्ष का प्रारंभ होते-होते यह दर 7.8% तकपहुँच चुकी थी और कोरोना वायरस के कारण फैले विश्वव्यापी संकट के बाद तो यह स्थिति और भी भयावह हो गई है।अंतिमप्राप्त जानकारी के अनुसार ग्रामीणक्षेत्र में ये आँकड़े 6.4% बेरोजगारीकी दर तो शहरीइलाकों में 9.7% की दर बताते थे।गंभीर बात यह है कि बेरोजगारी की इस तेजी से बढ़ती दर के कारण देश में घटने वाले अपराधों की संख्या में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। सिनेमा से लेकर समाचारपत्रों में परसते मनोरंजन की दुनिया के लुभावने सपने व्यक्ति को तेजी से बढ़िया से-बढ़िया फोन, कार, विलासिता के अन्य साधनों को प्राप्त करने के लिए ललचाते हैं, परंतुरोजगार के अभाव में फिर ऐसे लोग अपराधों को दिशा में मुड़ने लगते हैं। एक बार उस तरह की संगत मिलने लगती है तो फिर दुर्व्यसन भी उनको ग्रस्त कर लेते हैं।
परिणाम यह होता है कि बेरोजगारी को एक समस्या-अपराधों से लेकर हिंसा, दुर्व्यसनों आदि न जाने कितनी अन्य समस्याओं को जन्म देती नजर आती है। वर्तमान परिस्थितियों का यह एक दुर्भाग्यपूर्ण सत्य है कि आज देश का युवा वर्ग बहुत तेजी से अपराधों की दिशा में बढ़ रहा है। देश की राजधानी दिल्ली का ही यदि उदाहरण लें तो यहाँ विगत चार दशकों में अपराध दर तीन गुना से ज्यादा बढ़ी है। इसी के साथ नक्सलवाद, हिंसा, बलात्कार, आतंकवादजैसी घटनाएँ भी बढ़ी हैं, जिनकेपीछे भी किसी-न-किसी रूप में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या जिम्मेदार है।आजभारत में सर्वत्र मल्टीनेशनल कंपनियों का वर्चस्व है।मशीनीकरण होने के कारण मजदूरोंसे लेकर कृषकों की आजीविका नष्टहुई तो वहीं ऑटोमेशन के कारण ऑफिस में बैठने वालों के रोजगार भी छिनते नजर आते हैं।
ऐसा नहीं है कि बेरोजगारी की समस्या का कारण वैज्ञानिक प्रगति है, परंतुबैज्ञानिक प्रगति की तीनता के साथ कदम न जुड़ पाने के कारण भी बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई है। यह भी सत्य है कि मल्टीनेशनल कंपनियों तीव्रता के साथ इस तरह की कार्यव्यवस्था भारत में ला रही हैं, किंतु यहाँ उसी के अनुरूप शिक्षा, प्रशिक्षणइत्यादि के अभाव में ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जोबदलती व्यवस्था के अनुरूप अपना विकास नहीं कर पाते हैं एवं परिणामस्वरूप अपने रोजगार को गंवा बैठते हैं।विगत वर्ष तक तो स्थिति यह थी कि सर्वत्र चीन में। बने सामान की मांग नजर आती थी।
चीनसे आने वाले: सस्तेसामानों ने स्वदेशी वस्तुओं के प्रति आकर्षण को: पूर्णरूपेणसमाप्त कर दिया था। दिल्ली के प्रगति मैदानमें लगने वाले ‘वर्ल्डट्रेड फेयर’ मेंभी चीन की वस्तुओं: केप्रति ही आकर्षण नजर आता था। लोग भारत में बनने : वालेसामान को त्यागकर चीन में बनने वाले सामान को. बुकिंगकराते थे।
उदाहरण के तौर पर-चीन में बनने वाले टायरों की कीमत भारत में बनने वाले टायरों की कीमत से 6 हजाररुपये तक कम थी। भले ही इन सामानों की गुणवचा एवं जीवनावधि भारतीय सामानों की तुलना में कम थी, तबभी विदेशी सामान और वो भी सस्ता-इसके आकर्षण ने भी भारतीय रोजगार व्यवस्था को बहुत ज्यादा हद तक चोट पहुँचाई थी। इन बातों के साथ यह भी सत्य है कि कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संकट की शुरुआत चीन के वुहान प्रांत से होने के कारण एवं सीमा पर भारत-चीन संबंधों में तल्खी आने के कारण संपूर्ण विश्व में चीनी वस्तुओं के प्रति आकर्षण तेजी से घटा है।
देशमें यदि गरीबी और बेरोजगारी की समस्या को दूर करना है तो हमें स्वदेश में निर्मित सामग्री का उपयोग करना सीखना होगा और तब ही देश में व्याप्त इस समस्या का सम्यक समाधान किया जा सकना संभव बन पड़ेगा। स्वदेशी सामान भले ही थोड़ा महंगा हो, परंतुगुणवत्ता की
दृष्टि से उत्तम है और इसके कारण अपने ही देशवासियों को रोजगार मिलता है। साथ ही कोई खराबी आने पर इसेआसानी से ठीक भी किया जा सकता है। जबकि विदेशी – सामानोंको इस तरह की कोई गारंटी नहीं होती है। – परमपूज्यगुरुदेव द्वारा शांतिकुंज में इसी उद्देश्य .कोध्यान में रखकर सन् 1980 केदशक में ही स्वावलंबनका प्रयोग-प्रशिक्षण प्रारंभ कर दिया गया था। इससे पूर्व . उनकेद्वारा गायत्री तपोभूमि में युग निर्माण विद्यालय कोप्रारंभ करने के पीछे का उद्देश्य भी यही था।
उससमय भारत के एक प्रसिद्ध चिंतक द्वारा पूज्यवर से इस :शुरुआतमें निहित कारण को पूछे जाने पर उन्होंने कहाथा कि भारत का विकास, भारतके गांवों के विकास को समग्र रूप दिए बिना, स्वदेशीस्वावलंबन के बिना अधूरा है। सच्चा स्वराज्य भारत को तब ही मिल सकता है, जबहम इसी भाव को सच्चे अर्थों में अपनाएँ। ऐसा करने से देश को टिकाऊ विकास तथा आर्थिक स्वावलंबन मिल सकेगा तथा देश के युवा वर्ग को रोजगार भी प्राप्त हो सकेगा।
यही कारण था कि परमपूज्य गुरुदेव ने आदर्श ग्रामकी स्थापना के लिए उसके स्वस्थ, स्वच्छ, शिक्षिा, स्वावलंबी, व्यसनमुक्त, संस्कारयुक्त, सहकारयुक्त होने का चिंतन दिया था। शांतिकुंज में स्थापित स्वावलंबन की इस प्रशिक्षण कार्यशाला ने ही देखते-देखते देव संस्कृति विश्वविद्यालय में एक विशालकाय स्वावलंबन प्रशिक्षण विद्यालय का स्वरूप ले लिया, जिसकेस्वरूप और प्रभाव को देखकर लोग आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते हैं।उस विद्यालय में हस्तनिर्मित कपड़े कागज के उत्पादन से लेकर भोज्य सामग्री जैसी अनेक विधाओं में प्रशिक्षण कराया जाता है, जोसंपूर्ण विश्व में एकमात्र ऐसा उदाहरण है।
5 वर्षों पहले महात्मा गांधी ने देश की संपूर्ण जनता काध्यान स्वदेशी वस्वों की ओर आकर्षित किया था और मैनचेस्टर, इंग्लैंडमें बनने वाले कपड़ों को त्यागने का आग्रह देशवासियों में किया था। परिणाम यह हुआ कि हजारोंबेरोजगारों को भारत में ही रोजगार मिलने लगा। आज पुनः • वैसाही कुछ घट रहा है। आज हस्तनिर्मित कपड़ों के स्थान – परपश्चिमी भान लिए जींस इत्यादि का प्रचलन बढ़ रहा है। ऐसा होने केकारण देश के हजारों बुनकर भुखमरी के – कगार पर आकर खड़े हो गए हैं।
ऐसे में परमपूज्य गुरुदेव द्वारा शांतिकुंज में स्थापित मॉडल के कारण सर्वत्र हस्तनिर्मित कपड़ों की बहार-सी आ गई है। कागज से लेकर सारी स्टेशनरी ही हस्तनिर्मित होती है, जिसका प्रभाव अपने लोगों को रोजगार देने के रूप में तो दीख पड़ता ही है, साथ ही इसका परिणाम यह भी निकल करके आता है कि पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण दायित्व भी इससे परिपूर्ण हो पाता है।
आज अनेक राज्यों में गरीबों को सस्ता अनाज, . निःशुल्क भोजन सामग्री व यहाँ तक की निःशुल्क मोबाइल, लैपटॉप तक दिए जा रहे हैं, परंतु आज की ज्वलंत आवश्यकता रोजगार है, जिसे स्वदेशी स्वावलंबन पर जोर देकर सहजता से प्राप्त किया जा सकता है। आज इस बढ़ती बेरोजगारी और उससे उपजी गरीबी को नियंत्रित करने के लिए सभी को गंभीरता से चिंतन करना होगा। और उसका सही समाधान भी निकालना होगा। समय: रहते यदि ऐसा न किया गया तो देश में गरीबी, बेरोजगारी: तो बढ़ेगी ही, साथ ही हिंसा, अपराध की दरें भी बढ़ती: चली जाएंगी।
इसीलिए छोटे उपक्रमों, लघु उद्योगों, कुटीर उद्योगों, स्वदेशी उत्पादों के निर्माण, प्रशिक्षण एवं उनके विश्व बाजार में विस्तार के लिए लोगों को पहल करने की आवश्यकता है। सरकारी तंत्र द्वारा ग्रामीण इलाकों की तरह से शहरी क्षेत्रों में भी रोजगार गारंटी योजना को चलाने की आवश्यकता है। ऐसा करने से घरेलू बाजार में बढ़ते विदेशी वर्चस्व को थामा जा सकेगा एवं लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सकेगा।
शांतिकुंज में परमपूज्य गुरुदेव ने वर्षों पहले ही आग: की इस समस्या का समाधान निकाला था और उसी के सत्परिणाम आज इस रूप में दिखाई पड़ते हैं कि न केवल शांतिकुंज और देव संस्कृति विश्वविद्यालय, बल्कि गायत्री : परिवार के हजारों केंद्र इसी पृष्ठभूमि पर खड़े नजर आते हैं।
स्पष्ट है कि यदि करोड़ों गायत्री परिजनों के मध्य यह प्रयोग सफल हो सकता है तो इसे अन्य स्थानों पर भी सफलतापूर्वक क्रियान्वित किया जा सकता है। परमपूज्य: गुरुदेव द्वारा वर्षों पहले स्थापित इस प्रारूप की गंभीरता को आज इस दृष्टि से समझा जा सकता है कि इसी प्रयोग: द्वारा आज के समय की इस गंभीर समस्या का समाधान संभव है।
जनवरी, 2021 : अखण्ड ज्योति